मध्यप्रदेश में फीकी पड़ी ‘पीले सोने’ की चमक
देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक मध्यप्रदेश में मौजूदा खरीफ सत्र के दौरान इस तिलहन फसल का रकबा करीब 11 प्रतिशत घटकर 52.72 लाख हेक्टेयर रह गया है. इस रकबे के लगभग 57.5 प्रतिशत हिस्से में फसल की स्थिति फिलहाल सामान्य है.
(फाइल फोटो) |
प्रसंस्करणकर्ताओें के इंदौर स्थित संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के एक अधिकारी ने हालिया सव्रेक्षण के हवाले से सोमवार बताया कि मौजूदा खरीफ सत्र के दौरान मध्यप्रदेश के कुछ इलाकों में सोयाबीन के परपंरागत रकबे में 30 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गयी है.
इस रकबे में सोयाबीन की जगह उड़द, अरहर, मक्का, ज्वार और धान की बुआई की गयी है.
उन्होने बताया कि सूबे के कुछ इलाकों में भारी वर्षा और जल जमाव के कारण सोयाबीन का 7.28 लाख हेक्टेयर रकबा बेहद खराब स्थिति में है. इन इलाकों में भोपाल, विदिशा, गुना, सागर, दमोह और रायसेन के निचले इलाके शामिल हैं.
अधिकारी ने बताया कि राज्य के 30.22 लाख हेक्टेयर रकबे में सोयाबीन की फसल की स्थिति फिलहाल सामान्य है, जबकि 8.52 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में यह तिलहन फसल अच्छी स्थिति में है. राज्य में सोयाबीन का 6.70 लाख हेक्टेयर रकबा बहुत अच्छी स्थिति में है.
प्रदेश में सोयाबीन की कटाई 25 सितंबर से शुरू होने की उम्मीद है.
जानकारों के मुताबिक सूबे में सोयाबीन के रकबे में गिरावट की सबसे बड़ी वजह पिछले तीन खरीफ सत्रों में मौसम के कहर के कारण इस तिलहन फसल को हुआ नुकसान है. इस नुकसान के कारण सोयाबीन का परंपरागत रकबा कम हो गया और किसानों ने बुआई के लिये दलहन व दूसरी फसलों को तरजीह दी.
वर्ष 2015 के खरीफ सत्र के दौरान सूबे में करीब 59 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई की गयी थी.
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