पश्चिम उप्र में फिर गूंजेगा हरित प्रदेश निर्माण का मुद्दा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गली कूंचों में एक बार फिर हरित प्रदेश निर्माण का मुद्दा गूंजेगा.
राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह (फाइल फोटो) |
सियासी आक्सीजन पाने को चुनौती दर चुनौती से जूझ रहे रालोद के रणनीतिकार अब जनता के बीच जाकर प्रदेश पुनर्गठन की आवाज बुलंद करने का ताना बाना बुनने में मशगूल हैं. पार्टी के इस एजेंडे में पश्चिम उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वाचल को नए राज्य सृजित कराना है.
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, बकाया गन्ना भुगतान, बारिश और ओलावृष्टि से फसल बर्बाद होने से बिलबिला रहे किसानों के दर्द को लेकर रालोद के तमाम अलंबरदार केन्द्र व प्रदेश के हुक्मरानों को ललकार रहे हैं.
पार्टी नेतृत्व 25 अप्रैल को लखनऊ में प्रदेश के पदाधिकारियों व मंडल और जिला संगठनों के खेवनहारों की बैठक में सियासी हालात पर आत्ममंथन कर किसानों के बीच पहुंचने के भावी कार्यक्रमों को लेकर पत्ते खोलेगा. वहीं प्रदेश पुनर्गठन के मुद्दे को फिर से धार देना भी इस मुहिम में शुमार रहेगा. हालात बयां कर रहे हैं कि रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह के लिए सियासी पटल पर हरित प्रदेश निर्माण को लेकर सहमति बनाना अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा.
पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाए जाने की मांग नई नहीं है. 1931 में लंदन में हुई गोलमेज कांफ्रेंस में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन की मांग की गई. इस कांफ्रेंस में कांग्रेस से महात्मा गांधी, मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना और हिन्दू महासभा के भाई परमानंद ने शिरकत की थी.
आजादी के बाद 1953 में राष्ट्रीय स्तर पर फैजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग अस्तित्व में आया. इस आयोग के सदस्यों में हृदयनाथ कुंजरू और केएम पानिक्कर रहे. इस आयोग ने विदर्भ, तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के साथ ही उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर चर्चा की. आयोग के सदस्य केएम पानिक्कर ने तो पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाने की तब संस्तुति की थी.
ढाई दशक पूर्व पश्चिम उत्तर प्रदेश को पृथक राज्य बनाए जाने को लेकर कई संगठनों ने अलख जगाई. वीरेन्द्र वर्मा की अगुवाई में दो-आब प्रदेश, स्वामी ओमवेश की अगुवाई में गंगा प्रदेश बनाने की आवाज बुलंद की गई. ओमवीर तोमर ने किसान प्रदेश बनाये जाने की वकालत की थी.
| Tweet |