जब रामलीला देख अकबर की आंखें हुई थीं नम
सदियों पहले इलाहाबाद की ऐतिहासिक रामलीला में मर्यादा पुरूषोत्तम के वनवास और राजा दशरथ की मृत्यु का करूण प्रसंग देखकर बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की आंखे बरबस ही नम हो गयीं थी.
(फाइल फोटो) |
तत्कालीन नामचीन लेखक निजामुउद्दीन अहमद ने तबकाते अकबरी में इलाहाबाद की रामलीला का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है गंगा जमुनी एकता के पैरोकार बादशाह अकबर यहां आयोजित रामलीला में राम वनवास और दशरथ की मृत्यु लीलाएं देख कर भावुक हो गये थे.
मोबाइल फोन और इंटरनेट के दौर में 'रामलीला' के प्रति युवाओं का आकषर्ण भले ही कम हुआ हो मगर उनकी आंखे बरबस ही नम हो गयीं थी.
रामलीला इस मार्मिक मंचन से बादशाह अकबर इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने विशेष फरमान जारी कर वर्तमान सूरजकुण्ड के निकट कमौरी नाथ महादेव से लगे मैदान को रामलीला करने के लिए दे दिया था.
मुगल शासकों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसने हिन्दू मुस्लिम दोनों संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की. अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा. उन्हें साहित्य में भी रुचि थी. उन्होंने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों और ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था.
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