अमिताभ, अभिषेक को पुरस्कृत करने वाली यूपी सरकार शैलेन्द्र को लायक क्यों नहीं समझती : दिनेश शैलेन्द्र
सदाबहार गीतों की सौगात देने वाले शैलेंद्र के पुत्र दिनेश शंकर शैलेंद्र यूपी सरकार के प्रति अपना रोष जताया है.
शैलेन्द्र को लायक क्यों नहीं समझती सरकार (फाइल फोटो) |
हिन्दी फिल्मों को 1950 एवं 1960 के दशकों में एक से बढ़कर एक सदाबहार गीतों की सौगात देने वाले शैलेंद्र के पुत्र दिनेश शंकर शैलेंद्र अपने पिता के योगदान का केन्द्र या किसी भी राज्य सरकार द्वारा समुचित सम्मान नहीं किये जाने से बेहद आहत महसूस करते हैं.
उनका कहना है कि जिस उत्तर प्रदेश में उनके पिता ने अपना बचपन गुजरा वहां की सरकार ने अमिताभ बच्चन ही नहीं उनके पुत्र अभिषेक को भी यश भारती पुरस्कार दे डाला लेकिन शैलेन्द्र को इसके लायक तक नहीं समझा गया.
शैलेंद्र के जीवन का यह अल्पज्ञात तथ्य है कि वह सात वर्ष की आयु में मथुरा आ गए थे और उन्होंने यहां इंटरमीडिएट तक पढ़ाई करने के बाद रेलवे में नौकरी पाई थी. शैलेंद्र रेलवे की नौकरी में ही मुंबई गये थे.
दिनेश का कहना है कि कला व साहित्य की दुनिया में बिताए मात्र 17 बरस के छोटे से कार्यकाल में ही लोगों के दिलों में अमर हो जाने वाले गीतकार शैलेंद्र को जीते जी तो क्या मरने के पांच दशक बाद भी हमारी किसी सरकार से वह सम्मान न मिल सका, जिसके वह असली हकदार थे.
उन्होंने अपनी यह पीड़ा कल यहां भाषा से बातचीत करते हुए व्यक्त व्यक्त की। दिनेश स्वयं फिल्म निर्देशन एवं पटकथा से जुड़े हुए हैं.
दिनेश ने बताया कि 17 वर्ष में शैलेंद्र ने 170 फिल्मों के लिए 800 से अधिक गाने लिखे और उनमें से अधिकतर गाने संगीत प्रेमियों की जुबां पर आज भी उतनी ही शिद्दत से राज करते हैं जितना कि पचास-साठ वर्ष पूर्व करते थे.
उन्होंने कहा कि हालांकि शैलेंद्र के पूर्वज मूलत: बिहार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वह कभी बिहार में नहीं रहे. इसलिए बिहार सरकार से तो नहीं, किंतु उत्तर प्रदेश सरकार से तो वह ऐसी उम्मीद कर ही सकते हैं कि साहित्य की इतनी बड़ी सेवा करने के बाद वह उन्हें अपने स्तर से दिए जाने वाले सम्मान का हकदार समझे.
उन्होंने सर्वोच्च नागरिक सम्मानों के लिए चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाया और कहा कि वास्तव में ऐसे सम्मान अथवा पुरस्कार सामाजिक अथवा सांस्कृतिक न रहकर अब पूरी तरह राजनीतिक हो गए हैं.
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