यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़ित के नाम का खुलासा न करें न्यायाधीश: दिल्ली हाईकोर्ट

Last Updated 29 May 2016 11:07:18 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में फैसला सुनाते समय न्यायिक अधिकारियों को पीड़ितों के नाम का जिक्र नहीं करना चाहिए.


(फाइल फोटो)

न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने यह बात तब कही जब छेड़छाड़ के एक मामले में एक न्यायाधीश और एक जिला एचं सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेशों में पीड़ित के नाम का जिक्र कर दिया.

अदालत ने कहा, ‘यह पाया गया है कि 21 अक्तूबर 2013 को दिए गए फैसले में पीड़ित के नाम का जिक्र किया गया है. निचली अदालत से फैसले में पीड़ित के नाम का संकेत देने की अपेक्षा नहीं थी.’

आगे अदालत ने कहा, ‘यह गलती जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने भी कर दी. पीठासीन अधिकारियों को ऐसे मामलों में फैसला देते समय पीड़ित की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए उनकी पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिए.’

साथ ही अदालत ने एक व्यक्ति की वह पुनरीक्षण याचिका भी खारिज कर दी जिसमे उसने मजिस्ट्रेटी अदालत द्वारा खुद को दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपनी अपील पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा जुलाई 2014 को दिए गए फैसले की वैधता को चुनौती दी थी. मजिस्ट्रेटी अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (छेड़छाड़) के तहत दोषी ठहराया था.

न्यायाधीश ने जुलाई 2012 में ओखला इलाके में सात साल की एक बच्ची की मर्यादा भंग करने के जुर्म में व्यक्ति को एक साल की सजा सुनाई थी.

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान व्यक्ति की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि वह दोषसिद्धी के निष्कर्ष को चुनौती नहीं दे रहा है. वकील ने दोषी के लिए नरमी बरतने का आग्रह करते हुए कहा कि वह 70 साल का है और ‘पर्याप्त अवधि’ तक हिरासत में रह चुका है.

अदालत ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने दोषी ठहराए जाने के निष्कर्ष को चुनौती नहीं दी है और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दोषसिद्धी यथावत है. इसके अलावा, याचिकाकर्ता का दोष साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर सबूत है.’

किसी भी तरह की नरमी बरतने से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि व्यक्ति अपने कृत्य का नतीजा  अच्छी तरह जानता था और पीड़ित ‘उसकी पोती की तरह’ थी.



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