भोपाल गैसकांड के 29 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले कचरे का निदान नहीं

Last Updated 28 Nov 2014 04:03:11 PM IST

विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड को 29 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन यूनियन कार्बाइड सयंत्र के परिसर में पड़े 350 टन जहरीले कचरे का आज तक निदान नहीं हो सका है.


(फाइल फोटो)

इतना ही नहीं निकट भविष्य में भी इस कचरे का निदान होता नहीं दिख रहा है.

यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े जहरीले कचरे के निपटान के लिये केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार प्रयास किये गये लेकिन व्यापक विरोध के चलते इसका निपटारा नहीं हो सका.

इस मामले में गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों की ओर से 2004 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई और बताया गया कि सयंत्र परिसर में पड़े जहरीले कचरे के कारण जल और वायु प्रदूषण हो रहा है. इसके चलते आसपास के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

पिछले दशक में हाईकोर्ट ने इस संबंध में केन्द्र और राज्य सरकार को जहरीले कचरे को मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर में जांच के बाद नष्ट करने के आदेश दिये.

हाईकोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर करने वाले जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष आलोक प्रताप सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश पर इसलिये अमल नहीं हो सका क्योंकि पीथमपुर में गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों और पर्यावरण के लिये काम करने वाले संगठनों ने यह कहते हुए कड़ा विरोध किया कि जहरीला कचरा पीथमपुर में जलाये जाने से पर्यावरण के साथ-साथ वहां रह रहे लोगों का भी नुकसान होगा.

सिंह ने कहा कि पीथमपुर में कचरा जलाये जाने के विरोध को देखते हुए हाईकोर्ट ने गुजरात के अंकलेश्वर में यह जहरीला कचरा जलाये जाने के निर्देश दिये और वहां की तत्कालीन सरकार ने भी जहरीला कचरा जलाये जाने की अनुमति दे दी थी. एक बार फिर वहां लोगों ने कचरा जलाये जाने का विरोध किया. उसके बाद गुजरात सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में पुनरीक्षा याचिका लगाकर इस मामले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस जहरीले कचरे को महाराष्ट्र के रक्षा अनुसंधान विकास संगठन के नागपुर के निकट बने इनसीनरेटर में नष्ट करने के निर्देश दिये. एक बार फिर नागपुर में गैर सरकारी संगठनों के विरोध के चलते महाराष्ट्र सरकार ने भी नागपुर में यह जहरीला कचरा जलाने में असमर्थता प्रकट कर दी.

सिंह ने कहा कि इस जहरीले कचरे को जलाने से रोकने के लिये महाराष्ट्र विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था.

भोपाल गैस त्रासदी और पुनर्वास विभाग के उप सचिव केके दुबे ने बताया कि इस बीच जर्मन की एक कंपनी जीआईजेड इस कचरे के निपटान के लिये सामने आई और उसने केन्द्र और राज्य सरकार को इस कचरे को जर्मनी में जलाने के लिये प्रस्ताव दिया.

उन्होंने बताया कि जब यह मामला समाचार पत्रों में सामने आया तो जर्मनी में भी इसको लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये और जीआइजेड कंपनी ने भी अपने पैर पीछे खींच लिये.

दुबे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद 17 अप्रैल को अपने आदेश में दस मीट्रिक टन इसी प्रकार का कचरा पीथमपुर के इसीनरेटर में परीक्षण के तौर पर जलाने के निर्देश देते हुए इसके बाद पीथमपुर में ही शेष कचरे के निपटान करने को कहा है.

उन्होंने बताया कि इसके लिये जिस प्रकार का जहरीला कचरा यूनियन काबाईड परिसर में पड़ा है वैसा ही दस टन कचरा परीक्षण के तौर पर कोच्ची (केरल) की एक संस्था से प्राप्त कर पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर नष्ट किया जा चुका है. उन्होंने बताया कि इस संबंध में केन्द्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा अदालत में अपनी रिपोर्ट भी पेश की जा चुकी है.

दुबे ने कहा कि अब हम सीपीसीबी के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं और जैसे ही हमे निर्देश प्राप्त होंगे वैसे ही उन्हें कार्बाइड परिसर में पड़ा कचरा सौंप दिया जायेगा.

उन्होंने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी को लेकर चल रहे आपराधिक प्रकरण में अदालत के जून 10 में आये आदेश के बाद केन्द्र में इस मामाले में गठित मंत्री समूह ने कचरे के निपटान के लिये 315 करोड़ रुपये सुरक्षित रख लिये थे.

दो तीन दिसंबर 1984 को हुए भोपाल गैस कांड के 25 साल बाद जून 2010 में आपराधिक मामले में फैसला आया था लेकिन अब 29 साल बीत जाने के बाद भी कार्बाइड परिसर में पड़े कचरे का निपटान नहीं हो सका है और लोग आज भी वहां पड़े जहरीले कचरे के दुष्परिणाम झेल रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि भोपाल गैस कांड में 3500 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग प्रभावित हैं.



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