केरल हाईकोर्ट की टिप्पणी : महिलाओं को अपने शरीर पर अधिकार नहीं मिलता

Last Updated 06 Jun 2023 10:28:48 AM IST

केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने सोमवार को पॉक्सो कानून (POCSO Act) से जुड़े एक मुकदमे से महिला अधिकार कार्यकर्ता को आरोपमुक्त करते हुए कहा कि आधी आबादी को प्राय: अपने शरीर पर स्वायतता का अधिकार नहीं मिलता है।


केरल हाईकोर्ट

न्यायालय ने कहा, अपने शरीर तथा जीवन के संबंध में फैसले लेने के कारण उन्हें परेशानी, भेदभाव एवं दंड का सामना करना पड़ता है एवं अलग-थलग किया जाता है।

महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा (Women's rights activist Rehana Fatima) के खिलाफ बच्चों का यौन शोषण से संरक्षण (POCSO) कानून, किशोर न्याय और सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून के तहत मुकदमा चल रहा था।

फातिमा (Rehana Fatima) को आरोपमुक्त करते हुए न्यायमूर्ति कौसर एदाप्पागथ ने कहा कि 33 वर्षीय कार्यकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर किसी के लिए यह तय करना संभव नहीं है कि उनके बच्चों का किसी भी रूप से ‘ऐंद्रिक गतिविधि’ में यौन संतुष्टि के लिए उपयोग हुआ हो।

अदालत ने कहा कि उन्होंने बस अपने शरीर को ‘कैनवास’ के रूप में अपने बच्चों को ‘चित्रकारी’ के लिए इस्तेमाल करने दिया था।

अदालत ने कहा, ‘‘अपने शरीर के बारे में स्वायत फैसले लेने का महिलाओं का अधिकार उनकी समानता और निजता के मौलिक अधिकार के मूल में है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत निज स्वतंत्रता के तहत भी आता है।’’

फातिमा ने निचली अदालत द्वारा उन्हें आरोपमुक्त करने वाली याचिका खारिज किए जाने को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय में अपनी अपील में फातिमा ने कहा था कि ‘बॉडी पेंटिंग’ समाज के उस दृष्टिकोण के खिलाफ राजनीतिक कदम था जिसमें सभी मानते हैं कि महिलाओं के शरीर का निर्वस्त्र ऊपरी हिस्सा किसी भी रूप में यौन संतुष्टि या यौन क्रियाओं से जुड़ा हुआ है, जबकि पुरुषों के शरीर के निर्वस्त्र ऊपरी हिस्से को इस रूप में नहीं देखा जाता है।

मामला क्या है

महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वह अपने नाबालिग बच्चों के समक्ष अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थीं और उन्होंने अपने शरीर पर ‘चित्रकारी’ की अनुमति दी थी।

भाषा
कोच्चि


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment