मध्य प्रदेश में 13 साल के दौरान शुरू हो सके सिर्फ दो सेज
मध्य प्रदेश में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) के विस्तार की चाल सुस्त बनी हुई है.
(फाइल फोटो) |
पिछले 13 साल के दौरान इंदौर और इसके नजदीकी धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ही दो सेज सरकारी फाइलों से निकलकर हकीकत की जमीन पर उतर सके हैं, जबकि इस अंतराल में सूबे के अलग-अलग हिस्सों में कुल 10 सेज अधिसूचित हुए थे. इनमें से तीन सेज को गैर अधिसूचित कर दिया गया है, जबकि एक सेज की अधिसूचना रद्द कर दी गयी है.
प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने बताया कि उन्हें सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मिली जानकारी से पता चला कि साल 2003 से लेकर अब तक सूबे में 10 सेज अधिसूचित हुए हैं. लेकिन इनमें से पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र स्थित बहुउत्पादीय सेज और इंदौर के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेज के दर्जे वाले क्रिस्टल आईटी पार्क में ही औद्योगिक इकाइयां चल रही हैं. ये दोनों सेज मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की इंदौर इकाई ने विकसित किये हैं.
आरटीआई अर्जी के जवाब से खुलासा हुआ कि जबलपुर के खनिज उत्पाद आधारित सेज और कृषि उत्पाद आधारित सेज को गैर अधिसूचित कर दिया गया है. ये दोनों सेज मध्य प्रदेश औद्योगिक केंद्र विकास निगम की जबलपुर इकाई द्वारा विकसित किये जाने थे.
सिंगरौली में हिंडाल्को इंडस्ट्रीज के विकसित किये जाने वाले एल्युमिनियम उत्पाद आधारित सेज को भी गैर अधिसूचित कर दिया गया है.
इसके अलावा, पार्श्वनाथ डेवलपर्स के इंदौर में विकसित किये जाने वाले आईटी सेज की अधिसूचना रद्द कर दी गयी है.
टीसीएस, इन्फोसिस और इम्पेटस इंदौर के अलग-अलग स्थानों पर अपने आईटी सेज विकसित कर रही हैं. तीनों कम्पनियों के आईटी सेज वर्ष 2013 में अधिसूचित हुए थे.
जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा सेज पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) और लाभांश वितरण कर (डीडीटी) लगाने की मुख्य वजह से मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में सेज परियोजनाओं को लेकर उद्योग जगत का रुझान घटा है.
पीथमपुर औद्योगिक संगठन के प्रमुख गौतम कोठारी ने कहा, ‘हमने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से मांग की थी कि सेज पर से मैट और डीडीटी वापस लिये जायें. लेकिन तब हमें राहत नहीं मिली. फिलहाल एनडीए केंद्र की सत्ता में है. लेकिन यह सरकार भी हमारी मांग के सिलसिले में अब तक कोई फैसला नहीं ले सकी है.’
उन्होंने कहा कि मैट और डीडीटी के भारी बोझ के चलते सेज में पूंजी लगाकर नयी इकाई स्थापित करना उद्योगपतियों के लिये बेमानी साबित हो रहा है.
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