सरकारी उपेक्षा से सिमट रहा है भदोही का कालीन उद्योग

Last Updated 30 Nov 2015 02:05:46 PM IST

दस लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला उत्तर प्रदेश में भदोही का कालीन उद्योग सरकारी उपेक्षा और चीन के सामानों की बढ़ी आमद की वजह से सिमटता जा रहा है.


सरकारी उपेक्षा से सिमट रहा है भदोही का कालीन उद्योग

करीब चार हजार करोड़ रुपये का सालाना विदेश से कारोबार करने वाले इस क्षेत्र में बुनियादी आवश्यकताओं का जबरदस्त अभाव है.

यहां के कालीन कारोबारियों का मानना है कि चीन के उत्पादों से टक्कर लेने के लिए इस उद्योग को केन्द्र को और मदद देनी ही होगी. कालीन निर्यातक अमजद खां ने बताया कि इस उद्योग में चीन के बढे दखल के कारण निर्यात में गिरावट आयी है.

अमजद ने कहा कि चीन से कई गुना बेहतर कालीन बनाने के बावजूद बाजार में उसका दबदबा बढा है, क्योंकि उसकी कालीन यहां से सस्ती है. चीन मशीन से कालीन तैयार करवाता है, जबकि यहां हाथ से कालीन की बुनायी की जाती है.

अमजद का दावा है कि भारत की अपेक्षा चीन का कालीन टिकाऊ नहीं है. चीन में बनी कालीन में फाइबर ऊन या धागों का इस्तेमाल होता है, जबकि इस क्षेत्र में शुद्ध ऊन का प्रयोग किया जाता है. चीन के कालीन पर नंगे पांव चलने से नुकसान हो सकता है. इस सबके बावजूद चीन के कालीन का मूल्य यहां बने कालीनों से कम होने के कारण उसकी बिक्री अधिक होती है.

करीब 20 वर्षो से इस उद्योग से जुडे और 2011 में युवा उद्यमी के रुप में सम्मानित हो चुके अमजद कहते हैँ कि बुनियादी आवश्यकताओं की यहां इस कदर कमी है कि विदेशी ग्राहकों को वाराणसी में ठहरना पड़ता है.

भदोही और मिर्जापुर में विदेशी कारोबारियों के लिए ठहरने की सही जगह नहीं है. आने-जाने के लिए सडके दुरुस्त नहीं है और न ही रेल यातायात के सटीक साधन है. बिजली का भी अभाव है. जनरेटर से ही ज्यादातर काम चलाना पड़ता है. यह उद्योग शहर के साथ ही गांव में भी लगे हुए हैं. गांव में लोग कालीन बनाकर शहर में कारोबारी को देते हैं. गांव में बिजली चार छह घंटे से अधिक नहीं आती, जिसका सीधा प्रभाव इस उद्योग पर पड़ रहा है.

कालीन निर्यातक ने कहा कि सरकारी कन्टेनर निजी कन्टेनरों की अपेक्षा महंगे मिलते हैं. सरकारी कन्टेनर से कालीन कानपुर होते हुए मुम्बई पहुंचता है, जबकि निजी क्षेत्र के कन्टेनर भदोही से सीधे मुम्बई जाते है और वहां से कालीन हवाई जहाज या पानी के जहाज के जरिये विदेशों में भेज दिये जाते हैं.

अमजद ने कहा कि निजी क्षेा के कन्टेनरों की संख्या कम होने के कारण लोग सरकारी डिपो की मदद लेते हैं. सरकारी कन्टेनर यदि सस्ते हो जाएं तो यहां के उद्योग को और लाभ मिल सकता है. सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए कारोबारी जामतौर पर अपना उत्पाद सरकारी कन्टेनर से ही भेजते हैं.

उन्होंने बताया कि भदोही-मिर्जापुर क्षेा में कालीन उद्योग की पचास हजार से अधिक इकाइयां लगी हुई है, जिसमें करीब ढाई सौ इकाइयों से कालीन विदेशों में निर्यात किया जाता है.

अमजद ने कहा कि आसपास के ही नहीं बल्कि बिहार, उडीसा, झारखण्ड, हरियाणा, राजस्थान समेत कई अन्य प्रान्तों के मजदूर यहां काम करते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की पहल पर यहां बन रहे ‘एक्सोमार्ट’ से कुछ आशा जगी है. इसका निर्माण पूरा हो जाने के बाद यहां के कालीन कारोबारियों को अपना माल लेकर दर-दर भटकना नहीं पडेगा. कालीन यहीं बाजार में मिल जाएगा. खरीददार यहीं आएंगे. सरकार उन्हे आवश्यक सुविधाएं मुहैया करायेगी.

दूसरी ओर, कारपेट प्रमोशन कौसिल के सदस्य अनिल कुमार सिंह ने कहा है कि इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है. पहले की तरह भारत फिर से इस क्षेत्र में सबसे बडा निर्यातक बनेगा.

उन्होंने कहा कि चीन में केवल मशीन से बनने की वजह से वहां के कालीन की मांग धीरे-धीरे घट रही है. सिंह ने बताया कि चीन के कालीन की मांग कम होने की कारणों की पडताल करने वहां का एक प्रतिनिधमंडल दिनदिवसीय दौरे पर गत 11 अक्टूबर को यहां आया था.

उन्होंने कहा कि सन्तोष की बात है कि भारतीय कालीन अब चीन में भी अपनी जगह बना रहा है. हाल ही में यहां से शंघाई कालीन भेजा गया था, हालांकि उसकी संख्या कम ही थी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कौशल विकास योजना को यहां सही तरीके से धरातल पर लाया जाए तो यहां मजदूरों को काफी लाभ मिल सकता है. सिंह ने कहा कि यहां निर्मित कालीन में 70 फीसदी से अधिक काम हाथों से किया जाता है. बहुत थोडा सा काम मशीन के जरिये होता है कौशल विकास योजना के तहत इन मजदूरो को काम में और निपुण बनाया जा सकता है.

उन्होंने कहा कि आगामी एक अप्रैल से इस उद्योग का ब्याज दर साढे सात प्रतिशत हो जाने से भी फायदा होगा. अभी यहां के कालीन कारोबारियों को ऋण लेने पर करीब 10 प्रतिशत ब्याज अदा करना पडता है.

सीपीसी सदस्य सिंह ने कहा कि ‘ड्यूटी ड्रा बैक’ योजना लागू होने से भी लाभ मिलेगा. इसके तहत आयात होने वाले रंग आदि सामानो पर ‘ड्यूटी ड्रा बैक’ के जरिये उत्पाद शुल्क के कुछ अंश की वापसी होगी.



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