उत्तर प्रदेश में दलितों की जमीन खरीदना आसान

Last Updated 05 Aug 2015 02:12:22 PM IST

यूपी में अब गैरदलितों के लिए दलितों की जमीन खरीदने की राह आसान हो गयी है.


दलितों की जमीन खरीदना आसान (फाइल फोटो)

अखिलेश सरकार ने इसके लिए जमींदारी विनाश एवं भूमि अधिनियम 1950 तथा उ.प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 1952 में संशोधन के प्रस्तावों को कैबिनेट से मंजूरी दिला दी है. इसके साथ ही अब उन गांवों में जमीनों की वरासत और दाखिल खारिज हो सकेंगे, जहां चकबंदी चल रही है.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में इन सभी मामलों से जुड़े विधेयकों के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गयी. ये विधेयक 14 अगस्त से शुरू हो रहे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश होंगे.

विधानमण्डल से मंजूरी के बाद सरकार इस सम्बंध में शासनादेश जारी करेगी. कैबिनेट ने उप्र जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 157 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.

इसके साथ ही उप्र जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 1952 के प्रावधानों को सरल बनाने के उद्देश्य से धारा 157 (क) के तहत अनुसूचित जातियों की भूमि की बिक्री की प्रक्रिया पर प्रतिबंध (1) धारा 153 से 157 तक संशोधन किये गये हैं.

कैबिनेट के इस फैसले के अनुरूप अब राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) अपनी हक वाली जमीन को गैरदलितों को आसानी से बेच सकेंगे. हां, इसके लिए उन्हें जिलाधिकारी की अनुमति जरूरी होगी, मगर भूमिधारी दलित के लिए न्यूनतम 1.26 हेक्टेअर भूमि शेष रहने की बाध्यता खत्म होगी.

पूर्व अधिनियम के मुताबिक भूमिधर दलितों को अपनी जमीन गैर दलित को बेचने के लिए डीएम की पूर्व अनुमति जरूरी थीय मगर इसके लिए प्रतिबंध यह है कि डीएम ऐसी कोई स्वीकृति तब तक नहीं दे सकता, जबकि जहां इस धारा के तहत प्रार्थना पत्र देने की तारीख पर उ.प्र. में सम्बंधित दलित की धारित भूमि 1.26 हेक्टेअर से कम है. अथवा जहां उप्र में इस प्रकार धारित करने वाले व्यक्ति की जमीन के अंतरण करने की तारीख के बाद उसके पास 1.26 हेक्टेअर से कम भूमि रह जाएगी.

सरकार का मानना है कि इस नियम के कारण दलित वर्ग का व्यक्ति अपनी जमीन को सरलता से नहीं बेच पा रहा है. पीढ़ी दर पीढ़ी भूमि विभाजन होने तथा जनसंख्या (परिवार बंटवारे या परिवार बढ़ने) वृद्धि के कारण औसत जोत का आकार लगातार घट रहा है. ऐसे में दलितों के लिए न्यूनतम क्षेत्रफल का प्रतिबंध मौजूदा समय में प्रासंगिक नहीं रह गया है.

सरकार का कहना है कि इसीलिए सम्बंधित एक्ट और नियमावली में संशोधन किए जा रहे हैं. इनके जरिये दलित अब अपनी भूमि को आसानी से किसी भी गैर दलित को डीएम की अनुमति लेकर बेच सकेगा.

उप्र जोत चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 6-क में संशोधन को मंजूरी

कैबिनेट ने उप्र जोत चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 6-क में संशोधन के प्रारूप को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही उप्र जोत चकबंदी अधिनियम 1954 के नियम 17-2 के रूप में नया नियम भी जोड़ने सम्बंधी प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी हैय

इसके मुताबिक अब जिलों में उन सभी गांवों में जमीनों के दाखिल व खारिज के साथ ही वरासत हो सकेगी, जहां पर मौजूदा समय में चकबंदी चल रही है. मगर इसके लिए सम्बंधित चकबंदी अधिकारियों के लिए व्यवस्था की गयी है कि यदि वरासत/नामांतरण (दाखिल खारिज) आदि का मामला विवादग्रस्त होगा वहां अधिनियम की धारा 09 में प्रकाशन के पूर्व उसका निपटारा किया जाएगा.

दिसम्बर 2000 तक नियुक्त तदर्थ शिक्षक होंगे विनियमित

उत्तर प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक स्कूलों में तैनात तदर्थ शिक्षकों के विनियमित करने का निर्णय लिया गया है. सरकार के इस फैसले से 7 अगस्त 1993 से 30 दिसम्बर 2000 के बीच नियुक्त करीब तीन हजार से ज्यादा शिक्षक लाभान्वित होंगे.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में तदर्थ तथा अल्पकालिक अध्यापकों के विनियमितीकरण के लिए उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड (संशोधन) अध्यादेश (2015) प्रख्यापित कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी.

इसके बाद अब तदर्थ शिक्षकों के स्थान पर आयोग से शिक्षक तैनाती पर मंड़रा रहा खतरा खत्म हो जाएगा. इन शिक्षकों को चयन वेतनमान से लेकर प्रोन्नत वेतनमान तक की सुविधाएं मिलने लगेंगी.

हालांकि माध्यमिक विद्यालयों में इन 3000 शिक्षकों के विनियमित होने के बाद भी वर्ष 2000 के बाद तैनात शिक्षकों का मामला कोर्ट में लम्बित है.

कैबिनेट ने अशासकीय सहायताप्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में सात अगस्त, 1993 से 30 दिसम्बर, 2000 तक लेकिन उसके पश्चात के नियुक्त तदर्थ शिक्षकों को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा.

तदर्थ रूप से नियुक्त शिक्षकों एवं 7 अगस्त, 1993 से 25 जनवरी 1999 तक अल्पकालिक रूप से नियुक्त शिक्षकों के विनियमितीकरण के लिए उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड 1982 में संशोधन के उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड (संशोधन) अध्यादेश (2015) प्रख्यापित कराने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है. यह संशोधन अधिनियम की धारा-33 में 33 छ जोड़कर किया जाएगा.

इस अध्यादेश को आगामी विधान मण्डल सत्र में विधेयक के रूप में पुरस्थापित करने का निर्णय भी कैबिनेट ने कर लिया है. सरकार के तदर्थ शिक्षकों को विनियमित करने के फैसले का माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष व शिक्षक विधायक ओम प्रकाश शर्मा सहित सभी शिक्षक संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है.



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