पुरुष नसबंदी में भिंड जिला 49वें स्थान पर, यहां आज भी हैं ढेरों भ्रांतियां

Last Updated 30 Jan 2015 04:47:36 PM IST

मध्य प्रदेश के भिण्ड जिले के पुरुष मर्दानगी को लेकर किसी भी शर्त पर नसबंदी कराने के लिये तैयार नहीं होते हैं.


(फाइल फोटो)

यही कारण है कि 2013-14 में पुरुष नसबंदी के मामले में भिण्ड मध्य प्रदेश में 49वें स्थान पर है.

भिण्ड जिले में पिछले दो साल में केवल 200 पुरुषों ने ही काफी समझने के बाद नसबंदी कराई है. 2010-11 में जिला प्रशासन ने घोषणा की थी कि जो भी पुरुष नसबंदी करायेगा उसे एक शस्त्र लायसेंस दिया जायेगा. इस घोषणा के बाद एक साल में ही 350 पुरुषों ने नसबंदी कराई थी. यह आंकड़ा भिण्ड जिले में पुरूष नसबंदी का अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. लेकिन जब घोषणा के बाद भी नसबंदी कराने वालों को शस्त्र लायसेंस नहीं दिए गए तो फिर पुरूषों ने नसबंदी कराने से मुंह मोड़ लिया.

भिण्ड जिला शिक्षा में काफी पिछड़ा होने के कारण यहां के लोगों की यह मानसिकता है कि अगर पुरुष नसबंदी कराता है तो उसे कमजोर और दब्बू किस्म का माना जाने लगता है. यही मुख्य कारण है कि जिले में पुरुष किसी भी शर्त पर नसबंदी कराने को तैयार नहीं होता है.

स्वास्थ्य विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में भी यह बात सामने आई है. इतना ही नहीं महिलायें भी पुरुषों की नसबंदी के पक्ष में नहीं रहती हैं. उनका मानना है कि पुरुष की नसबंदी करा दी जाए तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है. भिण्ड जिले में बंदूक रखना शान की बात माना जाता है बंदूक का लायसेंस बनवाने और बंदूक खरीदने के लिए वह अपनी जमीन तक बेच देता है.

स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार सबसे अधिक पुरुषों ने वर्ष 2010-11 में 350 नसबंदी ऑपरेशन कराए थे. पुरुषों ने यह नसबंदी इसलिए कराई थी कि उन्हें भिण्ड के पूर्व कलेक्टर सुहेल अली और रघुराज राजेन्दन ने एक पुरुष नसबंदी पर एक शस्त्र लायसेंस देने का प्रलोभन दिया था लेकिन जब पुरुषों को नसबंदी के बाद भी शस्त्र लायसेंस नहीं मिला तो उन्होने नसबंदी कराने से मुंह मोड़ लिया.

मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी डॉ राकेश शर्मा ने बताया कि भिण्ड जिले में गत दो साल में करीबन 200 पुरुषों ने ही नसबंदी कराई है और इस मामले में भिंड जिला प्रदेश में 49वें स्थान पर है.

उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने पुरूषों को नसबंदी कराने में प्रोत्साहित करने के लिए जिले को 11 सेक्टरों में बांट कर 44 टीमों का गठन कर के गांव-गांव और द्वार-द्वार भेजने की योजना बनाई है. ये टीमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी समझायेंगी कि पुरुष नसबंदी के बाद भी पूरी तरह स्वस्थ रहता है.
 



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