समाजवादियों के गढ़ में पीएल पुनिया के सामने इतिहास बनाने की चुनौती

Last Updated 21 Apr 2014 11:27:24 AM IST

बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र आमतौर पर जनता के लिये हाजिर रहने वाले पीएल पुनिया को कांग्रेस का दलित चेहरा माना जाता है.


पीएल पुनिया (फाइल फोटो)

हमेशा से समाजवादियों का गढ़ रहे बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र से वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष एवं दर्जा प्राप्त केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री पीएल पुनिया के सामने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लगातार दूसरी बार चुनाव जीतकर इतिहास बनाने का मौका और चुनौती है.

कांग्रेस के खिलाफ चल रही लहर

आमतौर पर क्षेत्र की जनता के लिये हाजिर रहने वाले पुनिया को कांग्रेस का दलित चेहरा माना जाता है. व्यक्तिगत छवि के कारण उनकी राह आसान भले ही दिखायी पड़ रही हो लेकिन इस बार चुनाव में उन्हें कांग्रेस के खिलाफ चल रही लहर से जूझना पड़ सकता है.

राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक इस बार बाराबंकी में कांग्रेस बनाम भाजपा नहीं बल्कि ‘पुनिया बनाम मोदी’ की तस्वीर खिंची नजर आ रही है. पिछड़ा वर्ग, दलित और मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में जीत-हार का अंतर पैदा करने का दारोमदार मुख्य रूप से मुस्लिम मतदाताओं पर है.

जानकारों के मुताबिक, अगर मुस्लिम वोट पुनिया की तरफ गया तो उनकी राह बहुत आसान हो जाएगी लेकिन अगर वह परम्परागत रूप से सपा की ही तरफ रहा तो उन्हें परेशानी हो सकती है.

पुनिया ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बाराबंकी में परचम लहराकर इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लिये 20 साल पुराना सूखा समाप्त किया था.

जनता ने कभी नहीं दिया दूसरी बार मौका

अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिये सुरक्षित की गयी बाराबंकी सीट का चुनावी इतिहास गवाह है कि इस क्षेत्र की जनता ने कांग्रेस के उम्मीदवारों को लगातार दूसरी बार मौका कभी नहीं दिया. ऐसे में पुनिया के सामने अपनी लगातार दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने की चुनौती होने के साथ-साथ इतिहास बनाने का मौका भी है.

बाराबंकी के 63 साल के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर गौर करें तो यहां की जनता ने सिर्फ चार बार कांग्रेस प्रत्याशियों को अपना नुमाइंदा चुना है.

इस सीट से वर्ष 1951 के लोकसभा चुनाव में मोहन लाल सक्सेना, 1971 में रुद्र प्रताप सिंह, वर्ष 1984 में कमला प्रसाद रावत और 2009 में पुनिया के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी चुने गये थे जबकि 1957, 1962, 1967, 1977, 1980, 1989, 1991, 1996 तथा 1999 के लोकसभा चुनावों में यह सीट मूलत: समाजवादियों के ही हाथ में रही थी. वर्ष 1998 और 2004 में बाराबंकी की जनता ने क्र मश: भाजपा और बसपा प्रत्याशी को चुना था.

वर्ष 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बाराबंकी की जनता ने जिले की सभी छह सीटों रामनगर, दरियाबाद, कुर्सी, बाराबंकी, जैदपुर और हैदरगढ़ में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को जिताया था.

पुनिया ने अपने पांच साल के कार्यकाल में बाराबंकी को कई पुल, ग्रामीण इलाकों में पक्की सड़कें तथा रेलवे ओवरब्रिज समेत विकास की अनेक सौगातें दी हैं और हर अच्छे-बुरे मौके पर जनता के बीच उनकी मौजूदगी भी पूर्व में रहे सांसदों के मुकाबले कहीं ज्यादा बतायी जाती है.

अब देखना यह है कि 16 लाख 94 हजार 574 मतदाताओं वाले बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र में आगामी 30 अप्रैल को यहां होने वाले मतदान में पुनिया की दिख रही लोकप्रियता वोटों में तब्दील होगी या नहीं.

बाराबंकी में समाजवादी पार्टी ने पूर्व में जिले की फतेहपुर सीट से भाजपा की विधायक रहीं राजरानी रावत को प्रत्याशी बनाया है. जिले के घुंघटेर क्षेत्र की मूल निवासी राजरानी के सामने समाजवादी गढ़ में सपा का परचम फिर से लहराने की चुनौती है.

भाजपा ने बाराबंकी से प्रियंका रावत को टिकट दिया है. मूल रूप से सीतापुर की रहने वाली प्रियंका का राजनीतिक अनुभव कम है लेकिन वह ‘मोदी लहर’ के सहारे चुनावी नैया पार करने की उम्मीद कर रही हैं. बसपा ने वर्ष 1984 तथा 2004 में बाराबंकी से सांसद रहे कमला प्रसाद रावत को टिकट दिया है. उन्हें दलित वोटों के सहारे संसद पहुंचने की उम्मीद है.

वहीं, आम आदमी पार्टी ने दिनेश चन्द गौतम को टिकट दिया है जिनका मुख्यधारा की राजनीति में कोई खास अनुभव नहीं है.



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