मथुरा के तीन मंदिरों में दिन में मनायी जाती है जन्माष्टमी

Last Updated 05 Sep 2015 10:09:10 AM IST

तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी के तीन मंदिरों में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है.


फाइल फोटो

जबकि नन्दगांव में नन्दबाबा मंदिर में दिन तक कन्हैया को मुकुट धारण नही कराया जाता तथा उनका श्रृंगार बालस्वरूप में ही होता है.

नन्दबाबा मंदिर के सेवायत यतीन्द्र गोस्वामी ने बताया कि रात 12 बजे बरसाना के गोस्वामी समाज के लोग श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में यशोदा मां से लड्डू लेने आते हैं. जन्माष्टमी पांच और छह सितम्बर को मनायी जा रही है.
      
जन्माष्टमी के अगले दिन मेहराना, गिड़ोह, बरसाना आदि के लोग नन्दोत्सव में शामिल होने के लिए आते हैं तथा नन्दगांव में होली जैसा हंसी खुशी का माहौल बन जाता है. पालने में नवजात श्रीकृष्ण के साथ बलराम भी झूलते हैं.
       
वृन्दावन के राधा दामोदर मंदिर में दिन में जन्माष्टमी इसलिए मनाई जाती है कि यहां पर जन्माष्टमी श्रीकृष्ण की जन्मगांठ या वषर्गांठ के रूप में मनाई जाती है. श्रद्धालु जहां इस मंदिर में दिन में जन्माष्टमी मनाये जाने और बाद में चरणामृत पाने की अभिलाषा से आते हैं.
       
इस मंदिर में गिर्राज शिला रखी है जिसे भगवान श्यामसुन्दर ने स्वयं अपने हाथ से सनातन गोस्वामी को यह कहकर गोवर्धन में दिया था कि वह अब वृद्ध हो गए हैं और नित्य गोवर्धन की परिक्रमा न करें तथा जहां पर भी निवास करते हों, इस शिला को रखकर उसकी चार परिक्रमा कर लें। इससे उनकी गिर्राज की एक परिक्रमा पूरी हो जाएगी.

सनातन गोस्वामी ने इस शिला को राधा दामोदर मंदिर में स्थापित किया था. इस शिला में भगवान श्रीकृष्ण के चरण, उनकी लकुटी और वंशी के साथ ही सुरभि गाय के खुर के चिन्ह अंकित हैं.  

मंदिर के सेवायत निर्मलचन्द्र गोस्वामी ने बताया कि मंदिर सिद्धांत और इतिहास नामक पुस्तक के अनुसार 18वीं शताब्दी में महाअभेिषेक करने की जो विशिष्ट परंपरा शुरू की गई थी उसी का निर्वहन आज भी किया जाता है.

मंदिर के सिंहासन पर विराजमान ठाकुर श्री दामोदर महाराज, ठाकुर वृन्दावन चन्द्र महाराज, ठाकुर राधा माधव महाराज एवं ठाकुर छैल चिकन महाराज के विगृह के अभिषेक के साथ ही गिर्राज शिला का अभिषेक कई मन दूध, दही, शहद, बूरा और घी के साथ ही औषधियों और महाऔषधियों से अनवरत चलने वाले वैदिक मंत्रों के मध्य किया जाता है.
    
अभिषेक के पहले सेवायत गोस्वामी वर्ग अति शुद्धता से यमुनाजल लेकर आता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का पंचामृत पान करने से जीव सम्पूर्ण पापों एवं रोगों से मुक्त होकर ठाकुर के श्रीचरणों की कृपा प्राप्त कर लेता है. इस मंदिर में जन्माष्टमी पर होने वाले अभिषेक के दर्शन के लिए विदेशी कृष्ण भक्तों का जमावड़ा लग जाता है.            
     
कार्यक्रम के संयोजक कृष्ण बलराम गोस्वामी ने बताया कि अभिषेक के समय गोस्वामी समाज ठाकुर से भक्तों के कल्याण की याचना करता है. इस मंदिर का महत्व इसलिए भी अधिक है कि वृन्दावन को आध्यात्मिक चेतनादेनेवाले 6 गोस्वामियों में से जीव गोस्वामी द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था.
इस मंदिर में ही रूप गोस्वामी की भजन कुटी एवं समाधि स्थापित है. मंदिर में इस्कान के प्रवर्तक ए0 सी0 भक्ति वेदांत प्रभु पाद की भजन कुटी भी है. कहा जाता है कि प्रभुपाद को यहां भजन के दौरान ऐसा ज्ञान प्राप्त हुआ कि आज सारा विश्व उस ज्ञान के रहस्य की खोज में वृन्दावन की ओर खिंचा चला आ रहा है.
    
नित्य गिर्राज महाराज की परिक्रमा जो लोग नही कर सकते वे इस मंदिर में रखी गिर्राज शिला की चार परिक्रमा कर अपना जीवन धन्य करते हैं। इस मंदिर में गिर्राज परिक्रमा तड़के तीन बजे से ही शुरू हो जाती है.     
     
जन्माष्टमी पर लगभग चार घंटे चलने वाले अभिषेक के बाद श्रीकृष्ण अवतरण की खुशी में श्रद्धालुओं पर हल्दी मिश्रित दही डाला जाता है, जिस पर यह दही पड़ जाता है धन्य हो जाता है अन्यथा फिर वह दुबारा इस प्रसाद के लिए प्रयास करता है.
   
अभिषेक के बाद चरणामृत लेने के लिए मंदिर के बाहर लम्बी लम्बी लाइने लग जाती है तथा चरणामृत वितरण का कार्य दो घंटे से अधिक देर में पूरा होता है. 



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