साल 2014 में गलत वजहों से खबरों में रहा छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ 2014 में गलत कारणों से खबरों में रहा, चाहे वह नक्सली हमलों में इजाफा हो, जिस वजह से सुरक्षा बलों की जाने गईं, चाहे बिलासपुर में सरकारी नसबंदी शिविर में ऑपरेशन के बाद 13 युवा महिलाओं की मौत हो.
गलत वजहों से खबरों में रहा छत्तीसगढ़ (फाइल फोटो) |
रमन सिंह सरकार कई मोर्चों पर विपक्षी हमलों से बचने में व्यस्त रही. नक्सल हमलों की श्रृखंला के बाद विद्रोह निरोधक अभियान पर विपक्ष के हमले हुए.
इसके अलावा बिलासपुर में महिला नसबंदी के बाद हुई मौतों और नवजात शिशुओं की मौत के बाद स्वास्थ्य सुविधाओं पर विपक्ष के हमले सरकार को झेलने पड़े और धान खरीद पर किसानों के मुद्दों को लेकर भी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही.
यह साल हालांकि क्रिकेट प्रेमियों के लिए कुछ खुशी लेकर आया, क्योंकि रायपुर स्थित अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम ने चैपियंस लीग टी-20 टूर्नामेंट के आठ मैचों की मेजबानी की और आदिवासी इलाकों के छात्रों के लिए यह साल खुशी भरा रहा क्योंकि केंद्र ने बस्तर में राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय स्थापित करने की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी.
नसबंदी त्रासदी में गई 13 महिलाओं की जान
नवंबर में बिलासपुर में नसबंदी त्रासदी के बाद सिंह को विपक्षी कांग्रेस और महिला संगठनों की तरफ से तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा.
इस त्रासदी में 13 महिलाओं की जान गई और 100 से ज्यादा की तबीयत खराब हुई.
सिंह ने मामले की जांच करने के लिए न्यायिक आयोग बनाया और ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता और बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी आरके भांगे की सेवा समाप्त कर दी, जो प्रक्रिया की निगरानी कर रहे थे.
गुप्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया गया. साथ ही शिविर में \'घटिया गुणवत्ता\' की दवाईयों की आपूर्ति करने के लिए दवा कंपनी के निदेशक और उसे पुत्र को भी गिरफ्तार किया गया.
दिसंबर महीने में सरकारी छत्तीसगढ़ चिकित्सा विज्ञान संस्थान में 15 शिशुओं की मौत होने के बाद कांग्रेस ने इसके लिए सरकार की \'घटिया स्वास्थ्य सुविधाओं\' को जिम्मेदार ठहराया. ज्यादातर शिशु कथित तौर पर वक्त से पहले जन्मे थे.
नक्सल संबंधित घटनाओं में कई जवान हुए शहीद
पूरे साल राज्य ने एक के बाद एक घातक नक्सली हमलों का सामना किया जिसमें 62 सुरक्षाकर्मियों की मौत हुई.
नक्सल संबंधित घटनाओं में सुरक्षा बलों ने 35 नक्सलियों को मार गिराया, जबकि 32 नागरिक भी इसमें मारे गए.
28 फरवरी को दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने पुलिस गश्ती दल को निशाना बनाया और एक थाना प्रभारी सहित पांच सुरक्षाकर्मियों को मार दिया.
इस हमले का दर्द कम होने से पहले ही 11 मार्च को विद्रोहियों ने सुकमा के टॉन्गपाल इलाके में घात लगाकर 11 सीआरपीएफ कर्मियों, राज्य पुलिस के चार जवानों और एक नागरिक को मार दिया.
लोकसभा चुनाव से पहले और बाद भी नक्सलियों ने कई हमले किए, जिनमें 12 अप्रैल को बीजापुर और बस्तर जिलों में एक घंटे से भी कम अंतराल में दो हमले किए, जिनमें गश्ती दल के सात सदस्य, पांच सीआरपीएफ कर्मियों सहित 13 की मौत हुई.
एक दिसंबर को सुकमा के चिन्तागुफा के घने जंगलों में नक्सलियों के हमले में सीआरपीएफ के 13 जवान मारे गए. इस हमले के बाद कांग्रेस को नक्सली खतरे से निपटने की सरकारी रणनीति पर सवाल उठाने का मौका मिला.
हमले के बाद विवाद तब उत्पन्न हो गया जब मृत सीआरपीएफ जवानों के रक्त लगीं वर्दियां उस अस्पताल के बाहर कूड़ेदान में पड़ी मिली जहां उनका पोस्टमार्टम हुआ था.
इसके बाद सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए और सीआरपीएफ ने भी जांच के आदेश दिए.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि हमने इस साल कई जवानों को खोया है लेकिन बल का आत्मविश्वास ऊंचा है. वे अब बस्तर के उन भीतरी इलाकों में जा रहे हैं जहां पहले कभी घुसने की हिम्मत नहीं करते थे.
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