झारखंड पुलिस में गोपनीय कोष का दुरुपयोग, कोर्ट ने किया सुनवाई से इंकार

Last Updated 18 Jan 2015 02:06:26 PM IST

झारखंड में नक्सली हिंसा का मुकाबला करने के लिये बने गोपनीय सेवा कोष के दुरुपयोग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया है.


सुप्रीम कोर्ट (फाइल)

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में नक्सली हिंसा का मुकाबला करने के लिये बने गोपनीय सेवा कोष के कथित दुरूपयोग और इससे बगैर किसी हिसाब के ही मोटी रकम निकाले जाने के मामले की सीबीआई जांच की अधिसूचना रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.
      
बहरहाल, शीर्ष अदालत ने इस मामले की भविष्य में सुनवाई की संभावना बरकरार रखते हुए कहा कि जनहित याचिका की बजाये झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है.
      
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय ने सीबीआई जांच की अधिसूचना निरस्त कर दी थी.

याचिकाकर्ता इस आदेश के खिलाफ जनहित याचिका दायर नहीं कर सकता है. इस आदेश के खिलाफ या तो राज्य सरकार को विशेष अनुमति याचिका दायर करनी चाहिए थी या आप खुद ऐसा करते.
       
न्यायालय ने रांची स्थित सामाजिक कार्यकर्ता राजू कुमार को उचित अपील दायर करने की छूट प्रदान की जिसके बाद उनके वकील निर्मल कुमार अंबष्ठ ने यह सुझाव मानते हुए याचिका वापस ले ली.

सामाजिक कार्यकर्ता ने इस याचिका में गोपनीय सेवा कोष के नाम पर राज्य पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर धन निकाले जाने और इसका वितरण करने के तरीके की सीबीआई जांच का निर्देश देने का अनुरोध किया था. इस कोष का इस्तेमाल मुखबिरों को पैसा देने के लिये होता है.
       
याचिका में इस कोष का दुरूपयोग करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत मामले दर्ज करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था.
       
इस कोष का सीएजी जैसी संवैधानिक संस्था ऑडिट नहीं करती है और इसका प्रशासनिक ऑडिट ही होता है.
       
वर्ष 2004-05 में इस कोष के लिये 50 लाख रुपए का प्रावधान किया गया था जिसे 2005-06 में बढाकर 8.30 करोड रुपए कर दिया गया था.

याचिका में दावा किया गया है कि तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, स्पेशल ब्रांच (झारखंड) ने अधिकृत किये जाने के बिना ही 5.6 करोड रुपए निकाल लिये थे.
      
राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में इस मामले की सीबीआई जांच के लिये सहमति व्यक्त की थी. लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने इसकी अधिसूचना निरस्त कर दी थी.



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