महाराष्ट्र में जारी रहेगा बीफ वध पर बैन, बंबई उच्च न्यायालय का आदेश
बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में बैलों के वध पर प्रतिबंध के राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा.
फाइल फोटो |
बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में भाजपा सरकार द्वारा बैलों के वध पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए शुक्रवार को उस बीफ को अपने पास रखने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, जिसके लिए जानवरों का वध राज्य से बाहर किया गया हो.
अदालत ने बीफ को अपने पास रखने भर को अपराध करार देने वाले प्रावधानों को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए रद्द कर दिया और कहा राज्य में मारे गए जानवरों का मांस ‘जानते-बूझते हुए रखने’ को ही अपराध करार दिया जाएगा.
न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति एस सी गुप्ता ने महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) कानून की धारा पांच (डी) और नौ (बी) को खारिज कर दिया. ये धाराएं राज्य के अंदर या बाहर, कहीं भी मारे गए पशुओं का मांस (बीफ) रखने भर को अपराध की श्रेणी में लाती थीं और ऐसे लोगों के लिए सजा का प्रावधान करती थीं. इन धाराओं को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार में दखल है.
अदालत ने कहा, ‘बीफ रखने भर को आपराधिक करार देने वाली कानून की धारा पांच (सी) को जानते बूझते हुए अपने पास बीफ रखने के रूप में पढ़ा जा रहा था. अगर किसी ऐसे व्यक्ति के पास से बीफ बरामद किया जाता है, जिसे इसके वहां होने की जानकारी पहले से नहीं थी, तो उसपर कर्रवाई नहीं की जा सकती. जानबूझकर रखे जाने को ही अपराध करार दिया जा सकता है.’
वर्ष 1976 के कानून के आधार पर गौवध और उसके मांस को अपने पास रखने या खाने पर प्रतिबंध था. हालांकि वर्ष 2015 में कानून में संशोधन करते हुए बैलों और सांढों के वध को भी इसमें शामिल कर लिया गया.
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब यह जिम्मेदारी आरोपी पर नहीं होगी कि वह खुद को निदरेष साबित करे बल्कि कानून के उल्लंघन को साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष पर होगी.
यह आदेश उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई कई याचिकाओं के आधार पर जारी किया गया है. इन याचिकाओं में कानून और विशेषकर महाराष्ट्र के बाहर वध किए गए जानवरों के बीफ को अपने पास रखने या उसे खाने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.
अदालत ने कहा, ‘हम (राज्य के भीतर) बैलों और सांढों के वध को प्रतिबंधित करने वाले कानून के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रख रहे हैं. ये उचित और वैध हैं.’
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘हालांकि कानून की धारा पांच (डी), जो बीफ रखने को अपराध करार देती है, वह किसी व्यक्ति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है. इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए. इसी तरह धारा नौ (बी), जो बीफ रखने के लिए दंडात्मक कार्रवाई की बात करती है, उसे भी रद्द किया जाना चाहिए.’
दो धाराओं- पांच (डी) और नौ (बी) को रद्द करते हुए अदालत ने इन्हें ‘असंवैधानिक’ करार दिया.
इस साल जनवरी में न्यायमूर्ति ओका और न्यायमूर्ति गुप्ता की एक खंड पीठ ने सभी संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था.
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