छत्तीसगढ़ : नक्सलियों के खिलाफ होते गांव

Last Updated 06 May 2016 03:53:37 PM IST

नक्सल समस्या से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में एक बार फिर आदिवासी और नक्सली आमने सामने हैं. राज्य के सुकमा जिले की एक पंचायत ने नक्सलियों को गांव में प्रवेश नहीं करने का फरमान सुना दिया है.


फाइल फोटो

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में स्थित सुकमा जिला राज्य के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. लेकिन अब यहां बदलाव की बयार बह रही है। जिले के कुछ गांव ऐसे हैं जहां ग्रामीणों ने नक्सलियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है। इनमें से एक कुमाकोलेंग गांव भी है.
    
बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर से सुकमा जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर तोंगपाल थाना से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में नक्सलियों का बोलबाला था. लेकिन अब ग्रामीण नक्सलियों को इस गांव से दूर रहने की चेतवानी दे रहे हैं.
    
कुमाकोलेंग ग्राम पंचायत में दो गांव कुमाकोलेंग और नामा शामिल है. दोनों गांव के लोग पिछले दो महीनों से पहरा देकर नक्सलियों को गांव में प्रवेश करने से रोक रहे हैं.
    
नामा गांव के निवासी आयता कर्मा ने बताया कि गांव के लोग नक्सलियों के विकास विरोधी कायरें से तंग आ गए हैं. उनके कारण यहां न तो बिजली पहुंच पाई और न ही गांव में सड़क बन सका है. गांव के लोग अभाव की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं. वहीं नक्सली पुलिस का साथ देने के आरोप में ग्रामीणों की हत्या भी कर देते हैं.
    
नक्सलियों द्वारा लगातार धमकी और इस तरह की हरकतों से तंग आकर गांव के युवाओं ने फैसला किया कि अब वह गांव में नक्सली गतिविधि और किसी भी तरह की हिंसा को अनुमति नहीं देंगे। फैसला लेने के बाद अब युवाओं ने गांव की सुरक्षा का भी जिम्मा उठाया है. युवाओं ने एक टोली तैयार की है जो परंपरागत हथियार लेकर पहरा देते हैं.
    
अन्य ग्रामीणों ने बताया कि दोनों गांव में लगभग छह सौ की आबादी है. दोनों गांव के लगभग 65 युवाओं की टीम ने गांव की सुरक्षा का जिम्मा उठाया है. यह टीम किसी भी हालत में नक्सलियों को गांव में घुसने नहीं देती है. ऐसा भी हुआ है कि नक्सली गांव में घुसने की कोशिश करते हैं लेकिन जब उनका जोरदार विरोध किया जाता है तब वह वापस भागने पर मजबूर हो जाते हैं.

नक्सलियों का ग्रामीणों द्वारा विरोध की घटनाओं से यहां की पुलिस खासी उत्साहित है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि क्षेत्र में कई गांव अब नक्सलियों के खिलाफ हो रहे हैं. यह क्षेत्र में हो रहे विकास के कारण ही संभव हो पाया है.

सुकमा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने बताया कि जिले में कुछ गांव है जहां नक्सलियों पर पाबंदी लगाई जा रही है. कुमाकोलेंग ग्राम पंचायत के लोगों ने पुलिस से आग्रह किया है कि उनके गांव के करीब पुलिस शिविर लगाई जाए. पुलिस ने ग्रामीणों से वादा किया है कि जंगल के अंदरूनी हिस्से में बसे इस गांव में जल्द ही पुलिस शिविर की स्थापना पर विचार किया जाएगा. 
   
सिंह ने बताया कि गांव में नक्सलियों के विरोध के बाद सुरक्षा के लिए पुलिस गश्त बढ़ा दी गई है.
   
पुलिस अधिकारी ने बताया कि ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से बेहतर आवागमन के लिए सड़क बनाने की भी अपील की है. प्रशासन ने ग्रामीणों की मांग मान ली है और अब वहां सड़क निर्माण की तैयारी की जा रही है.
   
सिंह ने कहा कि सुकमा जिले में कई गांव ऐसे हैं जहां के लोग अब नक्सलियों के खिलाफ खड़े हो रहे हैं. और वह अपने गांवों में पुलिस शिविर की मांग भी कर रहे हैं. वैसे भी ग्रामीणों को अत्याचार का विरोध करने का पूरा अधिकार है. बस विरोध शांतिपूर्ण हो.
   
छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र पिछले तीन दशकों से नक्सल हिंसा से जूझ रहा है. इन तीस सालों के दौरान नक्सलियों को ग्रामीणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा है. वर्ष 2005 में ऐसे ही विरोध के रूप में सलवा जुडूम की शुरूवात हुई थी. सलवा जुडूम का शाब्दिक अर्थ शांति के लिए एकत्र होना है। उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद सलवा जुडूम को समाप्त कर दिया गया. वहीं इस आंदोलन के मुखिया महेंद्र कर्मा की नक्सलियों ने 25 मई 2013 को हत्या कर दी थी.
   
इसके बाद भी अब क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ छात्रों, महिलाओं और ग्रामीणों की रैली निकलती है. नक्सली हिंसा के शिकार ग्रामीण भी इन रैलियों का हिस्सा होते हैं.



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