मीरवायज ने कश्मीर पर वाजपेयी फार्मूला अपनाने को कहा

Last Updated 25 Sep 2017 04:49:20 PM IST

उदारवादी कश्मीरी अलगाववादी नेता मीरवायज उमर फारूक ने कहा कि वह केन्द्र के साथ बिना शर्त बातचीत के हक में हैं, लेकिन ये भी कहा कि यह बातचीत अगर वाजपेयी सरकार के फार्मूले के अनुसार होगी तो इसकी सफलता की गुंजाइश सबसे ज्यादा होगी.


मीरवायज उमर फारूक (फाइल फोटो)

कश्मीरियों के मीरवायज अर्थात धार्मिक नेता फारूक ने कहा कि वाजपेयी फार्मूला में सभी पक्षों को शामिल किया गया था. उन्होंने इस संदर्भ में कश्मीरी पृथकतावादी नेताओं को नयी दिल्ली के साथ साथ इस्लामाबाद और पाक अधिकृत कश्मीर में उनके समकक्षों के साथ एक साथ संवाद की इजाजत दिए जाने का जिक्र किया.
         
अपने आवास पर पीटीआई-भाषा के साथ एक मुलाकात में मीरवायज ने कहा, हम बातचीत के लिए एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं, जिसमें हर किसी को शामिल किया जाए. हम इसे महज तस्वीरें खिंचवाने का मौका ही नहीं बन जाने देना चाहते. 
        
उन्होंने कहा, हमें बातचीत का सिलसिला शुरू करना चाहिए. नतीजे की फिक्र नहीं होनी चाहिए. बस यह प्रक्रिया संजीदा हो. 
      
मीरवायज (44) ने हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ओर से बातचीत के प्रस्ताव का स्वागत किया था. हालांकि यह पहला मौका है जब उन्होंने इस बात पर खुलकर बात की कि 70 वर्ष से चली आ रही समस्या को सुलझाने के लिए होने वाली बातचीत को सफल बनाने के बारे में वह क्या सोचते हैं.
     
हालांकि, वाजपेयी सरकार के फार्मूले पर वापस लौटने की उनकी राय से सरकार के इत्तेफाक रखने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि इसमें पाकिस्तान को शामिल करने की बात की गई है. मीरवायज ने साफ तौर पर कहा कि कश्मीर के सभी पक्षों, जिनसे गृहमंत्री बात करने की बात करते हैं, में पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर रियासत के सभी क्षेत्रों को भी शामिल किया जाना चाहिए.   

हिज्बुल मुजाहिदीन के हाथों अपने पिता मीरवायज फारूक की हत्या के बाद 16 बरस की उम्र में मीरवायज बने उमर फारूक कहते हैं, सरकार को सिर्फ इतना करने की जरूरत है कि वह उस समय (वाजपेयी सरकार) की पुरानी फाइलों का अध्ययन करे. आप इसे कोई भी नाम दे सकते हैं: त्रिपक्षीय, त्रिकोणीय या फिर तीन तरफा बातचीत मगर रास्ता यही है. 
      
कश्मीर मसले को हल करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नजरिए को ही वाजपेयी सिद्धांत कहा जाता है. इसके मुताबिक इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की भावना के तहत ही जम्मू कश्मीर में शांति, संपन्नता और विकास हो सकता है.
     
शुक्रवार के दिन अपने खुतबे के दौरान अमूमन अहिंसा की हिमायत करने वाले फारूक ने इस बात पर जोर दिया कि कश्मीर का मसला एक राजनीतिक समस्या है और इसे सैन्य तरीके से हल नहीं किया जा सकता.
     
उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले माह स्वतंत्रता दिवस पर अपनी तकरीर में कहा था कि कश्मीर मसले को गालियों या गोलियों से नहीं बल्कि कश्मीरियों को गले लगाकर ही हल किया जा सकता है.
     
उन्होंने कहा, यह स्वागत योग्य बयान था और हमने सोचा कि सरकार अपनी कश्मीर नीति पर फिर से विचार कर रही है. हालांकि इसमें कोई बदलाव नहीं आया है. दरअसल यह और ज्यादा कट्टर हो गई है. अलगाववादी नेताओं को बदनाम करने का अभियान जारी है. 
     
उन्होंने कहा कि उदारवादी अलगाववादियों की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि भारत कश्मीर समस्या को पूरी तरह पाकिस्तान की देन मानता है और इसे सीमापार आतंकवाद के नजरिए से देखता है. ऐसे में बाकी पूरे देश को कश्मीर समस्या को कश्मीरियों के नजरिए से दिखा पाना बहुत मुश्किल है, जिनकी अपनी आकांक्षाएं हैं.


     
फारूक कहते हैं, भारत के लोगों के साथ संपर्क की कोई गुंजाइश नहीं हैं. दिल्ली में बैठे उदारवादी भी हमसे बात करने से डरते हैं. हमें पत्थरबाज कश्मीरी कहा जाता है. लड़के पाकिस्तान गए बिना बंदूकें उठा रहे हैं. हमें पाकिस्तान को दोष देने के बजाय इसकी वजह का पता लगाना होगा. 
     
उन्होंने कहा, इतना दर्द, गुस्सा और नाखुशी है, जिसे दूर करना होगा, वर्ना कश्मीर एक बार फिर 1990 के दशक में चला जाएगा, जब उग्रवाद अपने चरम पर था.

भाषा


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