सोमनाथ भारती के खिलाफ NHRC के आदेश को हाई कोर्ट ने किया रद्द

Last Updated 26 Dec 2014 06:51:43 PM IST

आप नेता सोमनाथ भारती को 12 अफ्रीकी महिलाओं के खिलाफ नस्ली भेदभाव और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए दोषी ठहराए जाने के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया.


सोमनाथ के खिलाफ NHRC आदेश रद्द (फाइल फोटो)

भारती पर दिल्ली सरकार में मंत्री रहने के दौरान दक्षिण दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन इलाके में आधी रात को छापे की कार्रवाई के दौरान अफ्रीकी मूल की महिलाओं के साथ बदसलूकी के आरोप लगे थे.
   
न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने एनएचआरसी की 29 सितंबर की व्यवस्था को रद्द करते हुए आयोग को यह निर्देश भी दिया कि मामले में नये सिरे से सुनवाई की जाए और भारती द्वारा उनके बचाव में रखे गए सबूतों को संज्ञान में लेते हुए विस्तृत आदेश जारी किया जाए.
   
आप नेता से भी जनवरी में सुनवाई की अगली तारीख पर आयोग के समक्ष पेश होने को कहा गया है.
   
हाई कोर्ट ने एनएचआरसी की 29 सितंबर की व्यवस्था के खिलाफ भारती की याचिका खारिज करने के एकल न्यायाधीश के फैसले के विरद्ध उनकी अपील पर आदेश जारी किया.
   
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन और केंद्र सरकार के स्थाई वकील जसमीत सिंह ने मामले में भारत सरकार की ओर से पक्ष रखा.

भारती ने वकील दीपक खोसला के माध्यम से दाखिल अपनी अपील में दलील दी थी कि एकल न्यायाधीश ने उन्हें एनएचआरसी के सामने परिस्थिति के तथ्यों की और रिट याचिका के विचारणीय होने के कानूनी आधारों की व्याख्या करने का निष्पक्ष अवसर नहीं दिया और उनकी याचिका को ‘अपरिपक्व’ रूप से खारिज कर दिया.
    
एनएचआरसी के आदेश के खिलाफ रिट याचिका में भारती ने मांग की थी कि आयोग की व्यवस्था को अमान्य घोषित किया जाए क्योंकि उन्हें अपने बचाव में साक्ष्य पेश करने का मौका दिये बिना आदेश जारी किया गया.
   
उन्होंने केंद्र सरकार, एनएचआरसी और दिल्ली सरकार से 100 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा था.
   
भारती की याचिका में यह भी कहा गया था कि एनएचआरसी ने अपरिपक्व तरीके से दिल्ली सरकार को उन 12 महिलाओं को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया जिनके साथ आप नेता द्वारा कथित तौर पर नस्लीय र्दुव्‍यवहार, अवैध तरीके से बंधक बनाने, बदसलूकी आदि के आरोप लगे थे.
   
याचिका में यह भी पूछा गया कि क्या एनएचआरसी को महज प्रथमदृष्टया निष्कर्षों के आधार पर और कार्यवाही को पूरी तरह तार्किक परिणति तक पहुंचाये बिना मुआवजा देने का आदेश देने का अधिकार है.



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