बिहार पुलिस भी अब केंद्रीय बल की तरह ताकतवर

Last Updated 26 Jun 2016 12:36:53 PM IST

अब बिहार पुलिस भी केंद्र सरकार के सशस्त्र पुलिस बल की तरह और सशक्त हो गयी है. उसने अपने अधिकार का सही उपयोग किया तो अपराधी को बल प्रयोग कर पकड़ने में अड़चनें नहीं आयेगी.


(फाइल फोटो)

उसने उसका गलत इस्तेमाल किया तो आम आदमी उसकी प्रताड़ना का शिकार होकर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा. ऐसा राज्य सरकार की 16 मई, 1980 की अधिसूचना के कारण होगा जिसे पटना उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने सही ठहराया है. 

अधिसूचना के तहत कर्तव्य निर्वहन के दौरान पुलिस द्वारा किये गये बल प्रयोग के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होगी. 
 
राज्य सरकार की इस अधिसूचना को दो सदस्यीय एक पीठ ने सही ठहराया था तो दूसरे दो सदस्यीय पीठ ने गलत कहा था और विवेचना की थी कि राज्य सरकार को केंद्र की तरह इस तरह की अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है. 
 
दो अलग-अलग फैसला होने पर इसे तीन सदस्यीय पीठ के पास भेजा गया. तीन सदस्यीय पीठ के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी, न्यायमूर्ति नवनीति प्रसाद सिंह व न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की पीठ ने राज्य सरकार की 16 मई, 1980 की अधिसूचना को सही ठहराया और कहा कि राज्य सरकार भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 197(3) के तहत केंद्र की तरह अपने सशस्त्र बल को ऐसी प्रतिरक्षा दे सकती है.  

 

राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अंजनी कुमार ने कहा था कि जिस तरह केंद्र सरकार को भारतीय दंड प्रक्रिया की धारा 197(2) के तहत अपने सशस्त्र बल के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी की जरूरत है, उसी तरह से राज्य सरकार को भी धारा 197(3) के तहत अपने सशस्त्र बल के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अनुमति लेने संबंधी अधिसूचना जारी करने का अधिकार है. 
 
तीन सदस्यीय पीठ ने उनकी दलील को स्वीकार कर लिया और राज्य सरकार की अधिसूचना को सही ठहराया. पीठ ने इसके साथ ही मुजफ्फरपुर रेल पुलिस में तैनात तीन पुलिस अधिकारियों व तीन सिपाहियों के खिलाफ अदालती संज्ञान को निरस्त कर दिया. 
 
पुलिस के खिलाफ कस्टम विभाग के एक अधिकारी ने अदालत से शिकायत की थी और कहा था कि एक संदिग्ध की जांच करने के दौरान पुलिस वालों से उसे छोड़ देने को कहा. ऐसा नहीं करने पर उसे काफी मारपीट कर घायल कर दिया एवं उसके पैसे छीन लिये. उसे बंधक भी बना लिया गया.
 
मुजफ्फरपुर की अदालत ने विभाग की इस शिकायत पर 1 अप्रैल, 1991 को संज्ञान ले लिया और सभी पुलिस वालों को सम्मन जारी किया. 
 
पुलिस वाले राम रेखा पांडे सहित अन्य ने उसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि उसने अपने कर्तव्य निर्वहन के दौरान ऐसा किया है. उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सक्षम अधिकारी से अनुमति लेना जरूरी है. यह अनुमति नहीं ली गयी है. न्यायालय मुजफ्फरपुर अदालत द्वारा लिये गये संज्ञान को निरस्त कर दे. 



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