चूड़ा उद्योग ने दी पचवारा को विशेष पहचान

Last Updated 14 Oct 2014 03:15:12 PM IST

जयपुर के लालसोट तहसील क्षेत्र के पचवारा गांव की पहचान सुहाग का प्रतीक हस्तनिर्मित लाख के चूडों के कारण अलग ही बनी हुई है.


चूड़ा उद्योग

सरकारी सुविधाओं से महरूम रहने के बाद भी इस कुटीर उद्योग से गांव के करीब सौ परिवारों को रोजगार उपलब्ध हो रहा है.

गांव में किसी को नगीना जड़ाई का तो किसी को लाख गलाई व अन्य कार्य का काम उपलब्ध हो रहा है. भारतीय संस्कृति में सुहाग के प्रतीक लाख के बने हुए चूड़े खरीदने के लिए दूरदराज से आने वाले लोगों के कारण गांव में मेले जैसा माहौल हमेशा बना रहता है.

पचवारा निवासी लक्ष्मीनारायण लखेरा ने बताया कि आधुनिक युग में भी वे मशीनों की जगह पचवारा के सुहाग चूडों की पहचान को बरकरार रखने के लिए इन्हें हाथ से बनाते हैं तथा परम्परागत शैली से ही निर्माण करते हैं.

उन्होंने बताया कि यहां के बने हुए चूड़े मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात सहित अन्य राज्यों में भी सप्लाई किए जाते है. लगभग सौ परिवारों को चूड़ा निर्माण से रोजगारमिलता है.

उन्होंने बताया कि पचरंगी सैट, सुहाग चूडा, धूपछांव के चूड़े, मशीन कट नगीना और चाईनीज ट्रिप लाईट के चूड़ों की मांग रहती है. ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि रामगढ़ पचवारा में बनाया गया चूड़ा पूरे एक साल तक चलता हैं तथा दूर दूर तक अन्य राज्यों में भी प्रसिद्व है.



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