जेएनयू में वामपंथी हनक बरकरार

Last Updated 15 Sep 2014 06:36:29 AM IST

दिल्ली में जेएनयू चारदीवारी से बाहर भले ही लाल सलाम की गूंज न सुनाई पड़ती हो, लेकिन कैंपस के भीतर वामपंथ की हनक बरकरार है.


जेएनयू छात्र संघ चुनाव: अध्यक्ष आशुतोष कुमार, उपाध्यक्ष अनंत प्रकाश नारायन, जनरल सेक्रेटरी चिंटू कुमारी, ज्वाइंट सेक्रेटरी शफाकत हुसैन बट.

मौजूदा छात्रसंघ चुनाव के नतीजों के मुताबिक वामपंथी वोटों के बिखराव के बावजूद भी एनएसयूआई और एबीवीपी (दोनों के वोटों को मिला दें तब भी) मुकाबले में पीछे हैं. कैंपस में एनएसयूआई का वोट बैंक एबीवीपी में शिफ्ट हो चुका है. ऐसे में एबीवीपी की स्थिति मजबूत हुई है. उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर एबीवीपी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे. हालांकि मतों का अंतर अधिक है. एनएसयूआई के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार जोगिन्दर सिंह पंवार को तो नोटा से भी कम वोट मिले हैं.

इस बार जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में आइसा को झटका मिलने की उम्मीद जतायी जा रही थी. कारण कि छात्रसंघ अध्यक्ष अकबर चौधरी (आइसा) पर कॉडर की एक छात्रा ने कथित यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसके बाद अकबर चौधरी को इस्तीफा देना पड़ा था. लेकिन आइसा ने इस मुद्दे को झुठलाते हुए फतह हासिल कर ली. अकबर चौधरी पर आरोप लगाने वाली छात्रा हिना गोस्वामी को एनएसयूआई ने उपाध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ाया. हिना के साथ छात्रों की सहानुभूति देखने को मिली. यही वजह है कि एनएसयूआई के सेंट्रल पैनल में उपाध्यक्ष पद की उम्मीदवार हिना गोस्वामी को सर्वाधिक 711 वोट मिले और वह दूसरे नंबर पर रहीं.
 
चुनाव के दौरान कैंपस में एनएसयूआई लगभग बिखरी-बिखरी सी दिखी. एनएसयूआई के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार जोगिन्दर सिंह पंवार तो मात्र 129 वोट पाए. इनसे दोगुना अधिक वोट तो नोटा को पड़े. नोटा के पक्ष में करीब 270 मत पड़े. दरअसल प्रेसीडेंशियल डिबेट के दौरान एबीवीपी के छात्र दो खेमे में बंट गए.

आनन-फानन में हिन्दू छात्र सेना का औपचारिक गठन हो गया और इससे जुड़े छात्रों ने नोटा को वोट किया. जेएनयू कैंपस में एबीवीपी कॉडर से जुड़े सीनियर छात्रों का कहना है कि इसी खींचतान की वजह से संगठन ने एक सुनहरा मौका हाथ से गंवा दिया गया. यही नहीं कैंपस में चार-पांच छात्राओं के हॉस्टल हैं, जहां प्रचार करने के लिए संगठन से जुड़े छात्र गए ही नहीं. जिन दो सीटों पर एबीवीपी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे उन पर भी वोटों का अंतर काफी अधिक है.

आइसा के उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवार अनंत प्रकाश को 1366 वोट मिले, जबकि एबीवीपी के उम्मीदवार जाहिदुल दीवान 756 वोट मिले और वे दूसरे नंबर पर रहे. यानी हार का अंतर 610 वोट का रहा. जनरल सेक्रेटरी पद पर आइसा की चिंटू कुमारी को 1605 वोट मिले, जबकि एबीवीपी के उम्मीदवार आशीष को 791 वोट मिले. इस सीट पर भी हार का अंतर 814 वोट है. एनएसयूआई तो हर सीट पर लड़ाई से बाहर रही.

कैंपस में एआईएसएफ और डीएसएफ ने इस बार गठबंधन किया था. गठबंधन संगठन का नाम लेफ्ट प्रोग्रेसिव फ्रंट (एलपीएफ) दिया गया. इस गठबंधन फ्रंट को मजबूती प्रदान करने के लिए जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष वी लेनिन जुटे हैं. सेंट्रल पैनल के हर पद पर एलपीएफ ने उम्मीदवार उतारे थे. एसएफआई और एलपीएफ को भले ही सफलता नहीं मिली हो, लेकिन वोट प्राप्तांक पर गौर करें तो संतोषजनक कहा जा सकता है.

एलपीएफ के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार रोहिल्ला को 1009 वोट मिले, जबकि एबीवीपी के उम्मीदवार सौरभ कुमार को 944 वोट मिले. एलपीएफ के ज्वाइंट सेक्रेटरी पद के उम्मीदवार मुलायम भी एबीवीपी के उम्मीदवार गोपाल मीना से अधिक वोट पाए हैं. वामपंथी वोटों के बिखराव के बावजूद भी दक्षिणपंथी वोट बैंक में सेविंग कम दिखी.

 

रविशंकर तिवारी
एसएनबी


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