छत्तीसगढ़ सरकार की नयी महुआ नीति से आदिवासी बेहाल- कांग्रेस

Last Updated 22 Apr 2017 01:45:56 PM IST

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस ने राज्य सरकार की नई महुआ नीति की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि इससे सबसे बड़ा नुकसान राज्य के आदिवासियों को हो रहा है.


(फाइल फोटो)

प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता भूजीत दोशी ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि बस्तर समेत पूरे राज्य में आदिवासियों की आजीविका का प्रमुख जरिया महुआ है,जिसे वह वनों से एकत्रित करते है.

रमन सरकार ने पिछले दिनों नई महुआ नीति लागू कर दी है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति पांच किलो से ज्यादा महुआ बिना अनुज्ञा (परमिट) पा के नहीं ले जा सकता है. कोई भी व्यापारी नये नियम के तहत 500 क्विंटल प्रतिवर्ष से ज्यादा का महुआ व्यापार नहीं कर पायेगा.
   
उन्होने कहा कि फरवरी से जून तक महुआ का सीजन होता है और केवल बस्तर में 60,000 टन महुआ की खरीद होती है. पिछले महीने तक 25 से 30 रू. प्रति किलो बिकने वाला महुआ नई नीति लागू होने के बाद आज दो रूपए किलो में नहीं बिक रहा. कल दक्षिण बस्तर के बारसूर बाजार और आज कुकानार बाजार में आदिवासियों ने महुआ सड़को पर फेक दिया.
    

श्री दोशी ने कहा कि फरवरी से जून के बीच जो महुआ एकत्रित होता है उसका केवल 25 प्रतिशत ही आदिवासी हाट बाजारों में विक्रय करते है और उस रकम से अपने दैनिक उपयोग का सामान खरीदते है.

शेष 75 प्रतिशत महुआ पैसो की आवश्यकता पड़ने पर जून से दिसंबर तक हाट बाजार या वन क्षेत्र के छोटे व्यापारियों को बेचते है. हर आदिवासी परिवार अपने घर में महुआ संग्रहण कर रखता है और उसके लिये ये सोने के जैसा है, जिसे जरूरत के वक्त बेच कर तुरंत वो रकम की व्यवस्था करता है.
     
उन्होने कहा कि अविभाजित मध्यप्रदेश की दिग्विजय सरकार ने महुआ के व्यापार को मुक्त व्यापार की श्रेणी में डाल दिया था. लेकिन आज आदिवासियों और व्यापारियों की हितैषी बनने वाली सरकार ने अचानक आदिवासियों के पेट पर चोट की है. नयी नीति से आदिवासियों का जीना दूभर हो जायेगा.
 

वार्ता


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