डीयू फर्जी एडमिशन: पुलिस रिपोर्ट मिलने पर होगा एक्शन
दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों के दाखिले में फर्जीवाड़े के उजागर होने के बाद डीयू प्रशासन इस बात का इंतजार कर रहा है कि इस बाबत दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मिले.
डीयू फर्जी एडमिशन (फाइल फोटो) |
हालांकि प्रशासन को पुलिस की तरफ से कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, लिहाजा अभी विश्वविद्यालय इस मामले में कोई एक्शन लेने की स्थिति में नहीं है. दूसरी तरफ इस मामले में अब अनुसूचित जाति आयोग से दखल देने की मांग की गई है. दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी-एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम के चेयरमैन प्रो हंसराज सुमन ने एससी कमीशन को पत्र भेजकर इस मामले में कार्रवाई की मांग की है.
डीयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस मामले में विश्वविद्यालय के पास कोई सूचना लिखित तौर पर नहीं आई है, लिहाजा इस मामले में पुलिस से रिपोर्ट मिलने के बाद ही विश्वविद्यालय कुछ कर सकती है. फिलहाल कॉलेजों को सलाह दी गई है कि वे अपने यहां दाखिले को लेकर जमा हुए प्रमाणपत्रों की जांच कर लें.
बता दें कि पुलिस द्वारा डीयू से सम्बद्ध नौ कॉलेजों में फर्जी प्रमाणपत्रों से दाखिले लिये जाने के मामले का खुलासा किया गया है. बताया जाता है कि करीब 25 से अधिक दाखिले फर्जी प्रमाणपत्रों से किये गये हैं. जिन कॉलेजों में फर्जीवाड़ा हुआ है, उनमें हिन्दू कॉलेज, किरोड़ीमल कॉलेज, अरविंदो कॉलेज, दयाल सिंह कॉलेज प्रात: व सांध्य, रामलाल आनंद कॉलेज, डीवीए कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज व कमला नेहरु कॉलेज शामिल है.
प्रो सुमन ने एससी कमीशन को भेजे पत्र में कॉलेजों में सेशन 2015-16 में अंडरग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन लेने वाले एससी- एसटी ओबीसी के जाति प्रमाण पत्रों की जांच राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति के कल्याणार्थ संसदीय समिति से कराने की मांग की है. प्रो सुमन ने मांग की है कि संसदीय समिति जाति प्रमाणपत्रों की जांच करने के लिए एक टीम भेजे, जिससे फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधर पर एडमिशन लेने वाले छात्रों का खुलासा हो सके और वास्तविक रूप में जो एससी-एसटी ओबीसी है उसे कॉलेज में एडमिशन मिल सके. जब भी एसी कमीशन व संसदीय समिति दिल्ली विश्वविद्यालय में आये तो वह 2010 से 2015 के बीच एससी-एसटी ओबीसी के जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर कॉलेजों में एडमिशन हुआ है उनकी गम्भीरता से जांच करें क्योंकि जब से कॉलेजों में सीधे एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हुई तब से फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के मामले सामने आने लगे हैं.
एससी-एसटी व ओबीसी के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर जो वास्तविक रूप में उसका हकदार है उसे तो कॉलेज में एडमिशन मिलता नहीं है बल्कि उसका हक मारकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर एडमिशन पा रहा है जिसकी जितनी र्भत्सना की जाए कम है. प्रो सुमन ने कहा कि इसकी सख्ती से जांच की जाएं और इसमें संलिप्त लोगों के विरूद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. प्रो सुमन का कहना है कि पूर्व के वर्षो डीयू के कॉलेजों में एडमिशन कराने से पूर्व एससी-एसटी व विकलांग छात्रों का केन्द्रीयकृत प्रणाली के आधार पर रजिस्ट्रेशन होता था. रजिस्ट्रेशन कराते समय प्रत्येक छात्रा को अपने मूल दस्तावेजों की जांच कराने के बाद ही उस छात्र-छात्रा को रजिस्ट्रेशन फार्म दिया जाता था, जिसमें वह अपनी पसंद के कोर्स व सब्जेक्ट भरते थे.
उन्होंने बताया है कि रजिस्ट्रेशन फार्म के साथ छात्रा-छात्राओं को स्वयं का जाति प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र में रजिस्ट्रेशन फार्म संख्या लिखा जाता था, 10वीं व 12वीं कक्षा की अंकतालिका, स्कूल का प्रोविजनल सर्टिफिकेट, चरित्र-प्रमाण पत्र व फार्म के साथ दो फोटो लगाये जाते थे. जाति प्रमाण पत्र की दो फोटों स्टेट कापी ली जाती थी. प्रो सुमन ने बताया है कि एससी-एसटी विद्यार्थियों के रजिस्ट्रेशन के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन 10 दिनों में उन प्रमाण पत्रों की जांच, कोर्स व विषय, विद्यार्थियों की कोर्स व कॉलेज की पसंद कर लेने के बाद छात्र-छात्राओं को कॉलेज की प्रोविजनल एडमिशन स्लिप दी जाती थी. विद्यार्थी उस स्लिप को लेकर कॉलेज में एडमिशन ले लेता था. सामान्य विद्यार्थियों की तरह एससी-एसटी की तीन से पांच लिस्ट निकाली जाती थी. जिन छात्रों के इन लिस्ट में नाम नहीं आते थे बचे हुए छात्रों की काउंसलिंग के माध्यम से कॉलेज अलॉट किए जाते थे.
उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी में एडमिशन का कार्य पूरा होने पर एससी-एसटी सेल का कार्य होता था कि वह संबंधित विद्यार्थियों के जाति प्रमाण पत्रों को उस राज्य में भेजकर जहां से वह बना है उसकी जांच के लिए लिखता था. यदि जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता था तो एससी-एसटी सेल तुरन्त कॉलेज को एडमिशन कैंसिल करने के लिए लिखता था और छात्र के विरुद्ध कार्यवाही की जाती थी. उनका यह भी कहना है कि एससी-एसटी के रजिस्ट्रेशन का कार्य एससी-एसटी स्पेशल सेल करता था. एडमिशन के समय इस सेल की महवपूर्ण भूमिका होती थी.
सेल डीयू में टीचिंग करने वाले एससी-एसटी के लगभग 20 सदस्यों को रखा जाता था. जो रजिस्ट्रेशन के समय फार्म भरवाने में विद्यार्थियों की मदद करते हैं. इसके अतिरिक्त एससी-एसटी एडमिशन ग्रीवेंस कमेटी बनाई जाती थी. कमेटी का कार्य उस समय अधिक होता था जब उन विद्यार्थियों को जिन्हे रजिस्ट्रेशन स्लिप दी जाती थी और कॉलेज उस विद्यार्थी को एडमिशन करने से मना कर देता था.
प्रो सुमन ने एससी कमीशन व संसदीय समिति को लिखे पत्र में यह भी लिखा है कि जब से यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया समाप्त हुई है, यूनिवर्सिटी अपने दायित्व से भाग रही है. एडमिशन होने के बाद कॉलेजों के प्रिंसिपल उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए संबंधित कार्यालयों में व उन राज्यों में नहीं भेजे जाते.
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