उत्तर प्रदेश में सरकारी संरक्षण में चल रहे 140 अवैध बूचड़खाने
उत्तर प्रदेश में 140 बूचड़खाने (स्लाटर हाउस) अवैध रूप से सरकारी संरक्षण में चल रहे हैं. यह सभी स्लाटर हाउस नगर निगम/नगर पालिका द्वारा संचालित किये जा रहे हैं.
(फाइल फोटो) |
इनमें कई स्लाटर हाउस ऐसे हैं, जिन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 12 साल पहले बंद करने के आदेश दे दिये थे. बंदी आदेश का अनुपालन नगर निगम व जिला प्रशासन कराता है, लेकिन राजनीतिक संरक्षण के कारण इन्हें बंद कराना तो दूर इनके पास फटकने तक की हिम्मत अफसर नहीं जुटा पाये.
आवासीय इलाकों में चल रहे इन बूचड़खानों से निकलने वाला खून व अन्य अंग आस-पास ही सड़ते रहते हैं. इसके चलते पास-पड़ोस में रहने वालों का जीवन नारकीय हो जाता है.
बोर्ड के दबाव में प्रदेश के अधिकतर निजी स्वामित्व वाले स्लाटर हाउस आधुनिक तकनीक से लैस हो चुके हैं, लेकिन सरकारी बूचड़खाने अब भी बाबा-आदम के जमाने के संयंत्रों का प्रयोग करके बोर्ड के आदेशों की खिल्ली उड़ा रहे हैं. नगर निकाय व जिला प्रशासन के आगे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हैसियत नख-दंत विहीन शिकारी जैसी है.
नियमानुसार प्रदूषण नियंत्रण के मानक पूरे न करने पर बोर्ड अपनी शक्तियों का प्रयोग करके संबंधित इकाई को बंद करने का आदेश जारी करता है. इस आदेश को क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी नगर निकाय व जिला प्रशासन की होती है. जिला प्रशासन का सहयोग न मिलने पर बोर्ड के बंदी आदेश की हैसियत महज कागजी रह जाती है.
मौजूदा समय में प्रदेश में 185 बूचड़खाने चल रहे हैं. इनमें 145 नगर निगम/नगर पालिका व नगर पंचायत द्वारा संचालित किये जा रहे हैं तथा 40 बूचड़खाने निजी स्वामित्व वाले हैं. निजी स्वामित्व के 40 व नगर निकाय द्वारा संचालित पांच बूचड़खानों को बोर्ड ने कंसेन्ट (संचालन सहमति) दे रखी है.
बोर्ड की सख्ती से निजी क्षेत्र के स्लाटर हाउसों में माडर्न टेक्नोलॉजी की मशीनें लगा दी गयी हैं, लेकिन यह सख्ती सरकारी नियंत्रण में चलने वाले स्लाटर हाउसों पर काम नहीं आयी. प्रदूषण नियंत्रण मानकों को पूरा न करने पर बोर्ड गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, गोरखपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, वाराणसी व इलाहाबाद सहित 48 शहरों में चल रहे 140 सरकारी स्लाटर हाउसों को बंद करने का निर्देश जारी कर चुका है, लेकिन नगर निकाय व जिला प्रशासन ने इन आदेशों को क्रियान्वित नहीं किया.
बंदी आदेश के बावजूद नगर निगम/नगर पालिका के नियंत्रण वाले इन स्लाटर हाउसों में अवैध रूप से जानवरों को काटा जा रहा है. इस बाबत राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एससी यादव बताते हैं कि नगर निगम व नगर पालिका द्वारा संचालित अधिकतर स्लाटर हाउस वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं, मानक न पूरे करने पर बोर्ड ने इनके खिलाफ बंदी आदेश जारी कर रखे हैं, लेकिन नगर निकाय व जिला प्रशासन का सहयोग न मिलने से बंदे आदेशों का अनुपालन नहीं हो पा रहा है.
45 कत्लखानों को मिली है संचालन की सहमति
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने निजी स्वामित्व वाले 40 तथा नगर निकाय द्वारा संचालित पांच बूचड़खानों को संचालन की सहमति दे रखी है. बोर्ड प्रशासन की मानें तो बोर्ड ने जिन कत्लखानों को कंसेन्ट दे है वहां पर प्रदूषण नियंत्रण के मानकों को पूरा किया जा रहा है. बोर्ड के दावों के विपरीत अधिकतर बूचड़खानों में पर्यावर्णीय मानकों का पालन जमीनी तौर पर कम फाइलों में अधिक हो रहा है.
नगर निगम मौलवीगंज व कसाईबाड़ा में चला रहा स्लाटर हाउस
राजधानी लखनऊ में नगर निगम द्वारा मौलवीगंज व कसाईबाड़ा में स्लाटर हाउस संचालित किये जा रहे हैं. इससे पहले मोतीझील व सदर के बूचड़खानों में पशुओं को काटा जाता था. मोती झील को नगर निगम ने गिरा दिया था तथा सदर के बूचड़खाने पर ताला लगा हुआ है. ताला लगे होने के बाद भी यहां पर चोरी-छुपे पशुओं को काटा जा रहा है.
प्रदूषण नियंत्रण मानकों का उल्लंघन करके बूचड़खानों का संचालन किये जाने पर बोर्ड ने अगस्त 2013 में स्लाटर हाउस के खिलाफ बंदी आदेश जारी किये थे. बोर्ड प्रशासन ने बंदी आदेश को क्रियान्वित कराने के लिए जिला प्रशासन व नगर निगम को पत्र लिखा था. बोर्ड प्रशासन का आरोप है कि बंदी आदेश जारी होने के बाद भी जिला प्रशासन व नगर निगम कार्रवाई नहीं कर रहा है.
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