काम की नहीं रहीं एम्स, पीजीआईएमईआर को दान में मिली आंखे
आंखों को अनमोल और नेत्रदान महादान माना जाता है लेकिन दिल्ली के एम्स और पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ जैसे देश के शीर्ष अस्पतालों में पिछले पांच वर्षों में दान में प्राप्त आंखें उपयोग में नहीं लायी जा सकीं.
काम की नहीं रहीं दान में मिली आंखे (फाइल फोटो) |
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए यह जानकारी मिली है.
इस जानकारी के अनुसार एम्स के तहत आने वाले डॉ. राजेन्द्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र को साल 2009 से 2013 के बीच नेत्रदानियों से 4440 आंखें मृत्यु के बाद मिलीं इनमें से 3130 आंखें नेत्रहीनों को लगाई गई लेकिन इस अवधि में विभिन्न कारणों से ऐसी 1310 आंखें उपयोग में नहीं लाई जा सकी.
दान में प्राप्त आंखे उपयोग में नहीं आने के बारे में एम्स ने कहा कि कुछ नेत्रदाताओं की रक्त जांच में एचआईवी, एचसीवी, सिफिलिस आदि के संदर्भ में सकारात्मक (पोजिटिव) पाई गई.
कुछ मामलों में मृत्यु के पश्चात शवगृह से देर से नेत्र प्राप्त होना और उपयुक्त परिजनों के उपस्थित न होने के कारण नेत्र प्रतिरोपण के योग्य नहीं रह गई थीं.
आरटीआई के तहत (पीजीआईएमईआर) स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, चंडीगढ़ से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2009-10 से 2013-14 के दौरान पांच वर्षों में अस्पताल को दान स्वरूप 1584 आंखे प्राप्त हुई, इनमें से 1130 आंखें का उपयोग किया गया जबकि 454 आंखे उपयोग में नहीं लाई जा सकी.
पीजीआईएमईआर ने ये आंखे उपयोग नहीं करने के लिए कई मामलों में सेरोलॉजी, एचआईवी, हेपेटाइटिस आदि जांच सकारात्मक आना बताया.
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