गंगा-यमुना के देश में 60 फीसद खेत प्यासा

Last Updated 02 Feb 2013 04:20:10 PM IST

गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों वाले देश में 60 प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई के साधन ही नहीं हैं.


खेत (फाइल)

अरबों रुपये खर्च करने के बावजूद भी 80 मिलियन हेक्टेयर कृषि रकबा को नहरों और गूलों से सिंचाई का पानी नसीब नहीं हो रहा है. हालात यह कि पंजाब और अन्य कृषि प्रधान राज्यों में भूजल का स्तर निरंतर नीचे गिर रहा है.

वजह यह कि किसान भूजल को पेयजल से अधिक सिंचाई के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं. पानी पर निर्भर रहने वाली गेहूं और धान की फसलों का उत्पादन भी कम हो रहा है.

खास बात यह कि मानसून आधारित मंडवा, बाजरा और खुदरा दाने वाली अन्य फसलों के उत्पादन का ग्राफ भी नीचे लुढ़क रहा है. जी हां, यह तस्वीर है कृषि प्रधान देश भारत की. आधे से अधिक कृषि रकबा पर सिंचाई के पर्याप्त साधन ही नहीं हैं.

यद्यपि सरकारी फाइलों में प्रति हेक्टेयर कृषि भूमि पर सिंचाई का खर्चा Rs दो लाख अंकित किया जा रहा है. लेकिन धरातल पर इसकी हकीकत कुछ और है.

राष्ट्रीय असिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के आकलन से साफ होता है कि असिंचित कृषि भूमि को पानी मुहैया (सिंचाई) कराने के लिए न तो केंद्र सरकार प्रयासरत हैं और ना ही राज्यों की सरकारें.

प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. जेएस समारा भी दबी जुबां में इस बात को स्वीकार करते हैं. शुक्रवार को एक सेमिनार में शिरकत करने दून पहुंचे डा. समारा ने खास बातचीत में कहा कि विभिन्न राज्यों में सिंचित खेती पर अधिक निवेश किया जा रहा है.

करोड़ों की राशि खर्च कर नहर और गूल बनाए जा रहे हैं. प्रति हेक्टेयर सिंचाई के लिए करीब दो लाख रुपये सरकारी तिजोरी से खर्च होते हैं. लेकिन इसका प्रतिफल मिल नहीं रहा है.

सिंचित खेती की अपेक्षा असिंचित खेती में अधिक निवेश करने की जरूरत है. प्राधिकरण ने केंद्रीय योजना आयोग को ऐसा सुझाव भी दिया है. डा. समारा के मुताबिक सिंचाई के लिए जल संसाधन उपलब्ध नहीं होने से साठ फीसद कृषि रकबा असिंचित है. इसमें दस प्रतिशत रकबा को सिंचित किया जा सकता है.
 



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment