समाजवादी परिवार में घमासान: अखिलेश ने शिवपाल को बर्खास्त किया, मुलायम ने रामगोपाल को निकाला

Last Updated 23 Oct 2016 06:32:53 PM IST

उत्तर प्रदेश के समाजवादी कुनबे में जारी वर्चस्व की जंग चरम पर पहुंच गयी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा उनके पिता सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का टकराव खुलकर सामने आ गया है.


अखिलेश यादव तथा मुलायम सिंह यादव
अखिलेश ने अपने मुकाबिल खड़े चाचा शिवपाल सिंह यादव के साथ-साथ उनके करीबी तीन अन्य मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया, वहीं सपा मुखिया ने अखिलेश के सबसे बड़े हिमायती बताये जाने वाले पार्टी के ‘थिंक टैंक’ रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बाद पार्टी में टूट की आशंकाएं और बलवती हो गयी हैं.
 
मुख्यमंत्री ने विधानमण्डल दल की बैठक में वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल तथा उनके करीबी माने जाने वाले मंत्रियों ओमप्रकाश सिंह, नारद राय तथा स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री सैयदा शादाब फातिमा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया.
 
विधानमण्डल दल की बैठक में 229 में 183 विधायक शामिल हुए. सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने इस बैठक में शिवपाल और उनके समर्थक विधायकों तथा मंत्रियों को नहीं बुलाया था.
 
तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच इन मंत्रियों के बर्खास्तगी के चंद घंटों बाद सपा मुखिया ने पार्टी के ‘थिंक टैंक’ कहे जाने वाले और चाचा-भतीजे के द्वंद्व में मुख्यमंत्री अखिलेश के साथ मजबूती से खड़े रहे अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को पार्टी से छह वर्ष के लिये निकाल दिया.
 
सपा में टूट की बढ़ती आशंकाओं के बीच पार्टी मुखिया मुलायम ने शाम को कोर ग्रुप की बैठक बुलायी.
 
‘समाजवादी परिवार’ के भविष्य के लिहाज से निर्णायक रहने वाला यह घटनाक्रम ऐसे वक्त हुआ है जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव सोमवार को पार्टी के सभी विधायकों, मंत्रियों और विधान परिषद सदस्यों के साथ बेहद अहम बैठक करने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस बैठक में कई बड़े फैसले लिये जा सकते हैं.
 
रविवार को के घटनाक्रम से चाचा-भतीजे के खेमों में बढ़ी दूरी के बीच, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश सरकार के बहुमत पर सवाल खड़े करते हुए उनके इस्तीफे की मांग की और कहा कि बहुमत साबित करने तक राज्यपाल को इस सरकार के किसी भी नीतिगत फैसले लेने पर रोक लगा देनी चाहिये.
 
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समर्थन में रविवार को सपा कार्यकर्ताओं को खुला पत्र लिखने वाले रामगोपाल के निष्कासन की जानकारी देने के लिये आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने रामगोपाल पर गम्भीर आरोप लगाये और कहा कि वह पूरी तरह भाजपा से मिले हुए हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके षड्यंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं.
 
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रामगोपाल अपने सांसद पुत्र अक्षय यादव और बहू को यादव सिंह भ्रष्टाचार प्रकरण के मामले में बचाने के लिये यह सब कर रहे हैं.
 
शिवपाल ने अपनी बर्खास्तगी के फौरन बाद अखिलेश को संदेश देने वाले बयान में कहा था कि उन्हें बर्खास्तगी की कोई फिक्र नहीं है. जनता उनके साथ है और वर्ष 2017 में नेताजी (मुलायम) के नेतृत्व में राज्य में सपा की सरकार बनेगी.
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सूत्रों के मुताबिक अखिलेश ने विधानमण्डल दल की बैठक में कहा कि कुछ बाहरी लोग उनके तथा उनके पिता सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के बीच दूरियां बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अखिलेश ने सपा के राज्यसभा सदस्य अमर सिंह का नाम लेते हुए कहा कि जो भी मंत्री या नेता उनका साथ दे रहे हैं, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा.
 
इस बीच, सपा के वरिष्ठ नेता एवं सरकार के काबीना मंत्री आजम खां ने कहा कि एक शख्स ने पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचा दिया है. यह तो होना ही था.
 
उन्होंने अपने धुर विरोधी सपा के राज्यसभा सदस्य अमर सिंह की तरफ इशारा करते हुए कहा ‘‘हमने हमेशा महसूस किया कि ऐसा एक दिन जरूर आयेगा. यह बहुत दुखद है. पार्टी के समझदार और दूरदर्शी लोगों को इस बात का एहसास था कि ये दिन आएगा. एक शख्स से नुकसान बहुत हो गया.’’
 
समाजवादी कुनबे में लगी चिंगारी पिछले काफी समय से सुलग रही थी लेकिन करीब एक महीने के दौरान यह भड़क गयी और अखिलेश तथा शिवपाल के बीच जंग रह-रहकर तेज होती रही है.
 
इस दौरान पार्टी नेतृत्व के स्तर पर ऐसे कई फैसले लिये गये जो अखिलेश को अखरे. इनमें अखिलेश के करीबी चार विधानपरिषद सदस्यों तथा कई अन्य युवा नेताओं की बर्खास्तगी, भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त किये गये मंत्री गायत्री प्रजापति की सपा मुखिया के हस्तक्षेप के बाद मंत्रिमण्डल में वापसी और विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक दल द्वारा किये जाने का मुलायम का बयान शामिल हैं.
 
सूत्रों के मुताबिक सपा प्रदेश नेतृत्व की एक के बाद एक कार्रवाइयों से यह संदेश गया है कि वह अखिलेश के खिलाफ काम कर रहा है. ऐसे में इस बात की पूरी उम्मीद थी कि विधानमण्डल दल की रविवार की बैठक में अखिलेश आर-पार की लड़ाई का संदेश देते हुए कोई बड़ी कार्रवाई कर सकते हैं.
 
अखिलेश को नाराज करने वाले ताजा मामले में सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव को चिट्ठी लिखकर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह को शनिवार को सपा से निकाल दिया गया. सिंह को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है.
 
उदयवीर सिंह ने अपने निष्कासन के बारे में कहा था कि नेताजी (मुलायम) पार्टी के संरक्षक है. मुझे पूरा भरोसा है कि वह सबके साथ न्याय करेंगे, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ भी न्याय करेंगे. अफसोस इस बात का है कि नेताजी को मंचों से गाली देने वाले लोग इस वक्त पार्टी में मौजूद हैं और पत्र लिखने वाले शुभचिंतकों को पार्टी से निकाला जा रहा है. नेताजी जब भी कभी गम्भीरता से विचार करेंगे तो जरूर सोचेंगे.
 
बताया जाता है कि रविवार को मुख्यमंत्री के आवास पर बैठक में जमा हुए पार्टी विधायकों का मिजाज मुखर था.
    
अखिलेश ने शनिवार को ही शिवपाल द्वारा बुलाई गयी सपा के जिला और शहर अध्यक्षों की एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग नहीं लिया था. इसके बजाय उन्होंने बाद में अपने सरकारी आवास पर प्रतिनिधियों से अलग से मुलाकात की थी.
    
सपा के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा और रेवती रमण सिंह ने इस संकट की स्थिति का समाधान निकालने के लिए मध्यस्थता का प्रयास किया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.
    
शिवपाल और अखिलेश के बीच तल्खी का दौर गत जून में उस समय शुरू हुआ था जब माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाले कौमी एकता दल (कौएद) का शिवपाल की पहल पर सपा में विलय किया गया जिससे अखिलेश नाराज थे. कुछ दिन बाद इस विलय के रद्द होने से यह कड़वाहट और बढ़ गयी थी.
    
शिवपाल ने कुछ दिन बाद प्रदेश में जमीनों पर अवैध कब्जों को लेकर इस्तीफे की पेशकश की थी. गत 15 अगस्त को सपा मुखिया ने मैदान में उतरते हुए शिवपाल की हिमायत की थी और कहा था कि अगर शिवपाल पार्टी से चले गये तो सपा टूट जाएगी.
    
अखिलेश ने गत 12 सितम्बर को भ्रष्टाचार के आरोप में तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति तथा एक अन्य मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया था. ये दोनों ही सपा मुखिया के करीबी माने जाते हैं. मुलायम के कहने पर बाद में प्रजापति की मंत्रिमण्डल में वापसी हो गयी थी. इसे मुख्यमंत्री अखिलेश के लिये करारा झटका माना गया था.
    
अखिलेश और मुलायम के बीच टकराव सामने आने के बीच इस तरह की अटकलें भी शुरू हो गयीं कि मुख्यमंत्री राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी या प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से नये दल का गठन कर सकते हैं जिसका चुनाव चिह्न मोटरसाइकल होगा.
    
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने 13 सितम्बर को शिवपाल के करीबी माने जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटाकर अपने पसंदीदा अधिकारी राहुल भटनागर को यह पद दे दिया था. उसके फौरन बाद मुलायम ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल को यह जिम्मेदारी दे दी थी. इससे नाराज मुख्यमंत्री ने शिवपाल से उनके महत्वपूर्ण विभाग छीन लिये थे.
    
 

अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद पर वापस लेने से सपा मुखिया के इनकार से पार्टी के युवा नेताओं में नाराजगी की लहर दौड़ गयी और वे पार्टी राज्य मुख्यालय के सामने सड़क पर उतर आये, जिसके बाद तीन विधान परिषद सदस्यों समेत कई युवा नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया.
    
हाल में मुलायम द्वारा कौएद के सपा में विलय को बहाल किये जाने सम्बन्धी शिवपाल की घोषणा को अखिलेश की एक और पराजय के तौर पर देखा गया.
    
पार्टी में अखिलेश के हिमायती गुट का आरोप है कि यह सब मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने और सपा में उनकी स्थिति कमजोर करने के लिये किया जा रहा है.
    
मुख्यमंत्री के पैरोकार समझे जाने वाले पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने पिछले दिनों सपा मुखिया को लिखे पत्र में कहा था कि मुलायम शिवपाल को निष्कासित युवा नेताओं को पार्टी में वापस लेने को कहें और विधानसभा चुनाव के टिकटों के बंटवारे में मुख्यमंत्री को भी अधिकार दें.

भाषा


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