मेरे साथ जनता है, उनके साथ तंत्र है : केजरीवाल

Last Updated 02 Feb 2015 05:42:06 AM IST

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का आत्मविश्वास सिर चढ़कर बोल रहा है.


आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल.

अबकी बार पूर्ण बहुमत को लेकर वे निश्चिंत हैं. भाजपा की भारी-भरकम फौज से निपटने के लिए केजरीवाल ने जनता को ढाल बना लिया है. पार्टी के संस्थापक सदस्य शांति भूषण की तीखी टिप्पणी को जहां वह अभिभावक मानकर सहृदयता से स्वीकार कर रहे हैं. वहीं कभी आंदोलन की साथी रहीं भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी पर निशाना साधने से वह नहीं चुकते. केजरीवाल से राष्ट्रीय सहारा के संवाददाता रविशंकर तिवारी ने विस्तार से बातचीत की है. पेश है उसने बातचीत के प्रमुख अंश-

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भारी-भरकम फौज उतार दी है. आप अकेले कैसे मुकाबला कर पाएंगे?

हमारे साथ जनता है. भाजपा के साथ तंत्र है. महाभारत में कृष्ण के पास अर्जुन और दुर्योधन दोनों गए थे. दुर्योधन ने कृष्ण से चतुरंगिनी सेना मांगी और अर्जुन ने कृष्ण को मांग लिया. ठीक उसी प्रकार हमारे साथ जनता-जनार्दन है और उनके पास तंत्र है. इस चुनाव में मुकाबला कौरव और पांडव के बीच होने जा रहा है. जीत तो पांडव (आप) की ही होगी, जिसके पास जनता-जनार्दन है.

आप किरण बेदी को अवसरवादी कैसे कह सकते हैं. यदि वह अवसरवादी हैं तो कभी आप ने ही उन्हें सीएम पद का ऑफर क्यों दिया था?

वह अवसरवादी हैं. सीएम की कुर्सी के लिए ही वह भाजपा में गई हैं. हमने किरण बेदी को सीएम के लिए ऑफर दिया था, जो वैल्यू के लिए लड़ रही थीं. वह आरटीआई के दायरे में राजनीतिक दलों को लाने के लिए लड़ रही थीं. मजबूत जनलोकपाल के लिए कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही थीं. हमें क्या पता था वह इतना जल्दी चेंज हो जाएंगी.

किरण बेदी के आने से आप के लिए चुनौती कितनी बढ़ी है?

पहले चुनौती थी. किरण बेदी के आने से चुनौती खत्म हो गयी है. रास्ता साफ हो गया है. अब भाजपा का जहाज डूबने से कोई नहीं बचा सकता. वह अनधिकृत कालोनियों के बारे में नहीं जानती हैं. इसलिए भाजपा हाईकमान ने बेदी से कम बोलने के लिए कह दिया है. वह जितना अधिक बोलेंगी वोट कम होगा. वह पुलिस प्रशासक रही हैं. डंडा चलाना जानती हैं. भाजपा के लोग ही उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं. वैसे किरण बेदी अच्छी महिला हैं. अब उन पर दया आ रही है. वह बुरी तरह फंस गई हैं.

आप के संस्थापक सदस्य शांति भूषण ने कहा है कि केजरीवाल को संयोजक पद से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने आपको मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरे पायदान पर रखा है. इसको लेकर आप का क्या कहना है?

भूषण जी हमारे गार्जियन हैं. दो थप्पड़ मार भी देंगे तो कोई बात नहीं है. हम सहन करेंगे. भूषण के बयान को पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के नजरिए से देखा जाना चाहिए.

प्रशांत भूषण ने संदिग्ध 12 उम्मीदवारों की लिस्ट सौंपकर टिकट वापस लेने के लिए कहा. इसके बावजूद आप ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

हां, उन्होंने लिस्ट सौंपी थी. पार्टी के आंतरिक लोकपाल पूर्व एडमिरल रामदास हैं. लोकपाल का फैसला अंतिम होता है. लोकपाल रामदास ने जांच-पड़ताल के बाद पाया कि दो उम्मीदवार ठीक नहीं हैं. महरौली के उम्मीदवार को पर्चा दाखिल करने के अंतिम 24 घंटे पहले टिकट वापस ले लिया गया. मुंडका के उम्मीदवार को पर्चा दाखिल करने के अंतिम दिन टिकट वापस ले लिया गया.

आप वोटरों को दूसरे दलों से पैसे लेने की सलाह देते हैं और वोट अपने लिए मांगते हैं, किस तरह का नैतिक पाठ पढ़ा रहे हैं?

मेरे कहने का मतलब है कि जो लोग पैसा देकर वोट खरीद रहे हैं. उन्हें वोट कतई मत देना. जनता समझ रही है कि जो पैसे देकर वोट खरीदना चाहते हैं उन्हें वोट नहीं देना चाहिए. ऐसा कहकर हम रितखोरी को रोकना चाहते हैं. जनता को उनकी वोट की कीमत समझा रहे हैं. ताकि वे पैसे के लालच में वोट न दें.

पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो क्या एक बार फिर कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे?

इस बार कम से कम 45 सीट मिलने की उम्मीद है. हर हाल में आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलेगा. पिछली बार मीडिया के लोग और राजनीतिक दलों के लोग 2-4 सीटें दे रहे थे तो 28 सीटें मिली. इस बार तो मीडिया और दूसरे दलों के लोग भी हल्के में नहीं ले रहे हैं.

पिछले चुनाव और इस चुनाव में क्या फर्क महसूस कर रहे हैं?

पिछली बार मैं राजनीति में नया-नया था. दिल्ली के लोग भी आम आदमी पार्टी का पहली बार नाम सुन रहे थे. राजनीतिक अनुभव का अभाव था. लोगों को भरोसा नहीं था कि आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिलेंगी. इस बार ऐसा नहीं हैं. मैंने भी अनुभव से सीख लिया है. लोगों का भरोसा भी बढ़ा है. इस चुनाव में पहले से अधिक कंफर्टेबल हूं.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि आप को धरना देने में मास्टरी मिली है. क्या मुख्यमंत्री बनने के बाद फिर से धरना देंगे?

वे लोग गाली-गलौच की भाषा पर उतर आए हैं. हमें बंदर कह रहे हैं. उन्हें मुद्दे की राजनीति से परहेज है. हम मुद्दों की बात करते हैं तो नक्सली कहते हैं. जंगल में भेजने की बात करते हैं. लोकतंत्र की मजबूती के लिए डिस्कशन, डिबेट और धरना-प्रदर्शन का महत्व होता है. जनता के हितों की रक्षा के लिए धरना-प्रदर्शन करने की जरूरत पड़ेगी तो करूंगा.

मोदी जी भी अपनी मन की बात कहते हैं, आप अपनी मन की बात में क्या कहना चाहेंगे?

कांग्रेस टक्कर में नहीं है. कांग्रेस को वोट देकर बेकार न करें. गरीबों के घर का खर्चा नहीं चल रहा है. सात महीने से बीजेपी वालों ने कुछ नहीं किया उनके लिए. इसलिए बीजेपी वालों के मोह पॉश में फंसने की जरूरत नहीं है. अबकी चूक मत करना. केजरीवाल ही आएगा आप के काम.

 



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