राजधानी में 5 दिन में ठंड से 48 मौतें !

Last Updated 27 Dec 2014 05:49:27 AM IST

देश की राजधानी दिल्ली में ठंड से हुई पांच दिनों में 48 मौतों ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है.




राजधानी दिल्ली में कड़ाके की ठंड मेे रोड पर सोते लोग..

देश की राजधानी का यह हाल हैं तो देश के उन इलाकों का क्या होगा जहां प्रशासन और मीडिया किसी  की नजर ही नहीं जाती. राजधानी में ठंड से होने वाली मौतों ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोल दी है. दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में 5 दिनों में 48 मौतें हुई हैं. कनॉट प्लेस में ठंड से बृहस्पतिवार को 35 साल के आदमी की मौत हुई. दस दिनों में कनॉट प्लेस में यह दूसरा मामला है.

एक दिसम्बर से अब तक राजधानी में खुले में पड़े 235 शव मिले हैं. दिल्ली पुलिस के जोनल इंटीग्रेटिड पुलिस नेटवर्क के सूत्रों की मानें तो कुल मौतों में से 22 दिसम्बर के बाद 48 मौतें ऐसी हुई हैं जिनकी वजह ठंड के साथ ही बीमारी भी हो सकती है.

यह खुलासा इन शवों के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में कराए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से हुआ. रिपोर्ट के अनुसार अन्य 187 मौतें दरअसल एक दिसम्बर से 22 दिसम्बर के मध्य दर्ज की गई. मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार मृतकों में से 80 फीसद बेघर लोग थे. इनके शरीर पर किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे.

न ही इन लोगों को पहले से कोई गंभीर बीमारी थी. दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी कमल मल्होत्रा के अनुसार शेल्टरों में बहुत से लोग ऐसे रहते हैं जो ड्रग एडिक्ट होते हैं. वे नशा करने के बाद खुले में जाकर सो जाते हैं. उन्हें लगता है कि नशे की वजह से वे गर्म रहेंगे, लेकिन इसी भ्रम में उनकी मौत हो जाती है.

इस पर बेघरों के लिए काम करने वाली संस्थाओं का कहना है कि शेल्टर में रह रहे लोगों के बारे में सरकार को सारी जानकारियां होती हैं. नशा करने वालों के लिए ड्रग डीएडिक्शन सेंटर खोलने का काम सरकार का है, लेकिन दिल्ली में सिर्फ 3 सेंटर काम कर रहे हैं. आंकड़ों के हिसाब से सेंटर की संख्या 3 दर्जन के आसपास होने का दावा किया जाता है.

सेंटर फॉर हॉलिस्टिक के सुनील अलेडिया ने दिल्ली में अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के आंकड़ों के हवाले से कहा कि बोर्ड 8 मोबाइल वैन डॉक्टरों के साथ इनके लिए चला रहे हैं लेकिन ये वैन दिखती नहीं हैं. शहरी अधिकार मोर्चा के इंदु प्रकाश का कहना है हर साल इस तरह की घटनाओं के बाद भी सरकारी इंतजाम कम है. अब भी दिल्ली में सिर्फ नाइट शेल्टर 92 स्थायी बिल्डिंग हैं, 109 शेल्टर टेम्परेरी हैं. 31 टेंट डाले गए हैं. जगह बस इतनी ही है कि इनमें 20 हजार लोग रह पाएं लेकिन जरूरत है कि 1.5 लाख लोगों को रखने की.

बेघरों में होता है हाइपोथर्मिया

अगर खुले में पड़ा कोई शव मिलता है और उस शख्स की पहचान नहीं हो पाती है तो बेघरों के लिए काम करने वाले एनजीओ पुलिस को सूचना देते हैं. पुलिस उन्हें पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाती है. वहां 3 दिनों तक शव को रखा जाता है. अगर बॉडी पर कोई क्लेम नहीं करता है तो उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि मौत किस वजह से हुई.

अगर कोई बीमार हालत में मिलता है तो एनजीओ उसे खुद अस्पताल लेकर जाती है. स्वास्थ्य सचिव एससीएल दास ने कहा कि नशा करने वालों में हाइपोथर्मिया का डर ज्यादा होता है. यह स्थिति वह होती है जिसमें शरीर का तापमान, सामान्य तापमान से कम हो जाता है. यानी इसमें शरीर का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस (95 डिग्री फारहेनाइट) से कम हो जाता है.

ज्ञानप्रकाश
एसएनबी


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