छत्तीसगढ़: नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ‘प्रदूषित पानी’ के कारण लोग पलायन करने को मजबूर
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नंदराम कुंजम ने कभी कल्पना नहीं की थी कि एक दिन उसे यहां के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में स्थित अपने पूर्वजों का गांव छोड़ने को मजबूर होना पड़ेगा.
‘प्रदूषित पानी’ के कारण लोग पलायन को मजबूर |
लेकिन उसकी इस मजबूरी की वजह नक्सलियों का आतंक नहीं है बल्कि लौह अयस्क खनन से निकलने वाले अपशिष्टों से नदी के पानी का प्रदूषित होना है जिसका रंग लाल हो गया है.
पूर्व में दंतेवाड़ा के दूरदराज के क्षेत्र में स्थित कुंजम के मदादी गांव के कई लोग नक्सलियों के खौफ से यह जगह छोड़कर चले गए लेकिन अब लोगों के यहां से पलायन करने की वजह कुछ और ही है.
मदादी गांव बैलादिला पहाड़ी की तलहटी में स्थित है जहां देश का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक एवं निर्यातक राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) पिछले चार दशकों से लौह अयस्क का उत्खनन कर रहा है.
यह अनमोल खनिज कुंजम और क्षेत्र में रहने वाले दूसरे लोगों के लिए अभिशाप बन गया है.
32 साल के ग्रामीण ने कहा, ‘‘मेरी पीढ़ी ने (इलाके में बहने वाली) शंखनी नदी में कभी भी ताजा पानी नहीं देखा.’’
उसने कहा कि अपशिष्टों से प्रदूषित होकर पानी के लाल रंग का हो जाने के कारण ग्रामीण शंखनी नदी को ‘लाल नदी’ बुलाते हैं.
ग्रामीण ने कहा कि दुख की बात है कि लोगों के पास पानी के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं है और इस पानी से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा हो रही हैं और फसल बर्बाद हो रहे हैं.
लौह अयस्क उत्खनन के बाद खदान से निकलने वाले रेड ऑक्साइड के प्रदूषण के कारण दक्षिण छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की जीवनरेखा समझी जानी वाली दंकिनी और शंखनी नदियों ने अपनी चमक खो दी है.
पर्यावरणविदें द्वारा बेहद प्रदूषित करार दी गयी दोनों नदियां दंतेवाड़ा के बैलादिला क्षेत्र से निकलती हैं जो राजधानी रायपुर से 450 किलोमीटर दूर है.
कुंजम ने कहा, ‘‘एनएमडीसी प्रदूषित पानी के कारण जमीन और मवेशियों को पहुंचने वाले नुकसान के लिए मुआवजा देती रही है लेकिन ऐसा उन्हीं गांवों में किया गया जो मुख्य सड़क से लगे हैं.’’
उसने कहा कि नदियों के प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंदरूनी इलाकों में स्थित गांवों में अब तक कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया.
कुंजम की तरह ही चिंतित कोडेनार गांव की सरपंच मीना मांडवी ने खनन गतिविधियों से प्रभावित हुए ग्रामीणों को निश्चित सुविधाएं उपलब्ध कराने में एनएमडीसी की कथित ‘निष्क्रियता’ को लेकर नाराजगी जतायी.
उन्होंने कहा, ‘‘एनएमडीसी पिछले चार दशकों से क्षेत्र में खनन कर रही है और भारी राजस्व कमा रही है लेकिन अब तक वह ग्रामीणों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने में नाकाम रही है.’’
मीना ने कहा कि आदिवासी कभी इन नदियों को पवित्र मानकर इनकी पूजा करते थे लेकिन अब यह लौह अयस्क खनन के कारण कई जलजनित बीमारियों का स्रोत बन गयी हैं.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के समन्वयक और पर्यावरणविद् आलोक शुक्ला ने दंतेवाड़ा के ग्रामीणों की दुर्दशा को देखते हुए खनन गतिविधियों से पारिस्थितिकी की रक्षा की जरूरत पर जोर दिया.
शुक्ला ने कहा कि एनएमडीसी खनन प्रक्रिया के दौरान अपशिष्टों के सही निष्पादन के निर्धारित सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करती आयी है.
उन्होंने मांग की, ‘‘जलाशयों में उचित शोधन के बिना सीधा औद्योगिक अपशिष्ट छोड़ना पर्यावरण कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है. छत्तीसगढ़ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण मंत्रालय को एनएमडीसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.’’
वहीं दंतेवाड़ा के जिलाधिकारी के सी देवसेनपति ने कहा, ‘‘दंतेवाड़ा और कुवाकोंडा प्रखंडों के करीब 65 प्रभावित गांवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन ने कई उपाय किए हैं. लाल पानी की समस्या से निपटने के लिए सभी संबंधित विभागों को एक संयुक्त कार्य योजना तैयार करने के लिए कहा गया है.’’
मामले पर रूख जानने के लिए किए गए ईमेल का एनएमडीसी ने जवाब नहीं दिया.
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