जंग में केजरीवाल का पलड़ा भारी

Last Updated 26 May 2015 05:21:39 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की एसीबी को आपराधिक मामलों में केन्द्र के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से रोकने वाली केन्द्र की अधिसूचना को संदिग्ध करार दिया.


कनाट प्लेस के सैंट्रल पार्क में आयोजित ‘पब्लिक कैबिनेट’ में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया.

आप सरकार को राहत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) को आपराधिक मामलों में केन्द्र के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से रोकने वाली केन्द्र की हालिया अधिसूचना को संदिग्ध करार दिया और कहा कि उपराज्यपाल अपने विवेकाधिकार से काम नहीं कर सकते.

उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार के उपराज्यपाल दिल्ली के नागरिकों द्वारा सीधे तौर पर निर्वाचित मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं और उनका पक्ष लेने वाला केन्द्र का कार्यकारी आदेश संदिग्ध है. अदालत ने कहा कि अगर कोई अन्य संवैधानिक या कानूनी टकराव नहीं है तो उपराज्यपाल को जनादेश का सम्मान करना चाहिए.

ये टिप्पणियां एक फैसले का हिस्सा हैं जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के पास पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करने का क्षेत्राधिकार है. दिल्ली की आप सरकार और उपराज्यपाल के बीच शक्तियों और निर्वाचित सरकार को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है. केन्द्र ने 21 मई को एक अधिसूचना जारी करके उपराज्यपाल का समर्थन किया था.

उच्च न्यायालय ने एक हेड कांस्टेबल की जमानत याचिका खारिज कर दी जिसे भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने गिरफ्तार किया था. न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने कहा,वर्तमान याचिका पर फैसला सुरक्षित रखने के बाद, गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक अधिसूचना जारी की जिसमें आठ नवम्बर 1993 की अधिसूचना में और संशोधन किया गया और यह व्यवस्था दी गई कि एसीबी पुलिस स्टेशन केन्द्र सरकार के अधिकारियों, कर्मचारियों और पदाधिकारियों के खिलाफ अपराधों पर संज्ञान नहीं लेगा.

न्यायमूर्ति ने कहा, मेरे नजरिये से, चूंकि केन्द्र के पास सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची की पहली और दूसरी प्रविष्टियों में उल्लखित मामलों के संबंध में कदम उठाने की कार्यकारी शक्ति नहीं है, केन्द्र सरकार द्वारा 21 मई 2015 को जारी कार्यकारी आदेश भी संदिग्ध है. न्यायाधीश ने कहा, संप्रभु शक्ति रखने वाली जनता के फैसले को उपराज्यपाल द्वारा विधानसभा के कार्यक्षेत्र में आने वाले विषयों के संबंध में सम्मान किया जाना चाहिए, बशत्रे कोई संवैधानिक या कानूनी टकराव नहीं हो.

न्यायाधीश ने कहा, इसलिए, समवर्ती सूची की पहली और दूसरी प्रविष्टि में उल्लखित विषयों के संबंध में उपराज्यपाल अपने विवेकाधिकार का प्रयोग नहीं कर सकते और वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं. किसी अपराध की जांच के संबंध में दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्ति और विधानसभा की विधायी शक्ति सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची की पहली और दूसरी प्रविष्टि से आती है.

उच्च न्यायालय ने हेड कांस्टेबल अनिल कुमार की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि उनकी यह दलील नामंजूर की जाती है कि उनके खिलाफ शिकायतकर्ता की शिकायत पर कार्रवाई के मामले में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा सक्षम नहीं है या यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता.

अदालत ने कहा, चूंकि आवेदनकर्ता एनसीटीडी के नागरिकों की सेवा कर रहा दिल्ली पुलिस का कर्मी है और दिल्ली पुलिस के कर्मियों के कामकाज मोटे तौर पर और अनिवार्य रूप से राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मामलों से जुड़े होते हैं, मेरे विचार से भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किसी दिल्ली पुलिस अधिकारी या कर्मी के संबंध में किसी शिकायत पर विचार करने और कार्रवाई करने और अपराध की जांच करना तथा उस पर मुकदमा चलाना राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अधिकार क्षेत्र में है. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने हेड कांस्टेबल कुमार को उत्तर पूर्व दिल्ली के सोनिया विहार थाने से 2 मई को गिरफ्तार किया था.

इससे पहले 14 मई को भी उच्च न्यायालय ने कुमार को गिरफ्तार करने के मुद्दे पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यक्षत्र पर सवाल खड़ा करने पर दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई थी. कुमार को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब एक कबाड़ी ने भ्रष्टाचार निरोधी हेल्पलाइन 1033 पर शिकायत दर्ज कराई थी कुमार उनसे रित में 20 हजार रुपये मांग रहे हैं और ऐसा नहीं करने पर झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे रहे हैं.

आदेश की प्रति मिलने के बाद कानूनी कार्रवाई पर विचार करेगा गृह मंत्रालय

दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के अधिकार क्षेत्र पर केंद्र की हालिया अधिसूचना को संदिग्ध करार दिये जाने के बाद केंद्र ने कहा कि वह मामले में पक्ष नहीं है और फैसले की प्रति मिलने के बाद कानूनी कार्रवाई पर विचार करेगा.

गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, गृह मंत्रालय मामले में पक्ष नहीं है. गृह मंत्रालय फैसले की प्रति प्राप्त करेगा और मामले में उचित कानूनी कार्रवाई पर विचार करेगा. इससे कुछ घंटे पहले ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने एसीबी को आपराधिक मामलों में केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने वाली केंद्र की हालिया अधिसूचना को संदिग्ध करार दिया था और कहा कि इस मामले में उपराज्यपाल अपने विवेक से काम नहीं कर सकते. उच्च न्यायालय ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह और सहायता से काम करने के लिए बाध्य हैं.



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