दान पुण्य के नाम पर बाल भिक्षावृत्ति को बढावा दे रहे हैं आम लोग
देश में मंदिरों, मस्जिदों, दरगाहों और कई दूसरे धार्मिक स्थलों पर भीख मांगने वालों की मौजूदगी आम बात है, लेकिन इन जगहों पर मासूम बच्चों को भी इस धंधे में लगाया गया है.
(फाइल फोटो) |
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या लोग धार्मिक भावना के तहत दान पुण्य के नाम पर बाल भिक्षावृत्ति को बढावा दे रहे हैं?
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पिछले साल बाल भिक्षावृत्ति पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें अलग अलग अध्ययनों के माध्यम से कुछ आंकड़े पेश किए गए. इसके अनुसार एक दिन जब राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांग रहे बच्चों की गिनती की गई तो यह संख्या 5507 पाई गई.
राष्ट्रीय राजधानी में स्थित कई धार्मिक स्थल बाल भिक्षावृत्ति के इस धंधे का साक्षी बन रहे हैं. चाहे ऐतिहासिक जामा मस्जिद हो या फिर दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में हनुमान मंदिर अथवा हरजत निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह, इन सभी स्थानों पर बच्चे भीख मांगते देखे जा सकते हैं.
गैर सरकारी संगठन ‘चेतना’ के निदेशक संजय गुप्ता का कहना है, ‘आम जनता धार्मिक भावना में आकर बाल भिक्षावृत्ति में योगदान दे रही है. लोग दान-पुण्य समझकर पैसे देते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि वे कहीं न कहीं बाल अधिकारों के खिलाफ काम कर रहे हैं. उनको यह नहीं पता कि जिन बच्चों को वे भीख दे रहे हैं उनके पीछे कोई और है जिसके पास पैसा जा रहा है.’
निजामुद्दीन दरगाह के बाहर इन दिनों रोजाना 40 से 50 बच्चे भीख मांगते हैं. ये बच्चे आम तौर पर महिलाओं के साथ होते हैं. ये लोग सुबह दरगाह के बाहर पहुंच जाते हैं और देर रात वहां से हटते हैं.
दरगाह कमेटी के मुख्य प्रभारी सैयद कासिफ निजामी ने बताया, ‘दरगाह के बाहर करीब 40-50 बच्चे रोजाना होते हैं और इनके साथ महिलाएं होती हैं. ये बच्चे लोगों का भीख मांगते हुए दूर तक पीछा करते हैं जिसकी लोग शिकायत भी करते हैं. हमने प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. मुझे लगता है कि इसके पीछे पूरा गिरोह काम कर रहा है.’
निजामुद्दीन दरगाह जैसा सूरत-ए-हाल जामा मस्जिद, हनुमान मंदिर और दूसरे कई धार्मिक स्थलों का है जहां बच्चों से भीख मंगवायी जाती है अथवा मासूम बच्चों का इस्तेमाल करके भीख मांगने का धंधा चल रहा है.
गुप्ता ने कहा, ‘‘लोगों के दिमाग में यह बात रहती है कि बच्चे को भीख देकर बहुत पुण्य का काम कर रहे हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है. इन बच्चों का इस्तेमाल करके भीख का धंधा चला रहे लोग आम जनता की धार्मिक मनोभावना का पूरा दोहन करते हैं. उनको पता है कि बच्चों के हाथ फैलाने से लोग अपनी जेब से अधिक पैसे निकालेंगे। धर्म स्थलों पर उनका यह धंधा खूब फल-फूल रहा है.’
दिलचस्प बात यह है कि गुरूद्वारों के बाहर भीख मांगने वाले बच्चे और दूसरे भिखारियों की मौजूदगी लगभग ना के बराबर है. इसकी वजह स्पष्ट करते हुए गुप्ता कहते हैं, ‘ये लोग गुरूद्वारों के बाहर नहीं होते क्योंकि वहां इनको पैसे नहीं मिलते. वहां लंगर होता है और लोग इनको पैसे देने की बजाय लंगर खाने के लिए आमंत्रित करते हैं। इसलिए ये गुरूद्वारों के पास बहुत कम होते हैं.’
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