तीन-तलाक की सजा तीन वर्ष नहीं आठ वर्ष की जाए: मुस्लिम महिलाए
तीन तलाक से प्रभावित मुस्लिम औरतों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि गैर शरई एवं गैर कानूनी ढंग से एक ही नशिस्त में तीन तलाक देने वाले शौहर को तीन साल की नहीं बल्कि पांच से आठ वर्ष की सजा देने का कानून में प्रावधान किया जाए.
(फाइल फोटो) |
उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने वाली तलाकशुदा मुस्लिम औरतों में शामिल सहारनपुर की आतिया साबरी ने आज कहा कि न्यायालय की रोक के बावजूद मुस्लिम औरतों को एक ही मीटिंग में तीन तलाक दिया जा रहा है. फतवा देने वाली इस्लामिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम उसे जायज भी ठहरा रही है. ऐसे में ऐसे बद दिमाग शौहरों को कडी से कडी सजा दी जाए जिससे सदियों से चली आ रही इस कुप्रथा पर प्रभावी ढंग से रोक लग सके.
देवबंद के मुहल्ला सराय पीरजादगान की रहने वाली तलाकशुदा नजमा ने तीन तलाक पर कानून बनाए जाने का समर्थन किया लेकिन तीन साल की सजा को नाकाफी बताया. नजमा ने कहा कि सजा की मियाद आठ साल की जाए तो बेहतर होगा. गत 26 नवंबर 2013 को नजमा को उसके पति दिलनवाज ने सऊदी अरब से फोन पर ही उसे तीन तलाक दे दिया था. उसका निकाह देवबंद थाने के तहत ही गांव लबकरी में दिलनवाज के साथ हुआ था.
शादी के बाद दिलनवाज रोजगार के लिए सऊदी अरब चला गया था. वह एक पुा की मां है और तलाक दिए जाने के बाद से देवबंद में अपने मायके में रह रही है. उसकी ओर से देवबंद कोतवाली में दहेज उत्पीडन की रिपरेट दर्ज कराई गई थी लेकिन पुलिस से उसे कोई न्याय नहीं मिला. उसने तीन तलाक पर रोक लगवाने और अब सजा की व्यवस्था कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताते हुए उन्हें मुस्लिम औरतों को सशक्त किए जाने वाला नेता बताया.
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