इंदौर: ‘कलंगी’ और ‘तुर्रा’ में छिड़ेगा ‘हिंगोट युद्ध’

Last Updated 24 Oct 2014 03:21:51 PM IST

मध्य प्रदेश के इंदौर में शुक्रवार को सैकड़ों दर्शकों की मौजूदगी में ‘हिंगोट युद्ध’ खेला जाएगा.


(फाइल फोटो)

दीपावली के एक दिन बाद फिजा में बिखरे त्योहारी रंगों और उल्लास के बीच छिड़ने वाली इस पारंपरिक जंग में ‘कलंगी’ और ‘तुर्रा’ दलों के योद्धा एक-दूसरे को धूल चटाने की भरसक कोशिश करेंगे. हर साल की तरह इस बार भी इंदौर से करीब 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा कस्बा हिंगोट युद्ध का मैदान बनेगा.

इस जंग में हथियार के रूप में ‘हिंगोट’ का इस्तेमाल किया जायेगा. हिंगोट दरअसल एक फल है, जो हिंगोरिया नाम के पेड़ पर लगता है. आंवले के आकार वाले फल से गूदा निकालकर इसे खोखला कर लिया जाता है. इसके बाद इसमें कुछ इस तरह बारूद भरी जाती है कि आग दिखाने पर यह किसी अग्निबाण की तरह सर्र से निकल पड़ता है.

गौतमपुरा नगर परिषद के अध्यक्ष विशाल राठी ने बताया, ‘हिंगोट युद्ध के पारंपरिक आयोजन के लिये गौतमपुरा में व्यापक व्यवस्था की गयी है. कस्बे में करीब 1,500 लोगों की बैठक क्षमता वाली दर्शक दीर्घा बनवायी गयी है. इस दीर्घा के आसपास लोहे की जालियां लगवायी गयी हैं, ताकि हिंगोट युद्ध के दौरान दर्शक महफूज रह सकें.’

उन्होंने बताया कि हिंगोट युद्ध के दौरान फायर ब्रिगेड और डॉक्टरों की टीम भी ‘रणभूमि’ के पास तैनात रहेगी. राठी ने बताया कि परंपरा के मुताबिक गौतमपुरा और रुणजी गांव के बाशिंदे शुक्रवार को सूर्यास्त के तत्काल बाद एक मंदिर में भगवान के दर्शन करेंगे. इसके बाद हिंगोट युद्ध की शुरुआत होगी.

गौतमपुरा के योद्धाओं के दल को ‘तुर्रा’ नाम दिया जाता है, जबकि रुणजी गांव के लड़ाके ‘कलंगी’ दल की अगुवाई करते हैं. बहरहाल, हिंगोट युद्ध की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस सिलसिले में इतिहास के प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं.

हालांकि, जैसा कि राठी बताते हैं कि इस बारे में ऐसी दंतकथाएं जरूर प्रचलित हैं कि रियासत काल में गौतमपुरा क्षेत्र की सरहदों की निगहबानी करने वाले लड़ाके मुगल सेना के उन दुश्मन घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे, जो उनके इलाके पर हमला करते थे.

उन्होंने कहा, ‘हमारे पुरखों के मुताबिक हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था. वक्त बदलने के साथ इससे धार्मिक मान्यताएं जुड़ती चली गयीं.’ राठी ने बताया कि इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के मद्देनजर हिंगोट युद्ध में पुलिस और प्रशासन रोड़े नहीं अटकाते, बल्कि रणभूमि के आसपास सुरक्षा और घायलों के इलाज के पक्के इंतजाम करते हैं.

इस वर्ष भी प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं. एहतियातन कई मेडिकल टीमें तैनात की गई हैं.



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