उत्तराखंड : कानून-व्यवस्था बनी मुद्दा
किसी भी चुनाव में प्रदेश में सत्तासीन दलों को मुद्दों की कई कसौटियों पर इम्तिहान देना पड़ता है.
कानून-व्यवस्था बनी मुद्दा |
सत्ताधारी दल को एक तरफ जहां विपक्षी दलों के सियासी चक्रव्यूह को तोड़ना पड़ता है, वहीं जनता के आरोपों की मार भी झेलनी पड़ती है. 16वीं लोकसभा के गठन के लिए हो रहे इस चुनाव में उत्तराखंड कांग्रेस को भी कमोबेश इसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है.
राज्य में दो साल से सत्ता संभाल रही कांग्रेस के उम्मीदवारों को केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियों को लेकर दो तरह के मोच्रे पर मुकाबला करना पड़ रहा है, पर पार्टी उम्मीदवारों को सबसे कड़ा मुकाबला प्रदेश में गिरती कानून-व्यवस्था को लेकर करना पड़ रहा है. विपक्ष और जनता मिलकर बीते दो सालों के दौरान हुई प्रमुख वारदातों को लेकर कांग्रेस पर लगातार हमला कर रहे हैं.
इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 7 मई को होने वाले मतदान में कांग्रेस को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर भी ‘इम्तिहान’ पास करना होगा. 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त देकर सत्ता हथियाने में सफलता पायी, मगर अंदरूनी उठा-पटक और नेताओं के ‘स्वहित’ में उलझे रहने के कारण शासकीय व्यवस्था ‘दुर्बल’ होती गई. अनुभवी व काबिल अफसरों के बजाय ‘गणोश’ परिक्रमा में पारंगत नौकरशाही ही सरकार पर हावी होती गई.
लिहाजा राज्य में अन्य व्यवस्थाओं के साथ-साथ कानून-व्यवस्था भी पटरी से उतरती गई. सरकार की नाकामी का असर वैसे तो सभी जिलों पर पड़ा, मगर मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत की सियासी भूमि हरिद्वार के अलावा देहरादून व ऊधमसिंह नगर जैसे महत्वपूर्ण जिलों में व्यवस्था चरमरा गई. आए दिन होने वाली हत्या, अपहरण, बलात्कार, लूट व फिरौती मांगने जैसी घटनाओं के बढ़ते आंकड़ों से जनता कराह उठी. विशेषकर मुख्यमंत्री के सियासी घर हरिद्वार में तो मानो आपराधिक घटनाओं में बाढ़ सी आ गई. कमोबेश ऐसी ही स्थिति देहरादून की भी रही.
एक बार यह भी देखने को मिला कि हरिद्वार जैसे संवेदनशील जिले में पुलिस की कमान ऐसे अधिकारी को दे गयी, जिनकी खुद की सुरक्षा में दर्जनों ‘ब्लैक कैट’ कमांडो लगे थे और उन्होंने आमजन को भगवान भरोसे छोड़ दिया था. लोगों ने इस अधिकारी की कार्यशैली की शिकायत कई बार तत्कालीन मुख्यमंत्री तक की, तब जाकर उस अधिकारी को हटाया. ये ऐसे उदाहरण हैं, जो इस चुनावी ‘जंग’ में कूदे कांग्रेसी ‘सैनिकों’ के पसीने छुड़ा रहे हैं. हालांकि पार्टी की सरकार के दो साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर कांग्रेसी नेता भी विपक्षी वार की धार को कुंद करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं.
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