एलजी रोजमर्रा के काम में दखलंदाजी नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों के विवाद का हल निकालने के लिए निर्वाचित सरकार की सलाह पर एलजी की जिम्मेदारियां तय करनी होंगी.
उच्चतम न्यायलय, दिल्ली |
मंत्रिपरिषद की सलाह पर सरकार के कामकाज का दायित्व संविधानिक रूप से खोखला न हो, इसलिए इसकी व्याख्या करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचित सरकार के रोजाना के कामकाज में दिल्ली के उपराज्यपाल बाधक नहीं बन सकते हैं क्योंकि उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी मुकम्मल नहीं है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अर्जन कुमारसीकरी, अजय खानविलकर, धनन्जय चन्द्रचूड और अशोक भूषण की संविधान पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ आप सरकार की अपीलों पर सुनवाई के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श शब्द शून्य में नहीं हैं और इन्हें कुछ मायने तो देना ही होगा.
बहस के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदम्बरम ने कहा कि उपराज्यपाल ब्रिटिश राज के वायसराय जैसे नहीं हैं. वह सिर्फ राष्ट्रपति के उस समय तक प्रतिनिधि हैं जब तक उन्हें देश के राष्ट्रपति का विास हासिल है.
अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल और सरकार के बीच मतभेद नीतिगत मामलों को लेकर हो सकता है और यह मतभेद ठोस कारणों के जरिए साबित किए जाने चाहिए न कि सिर्फ मतभेद के लिए. अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल की जिम्मेदारी संपूर्ण नहीं है और यदि आप किसी नीतिगत मामले में न कहना चाहते हैं तो कृपया इसे राष्ट्रपति के पास भेज दीजिए. निर्वाचित सरकार के रोजमर्रा के कामों में बाधा नहीं डाली जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये उसकी अस्थाई टिप्पणियां हैं जो बहस के दायरे में हैं जिस पर केंद्र अपनी बहस में जवाब दे सकता है.
संविधान पीठ ने कहा कि पहली बात तो यह कि उपराज्यपाल और सरकार के बीच नीतिगत मामलों को लेकर किसी प्रकार के मतभेद होनी ही नहीं चाहिए और यदि कोई मतभेद है तो इसका संवैधानिक समाधान खोजना होगा. मंत्रिपरिषद की सहायता और परामर्श के शब्द शून्य में नहीं है ओर इन्हें कुछ मायने देने की जरूरत है.
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