झारखंड बंद के दौरान जनजातीय छात्रों को छात्रावासों में ही रोका
झारखंड में सरकार द्वारा दो भूमि कानूनों में संशोधन के विरोध में जनजाति संगठनों द्वारा आहूत बंद में छात्रों को हिस्सा लेने से रोकने के लिए शुक्रवार को उनके छात्रावासों से नहीं निकलने दिया गया.
(फाइल फोटो) |
रांची, दुमका सहित राज्य के अन्य हिस्सों में जनजाति समुदाय के छात्रों के छात्रावासों के बाहर सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया.
सुरक्षाकर्मियों ने छात्रों को छात्रावास के अंदर ही रहने को कहा. रांची कॉलेज छात्रावास में एक पुलिस अधिकारी ने कहा, \'हमें निर्देश दिया गया है कि छात्रों को समूह में छात्रावास से बाहर नहीं निकलने दिया जाए. अगर वे बाहर निकलने का प्रयास करते हैं, तो उनके विरुद्ध बल प्रयोग किया जाएगा. हम किसी भी आकस्मिक घटना से निपटने के लिए तैयार हैं.\'
जनजाति समुदाय के एक छात्र प्रेम मुंडा ने कहा, \'हमारे जगने से पहले ही छात्रावास के बाहर भारी संख्या में सुरक्षाबलों को तैनात कर दिया गया था. हमें बंद में शामिल नहीं होने दिया गया. हम किस प्रकार की लोकतांत्रिक प्रणाली में रह रहे हैं.\'
उल्लेखनीय है कि झारखंड आदिवासी मोर्चा तथा अन्य जनजाति संगठनों ने सरकार के कदम का विरोध करने के लिए बंद का आह्वान किया था. कांग्रेस, वाम दलों के साथ ही झारखंड विकास मोर्चा-प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) ने भी बंद का समर्थन किया.
इससे पहले एकजुट विपक्ष ने बीते 25 नवंबर को राज्य में बंद का आह्वान किया था. बंद से राज्य में जनजीवन प्रभावित हुआ है. बंद समर्थकों ने लोहरदगा, खूंटी तथा अन्य जिलों में मुख्य सड़कों पर टायर जलाकर और यातायात बाधित कर विरोध प्रकट किया. कुछ जगहों पर सड़कों को बाधित करने के लिए पेड़ काटकर सड़क पर गिरा दिए गए.
रघुबर दास की सरकार ने राज्य में दो भूमि कानूनों -छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) तथा संथाल परगना काश्तकारी (एसपीटी) अधिनियम- में संशोधन को 23 नवंबर को पारित कर दिया.
इस संशोधन के बाद सरकार कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल अवसंरचना, बिजली संयंत्रों, सड़क, नहर, पंजायत इमारत तथा अन्य कार्यो के लिए कर सकती है.
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