उत्तराखंड : आपदा सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है दाज्यू

Last Updated 23 Apr 2014 05:59:12 AM IST

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बहुगुणा को सीएम पद से हटाया, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि आपदा के कार्यों में कोताही बरतने वालों को माफ नहीं किया जाएगा.


हरीश रावत एवं विजय बहुगुणा (फाइल फोटो)

करीब एक साल पहले 15-16 जून को उत्तराखंड में आई आपदा ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को इस तरह से झकझोर कर रख दिया कि उसे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को बदल कर हरीश रावत को उत्तराखंड की बागडोर सौंपनी पड़ी. इसके बावजूद आपदा से पीड़ित लोगों की पीड़ा कम नहीं हो पाई. पीड़ित चाहे पहाड़ के रहे हों या फिर मैदान के. उत्तराखंड में सात मई को मतदान होना है.

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बहुगुणा को सीएम पद से हटाया, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि आपदा के कार्यों में कोताही बरतने वालों को माफ नहीं किया जाएगा. मगर हरीश रावत भी आपदा पीड़ितों की पीड़ा कम नहीं कर पाये हैं. लिहाजा आपदा की मार न केवल पहाड़ बल्कि मैदान के मतदाताओं पर पड़ी है. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आपदा सबसे बड़ा मुद्दा है. इसका जवाब मतदाता कांग्रेस से ही नहीं भाजपा से भी मांग रहे हैं.  

हरिद्वार व नैनीताल-ऊधमसिंह नगर दोनों ही ऐसे संसदीय क्षेत्र हैं, जहां मैदान के वोट बैंक हार-जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. ठीक उसी तरह उत्तराखंड के जिन क्षेत्रों में आपदा का कहर रहा है, वहां आज भी सड़कों एवं लिंक रोड के निर्माण नहीं हो पाये हैं. पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास पर भी कोई कसरत न ही विजय बहुगुणा और न ही हरीश रावत की सरकार ही कर पाई है. इससे उत्तराखंड के लोगों में नाराजगी है.

लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस एवं भाजपा के बड़े नेता बाहरी प्रांतों के लापता लोगों के परिजनों को साढ़े तीन लाख और स्थानीय लोगों के परिजनों को पांच लाख रुपये देने के सवाल पर स्पष्ट रूप से कोई भी टिप्पणी करने से कतरा रहे हैं.

दरअसल, आपदा के दौरान बाहरी प्रांतों के लापता लोगों के पक्ष में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों नेताओं को इस बात का डर सता रहा है कि अगर बाहरी लोगों के समर्थन में इस मुद्दे को उठाया गया तो प्रदेश की जनता नाराज हो जाएगी. ऐसे में वोट बैंक के प्रभावित होने का खतरा हो सकता है. हालांकि अल्मोड़ा से कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप टम्टा ने इस मुद्दे को लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव सुभाष कुमार से बातचीत की है.

उन्होंने स्पष्ट कहा कि बाहरी लोगों को भी स्थानीय लोगों की तरह पांच-पांच लाख की राशि दी जानी चाहिए. मगर इस दिशा में मुख्य सचिव ने भी चुपी साध ली. भाजपा के वरिष्ठ नेता हरबंस कपूर ने भी माना कि कांग्रेस सरकार गलत कर रही है. इस तरह की भेदभाव की नीति नहीं अपनानी चाहिए. बाहरी को स्थानीय लोगों की तरह ही पांच-पांच लाख रुपये दिये जाने चाहिए.

वरना अब बाहरी प्रांतों के लोग उत्तराखंड जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे. वैस भी पर्यटन पर ही उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति टिकी हुई है. आपदा के बाद से उत्तराखंड में पर्यटकों की संख्या में काफी कमी आई है. उत्तराखंड में मैदानी मूल के लोगों की संख्या काफी है और कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ही इस बात से चिंतित हैं कि यदि यह मुद्दा गरमा गया तो कम से कम वह संसदीय क्षेत्र निश्चित रूप से प्रभावित होंगे.

उत्तराखंड सरकार ने बाहरी प्रांतों के लापता हुए लोगों के परिजनों के साथ मुआवजा आवंटन में ‘ भेदभाव’ की नीति अपनाई. आपदा के बाद सरकार ने ऐलान किया कि स्थानीय लोगों की तरह ही बाहरी लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये दिये जाएंगे, लेकिन घोषणा के एक पखवाड़े बाद ही गुपचुप तरीके से राज्य कैबिनेट ने यह निर्णय लिया कि स्थानीय लोगों को पांच-पांच लाख और बाहरी लोगों को साढ़े तीन-तीन लाख रुपए दिये जायेंगे.

अधिकारिक रूप से आपदा के दौरान लापता हुए लोगों की कुल संख्या 4119 बताई गई है. इसमें बाहरी प्रांतों के कुल 3175 लोगों को राज्य सरकार ने लापता माना है. इसमें 1587 पुरुष,1335 महिलाएं एवं 253 बच्चे शामिल हैं. अब तक राज्य सरकार ने संबंधित राज्यों को 2,722 लापता लोगों के मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किये हैं.

राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अभी 453 लापता लोगों के परिजनों को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होने बाकी हैं. जब तक मृत्यु प्रमाणपत्र राज्य सरकार अन्य प्रांतों की सरकारों को नहीं भेजेगी, तब तक वहां के निवासियों को भी मुआवजा नहीं मिल पायेगा. राज्य सरकार मृत्यु प्रमाणपत्र के साथ साढ़े तीन लाख रुपये का चेक भी भेजती है. बाहरी प्रांतों के लापता लोगों के परिजनों को साढ़े तीन लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से ही मुआवजा दिया गया है.

मानकों के मुताबिक प्रधानमंत्री राहत कोष के दो लाख, केंद्रीय आपदा के तहत 1.50 लाख और मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत 1.50 लाख रुपये स्थानीय हों या बाहरी सभी को मिलना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने बाहरी प्रांतों के लोगों को सीएम राहत कोष से मिलने वाली 1.50 लाख राशि (उत्तराखंड सरकार का शेयर) नहीं दी है. राज्य सरकार का कहना है कि संबंधित राज्यों की ओर से शेष 1.50 लाख की राशि दी जाएगी. मृतक जिस राज्य के निवासी हैं वहां की सरकारें तो मृतकों के परिजनों को अपने हिसाब से जो भी आवश्यक मुआवजा है देगी, मगर राज्य सरकार ने केवल साढ़े तीन लाख के ही चेक संबंधित राज्यों को भेजे हैं.

आपदा के दौरान कुल 22 राज्यों के पर्यटक उत्तराखंड से लापता हुए हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के 1150, मध्य प्रदेश के 542, राजस्थान के 511, दिल्ली के 216, महाराष्ट्र के 163, गुजरात के 129, हरियाणा के 112, आंध्र प्रदेश के 86, बिहार के 58, झारखंड के 40, पंजाब के 33, पश्चिम बंगाल के 36, छत्तीसगढ़ के 28, उड़ीसा के 26, तमिलनाडु के 14, कर्नाटक के 14, मेघालय के छह, चंडीगढ़ के चार, जम्मू-कश्मीर के तीन, केरल के दो, पांडिचेरी के एक और असम का एक व्यक्ति लापता लोगों में शामिल हैं.

सबसे ज्यादा नेपाल के कुल 92 लोग लापता हैं, जिनमें 79 पुरुष, 11 महिलाएं एवं दो बच्चे हैं. उत्तराखंड के कुल 852 लोग लापता हुए हैं. इनमें 647 पुरुष, 37 महिलाएं और 168 बच्चे हैं. करीब 20 सरकारी कर्मचारी भी लापता है. इन सभी को राज्य सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये दिये हैं. बाहरी प्रांतों के लापता लोगों को मुआवजा की राशि साढ़े तीन लाख मिलने से मैदानी लोगों में बेहद नाराजगी है.

अमर नाथ सिंह
एसएनबी


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