राजस्थान : महिला आयोग की सदस्य की दुष्कर्म पीड़िता के साथ सेल्फी वायरल, जांच के आदेश
राजस्थान राज्य महिला आयोग की एक सदस्य द्वारा दुष्कर्म पीडिता के साथ खींची सेल्फी के बाद उपजे विवाद पर आयोग की अध्यक्ष ने सदस्य से लिखित स्पष्टीकरण मांगा है.
फाइल फोटो |
आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर के साथ सेल्फी में आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा भी दिखाई दे रही हैं.
कल जयपुर उत्तर के महिला पुलिस थाने में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा और आयोग की सदस्य सौम्या गुर्जर दुष्कर्म पीडिता से मिलने थाने गई थीं. उसी दौरान सेल्फी ली गई थी. दो सेल्फी में आयोग की सदस्य गुर्जर को सेल्फी लेते देखा जा सकता है. दोनो सेल्फी आज सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं.
आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा ने बताया कि वह जब पीडिता से बातचीत कर रही थीं उसी दौरान आयोग की सदस्य ने इन सेल्फी को क्लिक किया. ‘मुझे इस बारे में पता नहीं है. मैं ऐसे कार्यों का समर्थन नहीं करती इसलिये मैंने आयोग की सदस्य से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है. सदस्य को कल तक इस पर स्पष्टीकरण देने को कहा गया है.’
थाने में पुलिस अधिकारी के कमरे में आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा और सदस्य सौम्या गुर्जर सेल्फी में दिखाई दे रही हैं, और सेल्फी को उनके पास खडे किसी अन्य ने लिया है. सेल्फी की तस्वीर में गुर्जर को मोबाइल पकडे हुए और अध्यक्ष शर्मा को सेल्फी खिंचवाने के लिये पोज बनाते दिखाई दे रहा है.
दुष्कर्म पीडिता ने दहेज के लिये 51,000 रूपये नहीं देने पर अपने पति और जेठ पर दुष्कर्म, अभद्र भाषा, उसके माथे और हाथ में अपशब्द गुदवाने का आरोप लगया है.
इस बीच, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष डॉ. अर्चना शर्मा ने राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा एवं सदस्य सौम्या गुर्जर द्वारा आमेर दुष्कर्म पीडिता के साथ सेल्फी खींची जाने की कड़े शब्दों में निन्दा करते हुए इसे महिला आयोग की कार्यपण्राली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह बताया है.
डॉ. शर्मा ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा कि उक्त प्रकरण की पीडिता को पहले ही सरकारी कार्यपण्राली के कारण न्याय मिलने में विलम्ब हुआ है तथा अदालत के निर्देश के बावजूद 24 घण्टे में प्राथमिकी दर्ज होने के स्थान पर 10 दिन लग गए. इससे पता चलता है कि प्रदेश के शासन व प्रशासन में महिला प्रताडना के प्रति कितनी गंभीरता है.
उन्होंने कहा कि महिला आयोग संवैधानिक संस्था है जिसके प्रतिनिधियों को न्याय दिलाने में पीडित महिलाओं की आवाज उठाते हुए सरकार को बाध्य करना चाहिए ना कि आयोग में उन्हें सरकार द्वारा दिये गये पदों के लिए सरकार के प्रति उपकृत महसूस करते हुए सरकारी प्रतिनिधि की तरह व्यवहार करना चाहिए.
उन्होंने कहा कि पीडिता का विवरण व उसका चित्र सार्वजनिक किया जाना संज्ञेय अपराध है, जिसके लिए आईपीसी की धारा 228-ए में दो वर्ष के कारावास का प्रावधान है.
डॉ. शर्मा ने कहा कि महिला आयोग की अध्यक्ष एवं उसके सदस्यों को यदि यह मूलभूत जानकारी भी नहीं है तो इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि महिला आयोग कितनी गंभीरता के साथ अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहा है.
उन्होंने कहा कि महिला आयोग की सदस्या द्वारा सेल्फी लिया जाना एक गंभीर प्रकरण का मजाक उड़ाने जैसा है, जिसे संज्ञान में लेकर उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए.
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