बस्तर के जंगलों में है दुर्लभ मूर्तियां
पर्यटन विद डा सतीश ने बताया कि बस्तर में ऐसी मूर्तियों को लगातार क्षति पहुंचायी जा रही है. प्रतिमाओं का सरंक्षण नहीं हो पा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि लोग अपने पंथ और धर्म के आधार पर ही इन मूर्तियों का संरक्षण गंभीरता से करे तो हमे सरकार का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है.
(फाईल फोटो) |
उन्होंने बताया कि मंदिरों की नगरी बरसूर से करीब 1 किलोमीटर दूर हिड़पाल में भालूनाला के किनारे 23वें जैन तीर्थकर भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमा पड़ी है. ग्रामीण इसे नागराज के नाम से पूज रहे हैं. वहीं नागफनी में भी एक जैन प्रतिमा है. चित्रकोट के पास नारायणपाल से दो किलोमीटर दूर कुरूशपाल में पहले जैन तीर्थकर आदिनाथ की प्रतिमा है, जो एक खेत में मिली थी. सोनारपाल के कुछ भक्तों ने इनके लिए एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया है.
इसीतरह इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम के ऊपर बोदरागढ़ में किला की दीवार पर 23वें जैने तीर्थकर भगवान पाश्र्वनाथ की पुरानी प्रतिमा स्थापित है. ग्रामीणा इसे द्वार मुडिया के नाम से पूजते हैं. इसी तरह जगदलपुर के सात किलो मीटर दूर इंरदावती नदी किनारे भाटागुड़ा में 16 वें जैन तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की दुर्लभ प्रतिमा है. ग्रामीण इसे भैरम बाबा कहते हैं और वाषिर्क जा में इन्हें बलि देते हैं. इनमें से कुछ प्रतिमायें के पुरातत्व विभाग की सूची में नहीं होने से वह इनके प्रति उदासीन है.
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