राजस्थान की धरती से नये परमाणु युग का उदय कराया था कलाम ने

Last Updated 28 Jul 2015 02:51:26 PM IST

भारत के राष्ट्रपति रहे डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम ने भारत को परमाणु ताकत राजस्थान की धरती से ही दिलाई थी.


अब्दुल कलाम पक्तिं में दूसरे (फाईल फोटो)

इसलिए उनके दिल में पोकरण के लिए खास जगह थी तथा अजमेर के गरीब नवाज में भी उनकी गहरी आस्था थी.
 
1974 के बाद जब 1998 में (बुद्ध फिर मुस्कराये) तो यह कलाम का ही कमाल था कि अमरीकी उपग्रहों तक को इसकी भनक नहीं लगी और भारत परमाणु शक्ति में ताकतवर देशों की श्रेणी में शामिल हो गया. इस घटना को कलाम हमेशा याद करते रहे और जब वह दुबारा राजस्थान आये तो उन्होंने कहा कि वह दिन आज भी मुझे याद है जब पोकरण का पारा 53 डिग्री था तथा जब दुनिया सो रही  थी तब भारत में नये परमाणु युग का उदय हुआ.
       
1995 में भारत की परमाणु परीक्षण तैयारियों को अमरीकी उपग्रहों द्वारा पकड़ लेने के बाद बहुत सावधानी बरतते हुए डॉ कलाम ने अपनी मेहनत के बल परमाणु  परीक्षण कर देश दुनिया को भारत की ताकत दिखा दी. इस परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी पोकरण आये और उन्होंने कलाम के कमाल की सराहना की.
     
डॉ कलाम महीनों तक फौजी वर्दी में पोकरण में घूमते रहे और आसपास के मंदिर और गौशाला में घूमने के साथ भादरिया में पुस्तकालय में काफी समय बिताते थे तब उनका एक ही सपना था कि भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न हो तथा उन्होंने यह कर दिखाया.

पोकरण की धरती पर दो बार परमाणु परीक्षण हुए. दूसरी बार 1998 में जब परमाणु परीक्षण हुआ तो उसकी परिकल्पना कलाम ने ही की थी तथा उसे साकार करने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ी. इसकी तैयारियां कई वर्षों से चल रही थी लेकिन परीक्षण से ज्ञारह दिन पहले तक कलाम ने अपने काम को इस तरह अंजाम दिया कि अमरीकी उपग्रह भी उनकी गतिविधियां नहीं भांप पाया. 
 
भाभा ऑटोमिक रिसर्च सेंटर में बनाये गये परमाणु बम को बहुत ही गोपनीय तरीके से पोकरण लाया गया. एक मई को जब सेना के ट्रकों में परमाणु बम ले जाये जा रहे थे तब उन पेटियों को सेव की पेटियों का नाम दिया गया था. एक कंपनी की मदद से विस्फोट के लिए पांच गहरे कुए खुदवाये गये थे. इनमें से 200 मीटर गहरे जिस कुए में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया गया उसे व्हाईट हाउस का नाम दिया गया था.
       
अब्दुल कलाम जब भी राजस्थान आते तब पोकरण का जिक्र उनके मुंह से अनायास ही आ जाता और वह पोकरण में बिताये दिनों को याद करते हुए कहते कि वहां के रेतीले टीले और आकाश में चमकता चांद मुझे बहुत भाता है.

तत्कालीन सीआईए निर्देशक जॉर्ज टेनेट द्वारा अपनी हाल ही में प्रकाशित प्रस्तुक ‘एट ए सेन्टर ऑफ स्टॉर्म ‘मार्य ईयर्स एट दी सीआईए में लिखा हैं कि 1998 के भारत के परमाणु परीक्षणों ने अमेरिका को चौका दिया था. उन्होंने कहा कि इससे तीन साल पहले 1995 में तब हमें ऐसे ही परीक्षण की तैयारियां की सूचना मिली तो हमने भारत पर दबाव डालकर उन्हें रूकवा दिया था.

वे लिखते हैं कि 1998 के परमाणु परीक्षणों की भनक न लगने को वे सबसे बड़ी विफलता मानते हैं क्योंकि उस दिन भारत का पश्चिमी इलाका उनके सेटेलाईट के कैमरों की परिधि से बाहर था. विफलता की यह ऐसी टीस हैं जो भुलाए नहीं भूलती.
 
उधर बंगाल इंजीनीयर के जवान आज भी उनकी बलखाती लटें, विद्वता व ओजस्वी चेहरे को भूले नहीं है. इन परीक्षणों को सफलतापूर्वक अंजाम देने में डॉ अब्दुल कलाम के साथ रहे जवान अधिकारियों को उनके साथ बिताया हुआ हर लम्हा अच्छी तरह याद है.
 
परमाणु परीक्षणों को गोपनीयता से अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उस समय डॉ अब्दुल कलाम परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष आर चिदम्बरम, परमाणु वैज्ञानिकों डॉ अनिल काकोडकर, सेना के कैप्टन, और मेजर की वर्दी में छद्म नाम से यहां अज्ञातवास में थे.

परमाणु परीक्षण के एक तरफ बिल्कुल समीप 3 प्रयोगशालाएं स्थापित की गई थी. जहां से तीनों वैज्ञानिक अपने कायरें को अंजाम दे रहे थे जबकि दूसरी तरफ सामान्य रूप से जवानों के रहने का अस्थाई ठिकाना बनाया गया था जहां वे परीक्षण स्थल से कुछ गज की दूरी पर फुटबॉल व हॉकी खेलते थे. परीक्षणों के एक दिन पूर्वतक यहां सामान्य गतिविधियां

चल रही थी.
 
11 मई को परीक्षण वाले दिन डॉ अब्दुल कलाम के चेहरे पर तनाव साफ झलकता दिखाई दे रहा था लेकिन उन्होने अपने भाव किसी पर प्रदर्शित होने नहीं दिए. साथ ही उस दिन हवा का रूख परीक्षणो के माकूल नहीं होने के कारण परीक्षणों के समय में तीन मर्तबा बदलाव किया गया था. जब परीक्षण सफलतापूर्वक सम्पन्न  हो गया तो उनके चेहरे पर अलग ही खुशी दिखाई दे रही थी.

परीक्षणों के कुछ समय पश्चात वे घटना स्थल पर गए तब उनका मस्तिष्क गर्व से उंचा हो उठा तथा चेहरे की चमक उनकी प्रसन्नता का बयान दे रही थी. इन परीक्षणों की गोपनीयता हेतु डॉ कलाम ने ऐसी शतरंजी बिसात बिछाई थी कि उनकी इस रणनीति के आगे अमरीकी प्रमुख खुफिया ऐजेन्सीयों सीआईए सहित अन्य गुप्तचर ऐजेन्सीयां भी विफल हो गई थी.

साथ ही रेन्ज में मौजूद करीब 3 से 4 हजार लोगों में से केवल 100 चुनिंदा जवान व अधिकारियों को छोड़कर किसी को इस अभियान की भनक तक नहीं लगी थी.



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