विन्ध्याचल मंदिर के अधिग्रहण के खिलाफ पंडा समुदाय होने लगा है लामबंद
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में विश्व प्रसिद्ध विन्ध्याचल मंदिर के अधिग्रहण की सुगबुगाहट के बीच इसके खिलाफ पंडे लामबंद होने लगे है.
विन्ध्याचल मंदिर के अधिग्रहण के खिलाफ पंडा समुदाय होने लगा है लामबंद (फाइल फोटो) |
राज्य सरकार द्वारा पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण मंदिर के अधिग्रहण के लिये किये जा रहे प्रयासों की चर्चा से बौखलाये स्थानीय विन्ध्याचल धाम के पंडों की लामबंदी जोर पकडने लगी है. पंडे किसी भी हालत में मंदिर अधिग्रहण के खिलाफ हैं.
इससे पहले भी सरकार करीब छह बार मंदिर के अधिग्रहण के प्रयास कर चुकी है मगर हर बार किसी न किसी कारण से उसे अपने कदम वापस खीचने पड़े है.
असल में राज्य सरकार ने काशी विनाथ मंदिर की तर्ज पर मॉ विन्ध्यवासिनी मंदिर और उससे सम्बद्ध सभी मूर्तियों सम्पत्तियों के रखरखाव और दर्शनार्थियों की सुरक्षा एवं सुविधा के लिए बोर्ड आफ ट्रस्टी का गठन करने का निर्णय लिया है.
इससे पहले वर्ष 2000 में तत्कालीन मुख्य सचिव योगेन्द्र नारायण के पहल पर श्री मॉ विन्ध्यवासिनी मंदिर अधिनियम 2000 का बाकायदा कानूनी प्रारूप तैयार करके कैबिनेट के सम्मुख प्रस्तुत भी कर दिया गया था. इस अधिनियम में सरकार ने श्रद्धालु दर्शनार्थियों द्वारा चढ़ावे से आने वाले पैसों का दर्शनार्थियों की सुविधा और मंदिर के विकास पर खर्च करने का प्रावधान था.
अधिनियम में काशी विश्वनाथ मंदिर के तर्ज पर श्रृगारियां, पुजारी आदि की बाकायदा नियुक्ति होनी थी, पर पंडो के दबाव के आगे सरकार को झुकना पड़ा और मामला ठंडे बस्ते में चला गया था.
इसके बाद वर्तमान में प्रदेश के पर्यटक निदेशक अमृत अभिजात ने मिर्जापुर के जिलाधिकारी रहते हुए मंदिर के अधिग्रहण का काफी प्रयास किया था पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली.अभी ज्यादा दिन नहीं हुए धर्मार्थ कार्य मंत्री आनंद सिंह ने भी इस बारे में मुहिम शुरू की थी पर मामला ढाक के तीन पात ही सिद्ध हुआ.
दरअसल, मंदिर अधिग्रहण को पंडे अपने रोजी रोटी से जोड़ते है। वे सरकार के इस कार्य को अपनी जीविका पर सीधा हस्तक्षेप बताकर आगे आ जाते हैं. इनमे से कुछ धार्मिक संगठनों एवं अपने यजमान राज नेताओं को आगे कर देते है. विन्ध्याचल में पारिवाल पंडों की संख्या डेढ़ दर्जन है जबकि आम पंडो की संख्या सौ से ऊपर नहीं है. पंडो की दबंगई एवं श्रद्धालुओं के साथ मारपीट और जबरत दक्षिणा वसूली की घटनाये अक्सर सुर्खियों में रहती है.
मंदिर अधिग्रहण करने के लिए आन्दोलन चला रहे स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप सिंह गहरवार कहते है कि सरकारी आकड़ों के अनुसार हर साल एक करोड़ से अधिक दर्शनार्थी यहॉ आते है जिनका चढ़ावा कई करोड़ होता है जो व्यक्तिगत हाथों में चला जाता है. यदि बोर्ड आफ ट्रस्टी का गठन हो जाये तो मंदिर का रखरखाव एवं दर्शनार्थियों को भी कहीं बेहतर सुविधायें मिलने लगेंगी तथा पंडो की जलालत से भी मुक्ति मिल जायेगी.
उधर, पंडा समाज के लोग अधिग्रहण के खिलाफ किसी भी हद तक जाने की बात करते है. वे आत्मदाह तक कर लेने की बात शुरु कर रहें है.
बहरहाल प्रदेश सरकार के बाकें बिहारी मंदिर व विन्ध्याचल मंदिर के बोर्ड आफ ट्रस्टी के गठन के किसी भी प्रयास को आम श्रद्धालु एक अच्छी पहल मानते है. बिहार के वैशाली से आये दर्शनार्थी शिव शंकर सिन्हा कहते है कि यदि मंदिर का अधिग्रहण किया जाता है तो यह एक अच्छी पहल होगी. अब देखना है प्रमुख सचिव धर्माद्ध कार्य नवनीत सहगल द्वारा बनाये गये प्रारूप का क्या अंजाम होता है.
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