दिल्ली HC का ऐतिहासिक फैसला, गरीब की गंभीर बीमारी का मुफ्त इलाज कराए सरकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्य सरकार गंभीर बीमारी का हवाला देकर मुफ्त इलाज कराने से इनकार नहीं कर सकती और पैसे के अभाव में किसी को मरने के लिए नहीं छोड़ सकती.
'गरीब की गंभीर बीमारी का मुफ्त इलाज कराए सरकार' (फाइल फोटो) |
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि ऐसे मरीज जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं और उनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं उन्हें राज्य सरकार छह लाख रुपए प्रति माह मुहैया कराए.
हमारे सहयोगी चैनल \'समय\' ने एक मार्च को अपने कास कार्यक्रम \'मुझे बचा लो\' में ये मुद्दा प्रमुखता से दिखाया था.
हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को एक रिक्शा चालक के सात साल के बच्चे की गंभीर बीमारी का इलाज कराने का निर्देश देते हुए कहा कि यह उसका संवैधानिक दायित्व है कि वह धनाभाव के चलते किसी को मरने के लिए न छोड़े.
अदालत ने कहा कि बच्चे को जब जरूरत पड़े, उसकी एन्जाइम रिप्लेसमेंट थैरेपी (ईआरटी) एम्स में कराई जाए. अदालत ने कहा कि सरकार यह नहीं कह सकती कि वह गरीबों के पेट दर्द का तो मुफ्त में इलाज कर सकती है, लेकिन कैंसर, एचआईवी या दुर्घटना में हुई हेड इंजरी का नहीं.
न्यायमूर्ति मनमोहन की बेंच के समक्ष पिछली सुनवाई के दौरान सोशल ज्यूरिस्ट संस्था के सलाहकार अशोक अग्रवाल और खगेश झा ने दलील दी थी कि जीने के अधिकार के तहत किसी राज्य का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वह व्यक्ति की जान की रक्षा करे.
उनका कहना था कि इसी अनुवांशिक बीमारी के चलते रिक्शाचालक के चार बच्चों की पहले मौत हो चुकी है. यदि इस बच्चे का उचित इलाज नहीं हुआ तो उसकी मौत की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. बेंच ने इस पर कहा था कि सरकार ऐसे लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए बाध्य है, जो अपना इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं. सरकार इस बात की दलील नहीं दे सकती कि महंगा इलाज होने के चलते वह मुफ्त इलाज नहीं करा सकती.
अदालत ने इस बात पर भी चिंता जताई थी कि केंद्र सरकार के पास ऐसी कोई नीति नहीं है, जिससे वह बिरले और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों का मुफ्त इलाज कर सके. अदालत ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव को इस तरह के मामलों से निपटने के लिए एक नीति बनाने का निर्देश देकर उसे एलजी के समक्ष रखने को कहा था.
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