उच्च न्यायालय ने नोएडा भूखंड का अधिग्रहण रद्द किया
ने गौतमबुद्धनगर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2530 वर्गमीटर भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय (फाइल फोटो) |
उच्च न्यायालय ने इस भूखंड का एक निजी बिल्डर को दिया गया पट्टा भी निरस्त कर दिया है.
न्यायमूर्ति राकेश तिवारी और न्यायमूर्ति मुख्तार अहमद की खंडपीठ ने देवीसिंह और चार अन्य की याचिका मंजूर करते हुए छह मई को यह आदेश दिया. इन याचिकाकर्ताओं का दादरी तहसील के सोहरखा जाहिदाबाद गांव में स्थित इस भूखंड पर स्वामित्व है.
यह भूखंड वर्ष 2005-06 में राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत की गयी 5.537 हेक्टयर जमीन का हिस्सा है.
राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहीत नौ भूखंडों में याचिकाकर्ताओं को छोड़कर बाकी सभी को मुआवजा दिया गया था. याचिकाकर्ता इस अनुरोध के साथ अदालत गए थे कि नोएडा प्राधिकरण द्वारा एक निजी बिल्डर के पक्ष में जारी पट्टा भी खारिज किया जाए.
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि जमीन ‘नियोजित औद्योगिक विकास’ के नाम पर अत्यावश्यक उपबंध के तहत अधिग्रहीत की गयी थी लेकिन वर्ष 2012 में याचिका दायर करते वक्त तक इस पर कोई उद्योग नहीं लगा और यह जमीन रिहायशी परिसरो के निर्माण के लिए बिल्डर को दे दी गयी.
नोएडा प्राधिकरण के वकील ने दलील दी कि किसी औद्योगिक विकास क्षेत्र में जमीन सिर्फ औद्योगिक नहीं है जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है, बल्कि विकास योजना इस्तेमाल के तहत उसमें रिहायशी, वाणिज्यिक, औद्योगिक, संस्थानात्मक, हरित सुविधाएं और अन्य उपयोगी जमीन हो सकती है जैसा कि विकास योजना में उल्लेख है.
लेकिन अदालत ने कहा कि चूंकि भूखंड के सिलसिले में मुआवजे की घोषणा नहीं की गयी, इसलिए में अधिग्रहण खासकर शीर्ष अदालत द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था की दृष्टि से अमान्य है.
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