कोशिश ‘महल’ का दबदबा कायम रखने व खत्म करने की
गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र ग्वालियर का सिंधिया राजघराना का गढ़ माना जाता है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया (कांग्रेस) एवं जयभान सिंह पवैया (भाजपा) |
कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत माधवराव सिंधिया के पुत्र एवं केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले यहां भाजपा ने अपने तेजतर्रार नेता जयभान सिंह पवैया को मैदान में उतारा है. पवैया के मैदान में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है. एक ओर पवैया के बहाने भाजपा यहां ‘महल’ का कब्जा खत्म करना चाहती है तो ज्योतिरादित्य ‘सिंधिया राजघराने’ का दबदबा बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं.
गुना सीट पर वर्ष 1952 से अब तक 17 बार चुनाव हुए. इसमें 13 बार सिंधिया राजघराने के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है, जबकि एक बार वर्ष 1984 में कांग्रेस की ओर से सिंधिया राजपरिवार के बहुत करीबी महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा विजयी रहे और तीन बार वर्ष 1952, 1962 एवं 1967 में अन्य उम्मीदवारों को इसलिए जीत नसीब हुई, क्योंकि उनके खिलाफ ‘महल’ का कोई प्रतिनिधि मैदान में नहीं था. सिंधिया राजघराने से सबसे पहले विजया राजे सिंधिया इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 1957 में सांसद बनीं, लेकिन उसके बाद केवल दो बार वर्ष 1952 और 1962 में हुए लोकसभा चुनाव में यह सीट सिंधिया राजघराने या उसके बहुत करीबी व्यक्ति के पास नहीं रही.
वर्ष 1957 के अलावा विजयाराजे सिंधिया गुना सीट से 1970 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में और वर्ष 1989, 1991, 1996 एवं 1998 में भाजपा के टिकट पर सांसद बनीं. वह इस सीट से कुल छह बार सांसद बनीं. विजयाराजे के अलावा यहां उनके पुत्र माधवराव सिंधिया चार बार सांसद रहे. वह (माधवराव) वर्ष 1971 में भारतीय जनसंघ के टिकट पर, वर्ष 1977 में निर्दलीय उम्मीदवार और वर्ष 1980 एवं 1999 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विजयी रहे.
कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव की 30 सितम्बर 2001 को एक हवाई दुर्घटना में निधन के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में पहली बार 2002 में संसद पहुंचे. उसके बाद उन्होंने अपने पिता की यह सीट नहीं छोड़ी और वर्ष 2004 और 2009 के लोकसभा आम चुनाव में यहां से जीत दर्ज कर कांग्रेस का कब्जा बनाए रखा है. इस बार वह लगातार चौथी बार संसद में पहुंचने के लिए मैदान में खड़े हैं.
सिंधिया और पवैया सहित इस सीट पर कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं. यहां बहुजन समाज पार्टी के लखन सिंह बघेल, आम आदमी पार्टी के शैलेन्द्र सिंह कुशवाह और सात निर्दलीय उम्मीदवार भी ताल ठोक रहे हैं. पवैया (53) ने इससे पहले भाजपा के ही टिकट पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया (कांग्रेस) के खिलाफ 1998 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन पवैया की वजह से सिंधिया घराने की जीत का अंतर बहुत कम (26,000) पर आ गया था. इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में माधवराव को ग्वालियर सीट छोड़कर गुना-शिवपुरी से चुनाव लड़ना पड़ा था.
अयोध्या आंदोलन से जुड़ने के कारण पवैया को हिन्दुत्ववादी चेहरे के रूप में जाना जाता है और वह सिंधिया राजघराने के धुर विरोधी माने जाते हैं. इसीलिए भाजपा ने इस बार पवैया को गुना से उतारकर सिंधिया को अपने ही क्षेत्र में घेरने की रणनीति अपनाई है.
पवैया को इस चुनाव में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की देश में चल रही ‘मोदी लहर’ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा राज्य में किए गए विभिन्न विकास कार्यों का लाभ भी मिलने की उम्मीद है.
वहीं कांग्रेस को गुना संसदीय क्षेत्र में राजपरिवार का प्रभाव होने व ज्योतिरादित्य की निर्विवाद एवं स्वच्छ छवि होने से सभी जातियों का समर्थन मिलने की उम्मीद है. गुना संसदीय सीट में आठ विधानसभा सीटें आती हैं और चार माह पहले नवम्बर, 2013 में विधानसभा के लिए हुए चुनाव में इनमें से पांच कांग्रेस के पास गई हैं, जबकि तीन पर भाजपा का कब्जा है. पिछले विधानसभा चुनाव में गुना लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले लगभग 52,000 मत अधिक मिले थे. पवैया को जीतने के लिए इन मतों को पाटना होगा.
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