दोनों भूरियाओं के लिए कठिन है चुनावी मुकाबला
मध्यप्रदेश की रतलाम संसदीय क्षेत्र में इस बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया और भाजपा प्रत्याशी दिलीप सिंह भूरिया के बीच कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है.
दोनों भूरियाओं के लिए कठिन है डगर (फाइल फोटो) |
कांग्रेस के अभेद गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में दोनों भूरिया को परंपरागत प्रतिद्वंदी माना जाता है. वे इस लोकसभा चुनाव में चौथी बार आमने-सामने हैं. पिछले तीन मुकाबलों में कांग्रेस के कांतिलाल भाजपा के दिलीप सिंह पर भारी रहे हैं.
इस क्षेत्र की राजनीतिक परिस्थितियां बेहद अलग रहीं है. आजादी के बाद से आज तक केवल दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी को यहां हार का सामना करना पड़ा, जबकि भाजपा अब तक एक भी बार यहां जीत दर्ज नहीं करवा सकी है.
संसदीय इतिहास पर नजर डालें तो 1971 में पहली बार यहां गैर कांग्रेसी समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी के भागीरथ भंवर सांसद चुने गए थे. दूसरी बार यह संयोग 1977 की जनता लहर के दौरान हुआ था, जब फिर से जनता पार्टी के टिकट पर भंवर को यहां जीत हासिल हुई थी.
इसके अलावा 1951 से लेकर अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों के दौरान 13 बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा. 1980 में रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर कांग्रेस से दिलीप सिंह सांसद चुने गए थे. 1980 में मिली जीत के बाद दिलीप सिंह 1996 तक लगातार पांच बार यहां से सांसद चुने गए.
इसके बाद दिलीप सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए और 1998 में वे भाजपा के टिकट पर पहली बार सांसद का चुनाव लड़े कांग्रेस ने उनके मुकाबले में कांतिलाल को उतारा था. संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं ने दल बदलने वाले दिलीप सिंह को सिरे से खारिज करते हुए कांतिलाल को चुना था.
वर्ष 1998 से शुरू हुआ कांतिलाल की जीत का सिलसिला अब तक लगातार जारी है. वे 1999 का चुनाव भी दिलीप सिंह के विरुद्ध जीते. वर्ष 2003 में प्रदेश में दिग्विजय सिंह सरकार के खिलाफ बनी लहर में झाबुआ जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीते, लेकिन 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने भाजपा प्रत्याशी रेलम बाईचौहान को नकार दिया और फिर से कांतिलाल को जिताया.
पिछले लोकसभा चुनाव 2009 में भाजपा ने फिर से दिलीप सिंह पर दांव लगाया लेकिन मतदाताओं ने फिर से उन्हें नकार दिया और कांतिलाल लगातार चौथी बार सांसद चुने गए थे.
इस बार फिर से मुकाबला इन्हीं दोनों परंपरागत प्रतिद्वदियों में है. लेकिन अब भौगोलिक परिस्थितियां बदल चुकी है. पहले संसदीय क्षेत्र में रतलाम और झाबुआ दो जिले थे, लेकिन अब झाबुआ का अलीराजपुर अलग जिला बन गया है. संसदीय क्षेत्र में अलीराजपुर के दो, झाबुआ के तीन और रतलाम के तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल है.
आठ विधासभा क्षेत्रों वाले इस संसदीय क्षेत्र में इस बार कुल 17 लाख दो हजार 449 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे. विगत लोकसभा चुनाव 2009 में मतदाताओं की संख्या मात्र 12 लाख 46 हजार 756 थी. इस तरह करीब पांच लाख मतदाता इस चुनाव में अधिक है. संसदीय क्षेत्र में रतलाम जिले के रतलाम शहर, रतलाम ग्रामीण और सैलाना तीन विधानसभा क्षेत्र शामिल है. इन तीन विधानसभा क्षेत्रों में कुल मिलाकर 5 लाख 56 हजार 534 मतदाता है.
भौगोलिक परिस्थितियों के साथ-साथ राजनीतिक परिस्थितियों में भारी बदलाव आया है. लगभग चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की लहर के चलते संसदीय क्षेत्र की आठों विधानसभा सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी विजयी रहे. विधानसभा चुनाव में इस तरह से भाजपा को संसदीय क्षेत्र में करीब ढाई लाख वोटों की बढ़त मिली है.
यह ऐसा तथ्य है जो कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल की चिन्ता बढ़ाने वाला है. इसके अलावा इन दिनों पूरा इलाका मोदी लहर की चपेट में है. इन दोनों बातों को लेकर भाजपाईखेमा आत्मविश्वास से भरा हुआ दिख रहा है.
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