हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक हजरत गरीब शाह का उर्स शुरू

Last Updated 25 Nov 2015 12:28:42 PM IST

राजस्थान के जालोर जिले के भाद्राजून क्षेत्र के किशनगढ गांव स्थित हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पशु प्रेमियों लिए प्रदेश में विख्यात हजरत गरीब शाह का सालाना 12वां उर्स आज बुधवार को मनाया जायेगा.


फाइल फोटो

गरीब शाह की इस मजार पर मुस्लिम भाई तो सजदा करते है लेकिन बाबा के चमत्कारों और जीवन पर्यन्त उनके द्वारा इंसान एवं पशु-पक्षियों की सेवा भावना के चलते लोग उन्हें आराध्य मानकर पूजते है. उर्स मौके पर दरगाह परिसर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया तथा आने वाले जायरिनों के ठहरने की समुचित व्यवस्था की गई है.     
           
हजरत गरीब शाह दातार दरगाह कमेटी के सदर ईदु खान ने बताया कि उर्स की शुरूआत अपरान तीन बजे नमाज के बाद चादर शरीफ के जलसे के साथ होगी और शाम को लंगर का आयोजन भी किया जायेगा. इसके बाद महफिल-ए-कव्वाली होगी जिसमें प्रसिद्ध कव्वाल मुम्बई के तलब सबा , जोधपुर के मोईनुद्दीन मनचला एवं जमाल रोशन सुफियाना अंदाज में अपना कलाम पेश करेंगे.
        
उन्होनें बताया कि उर्स मुबारक में सूफी संतों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है जो देश एवं प्रदेश के लिए अमन चैन की दुआ करेंगे। उन्होंने बताया कि वर्ष 2004 में हाजी गफ्फार मोहम्मद के प्रयासों से शुरु किया गया यह उर्स निरन्तर बुलन्दियां तय करता जा रहा है. गौरतलब है कि किशनगढ़ स्थित हजरत गरीब शाह दातार दरगाह पर सालाना रूप से मनाये जाने वाले उर्स को लेकर जायरीनों में इस बार भी काफी उत्साह है.

उर्स में शामिल होने के लिए बड़ी तादात में राजस्थान के जोधपुर, पाली, जालोर, सिरोही जिलों तथा गुजरात, महाराष्ट्र आदि जगहों से जायरीन पहुंचते हैं यह जायरीन किशनगढ़ पहुंच कर दरगाह में हाजिरी देते है. उर्स के दिनों में यहां पर महफिल खाने में मशहूर कव्वाल अपनी कव्वालियां पेश करते है. उर्स के मौके पर हजारों की संख्या में लोग यहां चादर भी चढ़ाने आते है. इस दौरान गरीब शाह दातार दरगाह की रौनक देखते ही बनती है.

दरगाह और उसके आस-पास का पूरा इलाका सुगन्ध से महक उठता है. यह दरगाह वास्तव में एक ऐसी जगह है जहां हर आम और खास मनुष्य अपने सारे दु:खों को भूल जाता है और जाते समय अपनी झोलियां खुशियों से भर कर ले जाता है। बताया जाता है कि हजरत गरीब शाह दातार का बचपन से ही मन सांसारिक चीजों में नहीं लगता था वह परिवार से अलग हटकर रूहानी दुनियां से जुड़े रहते थे एवं मानव जगत की सेवा को ही अपने जीवन का एक मा धर्म मानते थे.
   
गरीब शाह का किशनगढ़ में मन ऐसा रमा कि वह यहीं के होके रह गये और भक्तों की सेवा में लग गये. वह हमेशा खुदा से अपने भक्तों का दु:ख दर्द दूर करके उनके जीवन को खुशियों से भरने की दुआ मांगते थे। गरीब शाह ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई और खुदा की इबादत में गुजार दिया. हर छोटे बड़े, अमीर, गरीब अपनी परेशानियां और दु:ख लेकर उनके पास आते और अपनी झोलियों में खुशियां और सुकून ले जाते थे.



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