अमृतसर सीट : जेटली को बुलाकर बादल फंसे

Last Updated 20 Apr 2014 06:36:09 AM IST

बादल साहब द्वारा सफलता का लिखित आश्वासन देने के बाद भी भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को खूब पसीना बहाना पड़ रहा है.


अरुण जेटली (भाजपा) एवं प्रकाश सिंह बादल (फाइलफोटो)

गुरु की नगरी अमृतसर में राजनीतिक माहौल गर्माने लगा है. बादल साहब द्वारा सफलता का लिखित आश्वासन देने के बाद भी भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को खूब पसीना बहाना पड़ रहा है.

वह राज्य सरकार के प्रापर्टी टैक्स और रेत बजरी जैसे जनविरोधी निर्णयों से उत्पन्न नकारात्कम छवि को तोड़ने के लिए जूझ रहे हैं जबकि दूसरी ओर कांग्रेस के दिग्गज नेता की हवा तो बहुत है परंतु अकाली सरकार  द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों के प्रताड़ित किए जाने के कारण कांग्रेस कार्यकर्ता अभी तक अपने घरों में दुबका पड़ा है. आजादी के बाद शायद यह पहला अवसर है, जब इस क्षेत्र में सिख मतों के ध्रुवीकरण की संभावना बन रही है.

राज्य के 13 लोकसभा क्षेत्रों में से अमृतसर इस समय सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका है क्योंकि इस क्षेत्र से भाजपा के दिग्गज व राज्यसभा में नेता विपक्ष अरुण जेटली के मुकाबले कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मैदान में हैं.

क्रिकेट के मैदान में झंडे गाड़ने के बाद राजनीति की पिच पर चौके-छक्के लगा रहे और बाउंसर डाल रहे नवजोत सिंह सिद्धू को बादल परिवार ने अंपायर के साथ मिलकर रिटायर कर दिया. बादल परिवार सिद्धू से इस कदर खौफजदा था कि उन्हें निकाल बाहर करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था. इस घबराहट में बादल साहब ने सिद्धू से भी बड़े भाजपा नेता को लाकर अपने सिर पर बैठा लिया.

यही नहीं, उन्होंने भाजपा हाईकमान को यहां तक लिखकर दे दिया कि जेटली साहब अपना नामांकन करवाकर लौट आएं, सफलता का प्रमाणपत्र हम दिल्ली लेकर आएंगे. परंतु अतिविश्वास में बादल गच्चा खा गए और दुश्मन को कमजोर समझ बैठे. कांग्रेस हाईकमान ने जब कैप्टन के रूप में अपना तुरुप का पत्ता खोला तो सब के होश भी फाख्ता हो गए.
कैप्टन अमरिंदर ने अमृतसर पहुंचकर जब रोड शो किया तो ब्लू- स्टार आपरेशन मुद्दे का ऐसा बम फोड़ा जिसका जवाब देना कठिन हो गया. हालांकि बादल साहब पिछले 29 वष्रो से इस मुद्दे पर सिख जनमानस की धार्मिक भावनाएं भुनाकर अपना राजनीतिक हित साधते आए थे.

कैप्टन ने ब्लूस्टार के लिए बादल और अन्य अकाली नेताओं को दोषी ठहराया. अपनी बात के समर्थन में कैप्टन ने तर्क ही नहीं दिए बल्कि प्रमाण भी प्रस्तुत किए. इसके कारण सिखों में बादल की छवि को गहरा धक्का लगा. कैप्टन यही नहीं, रुके बल्कि उन्होंने जोर-शोर के साथ उन 35 हजार निहत्थे और मासूम लोगों का भी मुद्दा उठा दिया, जिन्हें आतंकवादियों ने अपनी गोलियों का शिकार बनाया था. इसके अलावा स्वर्ण मंदिर परिसर में भिंडरावाला की याद में बनाए गए गुरुद्वारे के लिए भी कैप्टन ने बादल को आड़े हाथों लिया.

पहले से ही प्रापर्टी टैक्स, रेत-बजरी, बिजली और पानी जैसे मुद्दों के कारण राज्य सरकार से दुखी लोगों को आवाज मिल गई. जेटली  तो इस वाकयुद्ध में कहीं बहुत पीछे छूट गए. कैप्टन बढ़त बना गए. दूसरा बठिंडा लोकसभा क्षेत्र बादल परिवार के लिए अधिक महत्वपूर्ण सीट है क्योंकि वहां से हरसिमरत कड़े मुकाबले में फं सी हुई हैं. पिता-पुत्र कई दिनों तक बठिंडा में ही उलझे रहे. जेटली की सुध ही नहीं ले पाये. इसके परिणाम स्वरूप सभी तरफ कैप्टन-कैप्टन होने लगी.

जेटली ने जब परिस्थितियां देखी तो वह चौंक उठे. उन्हें समझ आ गया कि अगर उन्होंने  स्वयं  मोर्चा नहीं स्ांभाला तो सब गड़बड हो जाएगा. जेटली ने अपने जरनैल और यहां तक कि अपने हाथी-घोड़े भी बदल दिए. उन्होंने दिल्ली चुनावों से फारिग हुई अपनी दिल्ली टीम को अपने प्रचार अभियान की कमान सौंप दी. पिछले डेढ़ सप्ताह से जेटली साहब अपने क्षेत्र में मतदाता के साथ संपर्क करने के लिए दिन -रात जुटे हैं.

कांग्रेसियों की ओर से उन पर बाहरी होने के लगाए जा रहे आरोपों को प्रभावहीन करने के लिए उन्होंने शहर में एक करोड़ का एक घर भी खरीद लिया है. जिसका मतदाता पर अच्छा प्रभाव पड़ा है. मोदी लहर का कोई विशेष प्रभाव नजर नहीं आ रहा. कहीं-कहीं आप का प्रभाव देखने को मिल रहा है. पिछड़ी जातियों का वोट जो कभी कांग्रेस और बसपा के बीच बंटता रहा है. इस बार उसका झुकाव आप की ओर लग रहा है. वैसे इस क्षेत्र में 23 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे है. इनमें बसपा के प्रदीप बालिया भी मेहनत कर रहे हैं.

नरेन्द्र शर्मा
एसएनबी


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