रामपुर सीट : मुद्दों पर भारी वोटों का ध्रुवीकरण

Last Updated 16 Apr 2014 03:46:19 AM IST

नवाबों के शहर रामपुर सीट के लिए 1957 से 2099 तक 14 बार हुए लोकसभा चुनाव में से नौ बार कांग्रेस के नुमाइंदे जनादेश हासिल कर संसद में पहुंचे.


उत्तरप्रदेश के रामपुर संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी काजिम अली (कांग्रेस), डा. नेपाल सिंह (भाजपा), नसीर अहमद खान (सपा), हाजी अकबर (बसपा) एवं सलमान अली (आप)

1977 में जनता पार्टी की लहर ने कांग्रेस को पराजय का दंश सहने को मजबूर किया. 1989 में बोफोर्स घूसकांड को लेकर देश में कांग्रेस विरोधी हवा बही. इसके बावजूद कांग्रेस के जुल्फिकार अली खान यहां से जीते. फिर बाद के दो चुनावों में भाजपा का ‘कमल’ खिला. वहीं दो बार ‘साइकिल’ की रफ्तार ने विरोधियों को सपा की ताकत का अहसास कराया.

प्रदेश के कद्दावर काबीना मंत्री आजम खां की राजनीतिक कर्मभूमि इस सीट पर सपा के लिए जीत की हैट्रिक लगाना चुनौती है. इस लिहाज से काबीना मंत्री आजम खां की प्रतिष्ठा दांव पर है. वहीं पूर्व सांसद बेगम नूरबानों के पुत्र व कांग्रेस के प्रत्याशी काजिम अली उर्फ नावेद के लिए अपने नवाबी परिवार की सियासी विरासत के दमखम का अहसास कराना किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

क्षेत्र में कुटीर उद्योगों के दम तोड़ने का अहसास सभी को है. यहां विकास और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है. देश की आजादी के बाद रामपुर में उद्योगों का जाल बिछा था. साइकिल बनाने का कारखाना हंसा, दो चीनी मिलों के अलावा रजा टैक्सटाइल काराखाना तब यहां के प्रमुख उद्योग थे. वजह चाहे जो रही मगर डेढ़ दशक पूर्व पुराने कारखाने बंद होने से बेरोजगारी की समस्या बढ़ी. चीन निर्मित चाकू सस्ता होने और लोगों के हुनर को अपेक्षित सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिलने के कारण यहां चाकू का कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पा रहा है. बीड़ी उद्योग भी बस चल रहा है.

इस लोकसभा सीट से सपा के नसीर अहमद खां, बसपा के हाजी अकबर, कांग्रेस के काजिम अली उर्फ नावेद (पूर्व सांसद नूरबानो के पुत्र), भाजपा के डा. नेपाल सिंह, आम आदमी पार्टी के सलमान अली सहित 11 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. इस संसदीय क्षेत्र में 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं और सभी दलों के एजेंडे में इनका खास होना स्वाभाविक है. चुनाव प्रचार में विकास के मुद्दे सुनने को मिल रहे हैं लेकिन वोटों के ध्रुवीकरण की यहां सुगबुगाहट सुनायी पड़ रही है. यहां सपा प्रत्याशी नसीर अहमद खां काबीना मंत्री आजम खां के खासमखास हैं.

यही वजह है कि आजम खां  इस क्षेत्र में ‘साइकिल’ को रफ्तार देने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं. वहीं विरोधी खासकर बसपा, भाजपा, कांग्रेस चुनाव डगर में सपा की राह में कांटे बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां सभा कर मतदाताओं से आह्वान कर चुके हैं.

बसपा के रणनीतिकार दलित-मुस्लिम समीकरण से ‘हाथी’ की चाल संवारने का सपना संजो रहे हैं लेकिन बसपा मुखिया मायावती का यहां नहीं आई हैं. भाजपा के पहलवानों को मोदी फैक्टर के बूते वोटों के ध्रुवीकरण के साथ ही मुस्लिम वोटों के बंटवारे से सियासी ताकत मिलने की आस लगी है.

वहीं दलित मतदाताओं में भाजपा प्रेम जागृत करने की जद्दोजहद करने में भी भाजपाई मशगूल हैं. शायद पहली बार चुनाव दंगल में यहां भाजपा का कोई स्टार प्रचारक नहीं पहुंचा है. भाजपा की इस कूटनीति को मुस्लिम मतदाताओं के एकतरफा सियासी रुझान को टालने के तौर पर आंका जा रहा है.

कांग्रेस प्रत्याशी काजिम इसी संसदीय क्षेत्र की स्वार विधानसभा सीट से 2012 में जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे और अब वह संसद पहुंचने की ताल ठोक रहे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा और फिल्म अभिनेत्री नगमा ने यहां पहुंचकर कांग्रेस का ‘हाथ’ मजबूत करने की मतदाताओं से अपील की. इस सीट से कौन संसद में पहुंचेगा? इसका दारोमदार किसी हद तक मुस्लिम और दलित मतदाताओं के सियासी रूझान पर निर्भर रहने की संभावना जतायी जा रही है.

बृजेश जैन
एसएनबी


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